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Health News: Cartilage regeneration techniques can save joints

शरीर के प्राकृतिक जोड़ों को बचाने पर चर्चा

Discuss on saving the body's natural joints

जयपुर, 8 दिसंबर। नई तकनीकों की मदद से शरीर के प्राकृतिक जोड़ों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के उपायों पर विचार-विमर्श के लिए राजस्थान की राजधानी में आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी का शनिवार को समापन हो गया। इंडियन कार्टिलेज सोसायटी (आईसीएस) की 5वीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में देश-विदेश के करीब 200 कार्टिलेज विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया, जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, पौलेंड, हंगरी, इराक, ईरान, अफगानिस्तान जैसे देशों के विशेषज्ञ भी शामिल हुए। इस संगोष्ठी का उद्घाटन विश्व प्रसिद्ध अमेरिकी कार्टिलेज वैज्ञानिक डॉ. ब्रूस राइडर ने किया। संगोष्ठी का मुख्य विषय था 'रिप्लेसमेंट से बेहतर है रिजेनरेशन'।

डॉ. ब्रूस राइडर ने कहा कि कार्टिलेज रिजेनरेशन व रिस्टोरेशन की नई तकनीकों से अब उम्मीद जगी है कि ऑस्टियो आर्थराइटिस एवं अन्य कारणों से खराब होने वाले घुटने एवं अन्य जोड़ों को बदलना नहीं पड़े, बल्कि प्राकृतिक जोड़ों को ही ठीक कर दिया जाए।

सम्मेलन में डॉ. ब्रूस राइडर के अलावा डॉ. जैकेक वल्वस्की और प्रो. राजी जैसे अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों ने भी भाग लिया। विशेषज्ञों ने आर्टिकुलर कार्टिलेज इम्प्लांटेशन, स्टेम सेल्स थेरेपी, स्केफोल्ड जैसी तकनीकों के बारे भी चर्चा की।

इंडियन कार्टिलेज सोसायटी के वर्तमान अध्यक्ष डॉ. राजू वैश्य ने अपने अध्यक्षीय भाषण में भारत में कार्टिलेज को लगने वाली चोटों के उपचार के बारे में चर्चा की। उन्होंने कहा कि आज के समय में युवाओं में आर्थराइटिस की समस्या काफी चिंताजनक है, क्योंकि इसके कारण युवकों के घुटनों को बदलने की जरूरत पड़ रही है।

उन्होंने बताया

कि आज अस्थि चिकित्सा के क्षेत्र नई तकनीकों के विकास होने के बाद से खराब जोड़ों के स्थान पर कृत्रिम जोड़ लगाने के बजाए जोड़ों के उतकों को रिजेनरेट करके प्राकृतिक जोड़ों को बचा लिया जाए। हाल के दिनों में विकसित कार्टिलेज रिजेनरेशन तकनीकों से प्राकृतिक कार्टिलेज बनाने में मदद मिलती है और इस कारण जोड़ों को बदलने की जरूरत या तो खत्म हो जाती है या टाली जा सकती है।

अमेरिका से आए डॉ. अजय अग्रवाल ने युवकों में कूल्हे की जोड़ों के संरक्षण के बारे में चर्चा की। इस सम्मेलन में स्टेम सेल थिरेपी के बारे में भी विचार-विमर्श किया गया।

संगोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ. सौरभ माथुर ने कहा, "कार्टिलेज हमारे शरीर का बहुत ही महत्वपूर्ण संरचनात्मक घटक है। यह मजबूत उतक है लेकिन हड्डियों की तुलना में अधिक मुलायम एवं लचीला है। कार्टिलेज विशिष्ट कोशिकाओं से बने होते हैं, जिन्हें कोंड्रोसाइट्स कहा जाता है और ये कोशिकाएं बहुत अधिक मात्रा में कॉलेजन फाइबर, प्रोटियोग्लाकैन और इलास्टिन फाइबर से बने एक्स्ट्रासेलुलर मैट्रिक्स यौगिक उत्पादित करती हैं।

आईसीएस के पूर्व अध्यक्ष डॉ. दीपक गोयल ने बताया कि कार्टिलेज के ऊतक में अपनी खुद की मरम्मत करने की क्षमता होती है, लेकिन इसमें यह क्षमता बहुत ही सीमित होती है, क्योंकि इसमें रक्त कोशिकाएं नहीं होती है और लेकिन हीलिंग की प्रक्रिया के लिए रक्त जरूरी होता है।

आईसीएस के पूर्व अध्यक्ष डॉ. निशीथ शाह ने बताया कि कार्टिलेज पुनर्निर्माण के लिए आज कई तकनीकों का उपयोग हो रहा है और अनुसंधानकर्ता कार्टिलेज को उत्पन्न करने की नई विधियों का विकास करने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि लोगों को ऑस्टियो आर्थराइटिस के दर्द से मुक्ति मिले और वे अपने प्राकृतिक जोड़ों के साथ ही लंबा जीवन जी सकें।

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