अर्द्धसैन्य बलों के 40 जवानों का जनसंहार (massacre of 40 soldiers of paramilitary forces) और अनेकों जवानों के घायल और अपंग होने के इस वीभत्स कांड से सभी भारतीय स्तब्ध हैं। इस जघन्य कांड के पीछे जैश-ए-मोहम्मद (Jaish-e-Mohammad) के कुख्यात आतंकवादी अजहर मसूद (Azhar Masood) का हाथ है, जो उसने खुद कुबूला है। उसका नाम सुरक्षा परिषद की मोस्ट वांटेड आतंकवादियों की सूची (List of Most Wanted Terrorists of the Security Council) में सबसे ऊपर है। सबसे तकलीफदेह यह है कि ये जवान युद्ध-मोर्चे पर नहीं थे। उन पर यह हमला उस समय किया गया, जब वे बसों पर सवार होकर जम्मू से श्रीनगर जा रहे थे।
आशा के अनुरूप, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने पुलवामा नरसंहार की कड़ी निंदा (Strong condemnation of the Pulwama massacre) की और घोषणा की है कि न केवल अपराधियों को दंडित किया जाएगा, बल्कि उनका समर्थन और मदद करने वालों को भी इसकी भारी कीमत अदा करनी होगी। उन्होंने यह भी बताया कि सुरक्षा बलों से कह दिया गया है कि इस अपराध का बदला लेने के लिए वे खुद निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। शहीदों के परिवारों के समर्थन में आम लोग सामने आए हैं।
गौरतलब है कि पुलवामा नरसंहार का गुनहगार (The culprit of the Pulwama massacre), रक्तपिपासु अपराधी अजहर मसूद द्वारा भारत के खिलाफ यह पहला आतंकी हमला नहीं है। दूसरों के दर्द से आनंदित होने वाला यह अपराधी, अनेक जन संहारों का जिम्मदार है। वह अनगिनत सामूहिक नरसंहारों, प्रगतिशील-धर्मनिरपेक्ष व्यक्तियों/ संगठनों पर बम विस्फोटों लिए जिम्मेदार है और पाकिस्तान में महिला-तस्करी भी करता रहा है। दिसंबर1999 में इंडियन एयरलाइंस के हवाई उड़ान 814 (नेपाल के काठमांडू से
लेकिन पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों का बहता लहू आरएसएस/भाजपा के हुकमरानों से कुछ सवालों के जवाब मांग रहा है।
WHO GAVE NEW LEASE OF LIFE TO THE MOST WANTED TERRORIST AZHAR MASOOD?
भारत में दिसंबर1999 में आरएसएस के वरिष्ठ विचारक और नेता, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केद्र में राजग की सरकार थी। भारतीय कश्मीर में अजहर मसूद 1990 के दशक की शुरुआत में आया था। घाटी में नफरत का जहर फैलाना और आतंकवादी गतिविधियों को तेज करना उसका मकसद था। वह फरवरी 1994 में पकड़ा गया और उसे जम्मू की कोट भलवाल जेल में बंद कर दिया। इसके खिलाफ भारत के खिलाफ युद्ध करने का आरोप था। जेल से उसकी रिहाई कंधार वायुयान अपहरण कांड के बदले हुई। उसे भारतीय वायुसेवा के विमान में यात्रा कर रहे बंधक यात्रियों के बदले रिहा किया गया था। वह 24 दिसंबर,1999 को क्रिसमस की पूर्व संध्या थी जब इस विमान का अपहरण किया गया था।
अजहर मसूद के साथ दो और खूंखाार आतंकवादी अहमद उमर सईद शेख और मुश्ताक अहमद ज़ारगर भी छोड़े गए थे। जैश-ए-मोहम्मद को तालिबान का संरक्षण प्राप्त था। उसकी मांग के अनुसार इन्हे बिना शर्त रिहा किया गया था। इन आतंकियों को कोट भलवाल जेल से लिया गया और तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान के कंधार क्षेत्र ले जाने के लिए एक विशेष विमान में उन्हें बैठाया गया। आरएसएस के प्रिय भाजपा नेता,भारतीय विदेश मंत्री जसवंत सिंह इन तीनों आतंकवादियों को अपने साथ वहां ले गए थे। 31 दिसंबर को इन्हें अपहर्ताओं को सौंप दिया। तालिबान ने उन्हें वहां से पाकिस्तान में जाने दिया।
संयोगवश, वर्तमान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल उस समय आईबी प्रमुख थे। उन्हीं के नेतृत्व में चार सदस्यीय भारतीय टीम ने अपहर्ताओं के साथ वार्ता हुई थी और इन खूंखार आतंकवादियों को रिहा किया गया था!
क्या भारत के मौजूदा शासकों ने भी पाकिस्तान के रास्ते को ही अपने लिये श्रेयस्कर मान लिया है ?
(2) पाकिस्तान के शासक और सेना जैश-ए-मोहम्मद के संरक्षक हैं। अजहर मसूद और माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम वहां उनकी पनाह में हैं। इस तथ्य के अकाट्य प्रमाण हैं तथा इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में भी भारत चिंता जाहिर कर चुका है। इसके बावजूद, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दिसंबर 2015 को नवाज शरीफ के घर में एक विवाह समारोह में क्यों गए?
हमारे प्रधानमंत्री का पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के प्रति प्रेम जाना-माना है। वे एक विदेशी यात्रा से लौट रहे थे, उनके साथ हवाई जहाज में एक प्रतिनिधमंडल, जिसमें सौ से अधिक वीआईपी साथ थे। विमान को अचानक लाहौर की ओर मोड़ने का आदेश दिया गया। सारी दुनिया अचंभित रह गई, मोदी लाहौर हवाई अड्डे से हेलीकॉप्टर द्वारा नवाज शरीफ के किले नुमा पुश्तैनी घर जट्टी उमरा (रायविंड) पहुंचे। वे वहां उनकी नातिन के निकाह में सम्मिलित होने के लिए गए थे। पीटीआई के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंदीदा भोजन 'साग' भी लंच-कम-डिनर के लिए तैयार अन्य व्यंजनों में था ... साग, दाल और सब्जी सहित सभी व्यंजन देसी घी में पकाए गए थे। भारतीय प्रधान मंत्री के स्वागत में उन्हें कश्मीरी चाय पिलाई गई। मोदी के प्रतिनिधिमंडल के11 महत्वपूर्ण सदस्य उनके साथ थे। सम्मान व्यक्त करते हुए मोदी ने शरीफ की मां के पैर भी छुए।
प्रतिनिधिमंडल के अन्य100 से अधिक सदस्य लाहौर हवाई अड्डे पर रुके और वहां दावत का आनंद लिया। महत्वपूर्ण यह है कि विगत10 से अधिक वर्षों बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली पाकिस्तान यात्रा थी। मोदी ने पाकिस्तान का दौरा किया परंतु वहां उन्हाेंने अजहर मसूद के प्रत्यार्पण और उसकी गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग नहीं की, पठानकोट हवाई अड्डे पर हमले का अभी एक साल भी नहीं गुजरा था, मोदी ने इसके प्रति भी कोई विरोध व्यक्त नहीं किया। बस एक काम किया, पाकिस्तान के प्रधान मंत्री के निजी समारोह का लुत्फ़ उठाया।
पाकिस्तान को भारत का दुश्मन बताया जाता है, उसके प्रति हमारे प्रधानमंत्री के रवैया उनकी इस यात्रा से जाहिर है। इस तरह के व्यवहार से पाकिस्तान में सक्रिय इस्लामी आतंकवादियों के हौसले बुलंद होते हैं। दुखद है, जिस समय हमारे प्रधान मंत्री नवाज शरीफ की निजी पार्टी में पंजाबी आतिथ्य का आनंद ले रहे थे, दो भारतीय सैनिक पाकिस्तान सेना के हाथों शहीद हो रहे थे।I>
पाक को आतंकी देश घोषित करा पाना मोदी की हैसियत से बाहर, मेल मिलाप के लिए सिद्धू की लें मदद !
(3) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ/भाजपा के हुक्मरान दावा करते हैं कि मोदी के नेतृत्व में भारतीय राज्य एक 'दबंग राज्य' है; वह दिन बीत गए जब भारत को एक 'नरम राज्य' कहा जाता था। फिर क्या वजह है कि इतनी विशाल और सशक्त प्रतिरक्षा, सेना और पुलिस, आईबी और रॉ जैसी खुफिया एजेंसियों से लैस होने के बावजूद हम पुलवामा साजिश का पहले से पता नहीं लगा सके? राजनीतिक, नागरिक और सैन्य नेतृत्व में से क्या किसी को जिम्मेदार ठहराया जाएगा?
यह सच है कि कोई भी राज्य या सत्ता हर साजिश का खुलासा नहीं कर सकती है लेकिन कश्मीर में लगभग पिछले एक साल से आरएसएस/बीजेपी सत्ता में हैं। सेना और पुलिस अधिकारी दावा कर रहे थे कि उग्रवाद को कुचल दिया गया है। उनका यह दावा खोखला निकला। निर्मम सैन्य अभियान, जिनमें पेलेट गन का इस्तेमाल और व्यापक स्तर पर 'आतंकवादियों'का सफाया किया गया। इसके बावजूद पुलवामा नरसंहार हो गया! सीआरपीएफ के ये बहादुर जवान किसी दुर्गम इलाके में नहीं मारे गए, बल्कि भारत की सबसे अधिक सुरक्षित श्रीनगर-जम्मू रोड पर मारे गए। शहीदों को इस गलत फहमी में रखा गया था कि वे सुरक्षित क्षेत्र में सफर कर रहे हैं। अगर दोषियों को सजा नहीं दी गई तो शहीदों के लिए व्यक्त किया जा रहा शोक-संताप मगरमच्छ के आंसू ही होंगे।
भारत, दक्षिण एशिया में एक तरह से थानेदार बन गया है। एक ताजा मामला है, दुबई के शासक शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम की बेटी 33 वर्षीय राजकुमारी शेख लतीफा मार्च 2018 में संयुक्त अरब अमीरात से एक नौका में बैठकर भाग गई। उसका आरोप था कि उसके पिता उसे यातना देते हैं। राजकुमारी को बचाकर ले जाने वाले युवक का नाम हार्वे जुबर्ट था। शेख की मांग पर भारतीय तट रक्षकों ने दोनों को पकड़ लिया। भारतीय नौसेना के एक हेलीकॉप्टर द्वारा राजकुमारी को उसके क्रूर पिता के पास वापस भेज दिया, जिसकी स्वयं की छह पत्नियां और 30 बच्चे हैं। राजकुमारी से अंतिम संपर्क 4 मार्च शाम 4.30 बजे के आसपास हुआ था। आरोप है कि राजकुमारी और उसके दोस्त हार्वे जुबर्ट को जिन लोगों ने भागते हुए घेरने और उन पर गोलियां चलाने वाले भारतीय नौसेना के लोग थे।II>
ये खून में व्यापार है या खून का व्यापार है ? देश तो सरकार के साथ है मगर आप किसके साथ हैं सरकार ?
प्रेस रिपोर्टों के अनुसार, यह अजीत डोभाल (राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) थे, जिनकी योजना के अनुसार मार्च के महीने में इस ऑपरेशन के जरिए दुबई की राजकुमारी शेख लतीफा को गोवा के तट से लगभग 50 किमी दूर हिरासत में लेकर संयुक्त अरब अमीरात के अधिकारियों को सौंपा गया था। III>
छह पत्नियों वाले दुबई के शासक शेख की सेवा में भारतीय जासूसों के इस मुखिया को अपने घर में होने वाले आतंकवादी हमले के बारे में कुछ पता ही नहीं लग सका! क्या डोभाल हमें बताएंगे कि इतनी जबरदस्त चूक के लिए कौन जिम्मेदार है?
(4) सीआरपीएफ के सैकड़ों बहादुर जवानों को श्रीनगर से जम्मू तक बसों के जरिए सड़क के रास्ते से यात्रा की यह योजना किसकी थी कि जिससे वे आतंकवादियों के जाल में फंस गए? उन्हें हवार्इ जहाज से क्यों नहीं भेजा गया?
भारत सैन्य शक्ति में दुनिया में चौथे स्थान पर है। यह दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था है, इसका विदेशी मुद्रा भंडार इस समय पहले किसी भी वक्त से अधिक है। दुनिया में सबसे ज्यादा अरबपतियों में भारत का स्थान तीसरा है। यहां दुनिया में सबसे बड़ी प्रतिमा है और इसके साथ वहां एक हवाईअड्डा भी है। यह सबसे तेज 'बुलेट ट्रेन' के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण करन के लिए अरबों डॉलर खर्च कर रहा है, इसके प्रधानमंत्री ने अपने कार्यकाल के पहले चार वर्षों में 93 देशों में हवाई यात्रा की हैं। भारतीय प्रधान मंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पास अमेरिकी राष्ट्रपति की तर्ज पर आधुनिक और बड़े विमान हैं, परंतु हम राष्ट्र के रक्षकों को हवाई परिवहन प्रदान करने में सक्षम नहीं थे!
पाकिस्तान के साथ सभी व्यापारिक सम्बन्ध तुरन्त समाप्त करे सरकार
भारतीय गृह मंत्री, राजनाथ सिंह पुलवामा में शहीदों के नश्वर अवशेषों को कंधा देने के लिए गए, इसका जम कर प्रचार भी किया गया लेकिन अगर गृह मंत्रालय ने पीड़ितों के लिए एयर लिफ्टिंग की सुविधा उपलब्ध करार्इ हाेती तो गृह मंत्री को कंधा की कोई आवश्यकता नहीं होती! राजनाथ सिंह ने दावा किया कि गृह मंत्रालय ने एेसा कोर्इ निर्देश जारी नहीं किया था कि जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र कर्मियों की आवाजाही के लिए विमानों का उपयोग नहीं किया जाए। सच जानने के लिए स्वतंत्र जांच करार्इ जानी चाहिए। सशस्त्र कर्मियों को बसों के जरिए सड़क के रास्ते जाने के लिए मजबूर करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए।
(5) आरएसएस और संघ परिवार, कॉरपोरेट से जुड़े मीडिया ने इस नरसंहार का इस्तेमाल मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए किया, लेकिन क्या उनके परिवार के सदस्य भारतीय सशस्त्र बलों में भर्ती होते हैं?
पुलवामा जनसंहार में एक मुस्लिम सैनिक भी शहीद हुआ है। संघ परिवार और पतित तत्व इस कांड का फायदा उठाकर मुसलमानों के खिलाफ नफरत और युद्धोन्माद पैदा कर रहे हैं। युद्ध में उन्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा क्योंकि वे शायद ही कभी भारतीय सशस्त्र बलों में भर्ती होते हैं। आरएसएस के हिंदुत्व आइकन वीडी सावरकर हैं। सावरकर ने1940 के दशक की शुरुआत में ब्रिटिश सेना के लिए भर्ती शिविर आयोजित किए थे। यह वह समय था जब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आजाद हिंद सेना का गठन कर भारत को मुक्त कराने की कोशिश कर रहे थे।
संघी तत्व भारतीय सेना के जवानों के लिए प्रति बहुत लगाव व्यक्त करते हैं परंतु उन्होंने अपने स्वयं सेवकों को भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए कभी प्रेरित नहीं किया। उनके अनुसार गरीब किसान और निचले तबके के परिवारों के युवा सशस्त्र बलों में भर्ती होंगे, अपने जीवन का बलिदान करेंगे। आरएसएस, टाटा, अम्बानी, अदानी, बिड़ला, राजनीतिक नेता, प्रशासक, धार्मिक नेताआें के बच्चे या परिवार के सदस्य और सत्ताधारी उनकी मृत्यु का शोक मनाएंगे। आरएसएस से संबंधित हिंदुत्ववादी नेताओं और मीडिया घरानों के मालिकों काे युद्ध से बहुत प्रेम है तो वे अपने परिवार के सदस्यों के नाम बताए, जो भारतीय सशस्त्र बलों में सेवा दे रहे हैं?
पुलवामा हमला : सुरक्षा चूक और राजनैतिक असफलता की जिम्मेदारी ले मोदी सरकार
(6) क्या यह सच नहीं है कि यह दूसरा अवसर है जब आरएसएस-भाजपा शासकों के बचाव में जैश-ए-मोहम्मद आगे आया है?
जैश-ए-मोहम्मद ने 13 दिसंबर, 2001 को भारतीय संसद पर हमला किया, जिसमें दिल्ली पुलिस के छह जवान, संसद सुरक्षा के दो अधिकारी और एक माली की जान गई थी। हमला जिस समय हुआ उस वक्त देश में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार थी। आरएसएस के एक वरिष्ठ विचारक, अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे। देश में उनकी नव उदारवादी और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष समर्थक नीतियों का जबरदस्त विरोध हो रहा था। सरकार इस प्रतिरोध को कुचलने पर आमादा थी और उसने इसे राष्ट्र विरोधी कृत्य करार दिया गया था।
गाैरतलब है कि दो शक्तिशाली आतंकवाद विरोधी कानून- पोटो और टाडा (आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (POTO) और आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (TADA) पहले से थे। वाजपेयी सरकार इतने सं संतुष्ट नहीं थी, उसने 2002 में आतंकवाद निरोधक अधिनियम(POTA) पेश किया। राज्यसभा में यह विधेयक परास्त हो गया था। लेकिन संसद पर हमले के बाद विपक्ष ने जमकर हंगामा किया। जैश-ए-मोहम्मद के द्वारा प्रायोजित इस हमले के बदौलत अंततः पोटा पारित हो गया।
जैश-ए-मोहम्मद द्वारा प्रायोजित पुलवामा जनसंहार ऐसे समय हुआ है जब मोदी के नेतृत्व वाली आरएसएस/भाजपा सरकार को हिंदी भाषी क्षेत्र में करारी चुनावी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। यहां उसका जनआधार सिमटता जा रहा है। विमुद्रीकरण के दुष्परिणाम, बेरोजगारी, राफेल और अन्य सौदों में भ्रष्टाचार के आरोप, किसानों की आत्महत्याओं की संख्या बढ़ना, महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ रही हिंसा, शिक्षा का निजीकरण, हिंदुओं को हिंदुओं के ही खिलाफ खड़ा करने वाले नागरिकता (संशोधन) विधेयक की नाकामयाबी, प्रधान मंत्री मोदी के करीबी लोगों के द्वारा बैंकों की लूट और राष्ट्रीय संस्थानों की तबाही इन सब हालातों में मोदी के प्रबल समर्थकों को भी स्पष्ट हो चुका था कि 2019 में उनकी सत्ता में वापसी संदिग्ध है।
जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी हमले के इस दुस्साहसक के कारण परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। उपरोक्त सभी मुद्दे पीछे चले गए हैं। आरएसएस/भाजपा के कार्यकर्ता जो सार्वजनिक जीवन में नजर आना बंद हो गए थे, बदला लेने, नफरत फैलाने और पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की मांग के नारे लगाते हुए सड़कों पर आ गए हैं। ऐसा लगता है कि आरएसएस/भाजपा के हुक्मरानों के अनुसार पुलवामा नरसंहार के लिए इससे बेहतर और अधिक उपयुक्त समय और नहीं हो सकता था। इतिहास में यह दूसरा मौका है, जब सबसे अधिक वांछित आतंकवादी, अजहर मसूद हिंदुत्व संगठनों के बचाव के लिए सामने आया है। केवल भविष्य ही बताएगा कि क्या भारत में लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष राज्य व्यवस्था बरकरार रहेगी या इन गिरोहों की साज़िशें कामयाब होंगी।
19 फरवरी, 2019
अनुवाद : कमल सिंह
संदर्भ
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