नई दिल्ली। एनजीओ किंग, आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल असल राजनीति में आकर फँस तो नहीं गए हैं? क्योंकि राजनीति में प्रवेश न करके राजनीतिज्ञों को गाली देना बड़े फायदा का सौदा है लेकिन राजनीति में आने पर जनता सवाल भी करती है। दिल्ली में आप की सरकार बने या न बने लेकिन सवाल उठने शुरू हो गए हैं। अब ये सिलसिला शुरू हुआ है तो देश की तमाम समस्याओं पर आप को जवाब भी देने होंगे क्योंकि मुख्यधारा की राजनीति, कवि सम्मेलन का मंच नहीं है जहाँ आप सड़कछाप चुटकले सुनाकर भी छा जाएं। राजनीति हर मुद्दे पर आपका पक्ष जानना चाहती है।
खबर है कि अनुसूचित जाति/जनजाति संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ और जस्टिस पार्टी के अध्यक्ष उदितराज ने दिल्ली में आगामी 16 दिसंबर को आयोजित रैली में आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को आरक्षण पर अपना पक्ष रखने के लिए बुलावा दिया है।एक विद्वान नेता के रूप में पहचान रखने वाले उदितराज पिछले करीब डेढ् दशक से राजनीति में सक्रिय हैं। वे शुरू से ही नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के भी विरोधी रहे हैं, जिनका आरक्षण के संवैधानिक प्रावधानों के साथ छत्तीस का रिश्ता है। लेकिन उदितराज के इस निमंत्रण पर सवाल उठना शुरू हो गए हैं। सोशलिस्ट पार्टी ने कहा है “हैरानी की बात यह है कि उदितराज को अभी तक अरविंद केजरीवाल का आरक्षण पर पक्ष पता नहीं है। यह आम जानकारी की बात है कि केजरीवाल और उनके सिपहसालार मनीष सिसोदिया आरक्षण विरोधी, दक्षिणपंथी और सवर्णवादी हैं। इसके प्रमाणस्वरूप इन दोनों लोगों के एनजीओ, इनके द्वारा बनाई ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ की टीम और अब ‘आम आदमी पार्टी’ के भागीदारों, विचारों और गतिविधियों को देखा जा सकता है।“
सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रेम सिंह ने कहा है कि 2006 में केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आईआईटी, मेडिकल कॉलिज और प्रबंधन संस्थानों में पिछड़ा वर्ग के
छात्रों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के सरकार के फैसले का विरोध करने के लिए बने संगठन ‘यूथ फॉर इक्वेलिटी’ के गठन, फंडिंग और नेतृत्व में इन दोनों की संलिप्तता जगजाहिर है। सोशलिस्ट पार्टी ने उदितराज से निवेदन किया है कि वे लगे हाथ यह भी पूछ लें कि मंडल आयोग की सिफारिशें लागू होने पर फैली आरक्षण विरोधी आग के दौरान केजरीवाल का क्या पक्ष था!
डॉ. प्रेम सिंह ने कहा कि उदितराज कारपोरेट पूंजीवाद के चरित्र की गहरी परख रखते हैं। केजरीवाल और उनकी पार्टी कारपोरेट पूंजीवाद की सीधी उपज हैं और कारपोरेट पूंजीवाद में आरक्षण का सिद्धांत मान्य नहीं होता। केजरीवाल पिछड़ा वर्ग के ही नहीं, दलित वर्ग के आरक्षण के भी विरोधी हैं। उदितराज को समझना चाहिए कि केजरीवाल को कारपोरेट घरानों और देशविदेश के अगड़े सवर्णों का आर्थिक और राजनीतिक समर्थन इसीलिए मिला है। उस समर्थन के बल पर वे सत्ता के भूखे दलितों और पिछड़ों को साथ लेकर कारपोरेट और सवर्ण हितों की राजनीति करना चाहते हैं। बाबा साहेब अंबेडकर के शब्दों में यह ‘राजनीतिक डाकाजनी’ है।
सोशलिस्ट नेता ने कहा कि हो सकता है रैली में केजरीवाल एससी/एसटी के आरक्षण का समर्थन कर दें। लेकिन वह उनका राजनीतिक पैंतरा भर होगा, सच्चाई नहीं। सांप्रदायिक राजनीति के रास्ते एक हद तक चुनावी कामयाबी हासिल करके नरेंद्र मोदी भी अपने को आगे चल कर धर्मनिरपेक्ष नेता बता सकते हैं। अटलबिहारी वाजपेयी और अडवाणी पहले यह कर चुके हैं। फिर भी उदितराज ने सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने वाली बहुत सी पार्टियों और नेताओं को छोड़ कर केजरीवाल को न्यौता दिया है तो यह सत्ता के गलियारे में उगते सूरज को सलाम करने जैसा है। सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि उनके इस फैसले से नवउदारवाद का विरोध करने वाली समाजवादी/ सामाजिक न्यायवादी राजनीति का पक्ष कमजोर होगा। सोशलिस्ट पार्टी ने उदितराज से निवेदन किया है कि संविधान और बहुजन समाज के पक्ष में उन्हें अपना निमंत्रण वापस ले लेना चाहिए।