महिलाओं को ऐसे बहुत सारे अधिकार प्राप्त (Rights to women) हैं, जिनकी
जानकारी के अभाव में उन्हें अकसर परेशान होना पड़ता है। तो आइये जानते हैं उन
कानूनी अधिकारों के बारे में जिनके बारे में उनका जागरूक होना बेहद ज़रूरी है-
छेड़छाड़, बलात्कार या किसी भी तरह के उत्पीड़न संबंधी फर्स्ट इन्फार्मेशन रिपोर्ट (FIR) किसी भी थाने में दर्ज कराई जा सकती है, भले ही अपराध संबंधित थाना क्षेत्र में हुआ हो या न हुआ हो। वह थाना उस रिपोर्ट को संबंधित थाने को ट्रांसफर कर सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी पहचान
बना रही हैं और साथ ही संविधान में मिले अधिकारों और अवसरों का भरपूर लाभ उठा रही
हैं। घर की रसोई छोड़ औरत दहलीज से बाहर निकली है। कॉलेज जाती है, नौकरी
करती है, मेहनत करती है, घर चलाती है और भविष्य को लेकर गंभीरता
से सोचने की हैसियत रखती है। ऐसे में उसके आसपास कुंठित अपराधों का तेजी से बढ़ना
एक सामान्य बात हो गई है, लेकिन ज़रूरत है उन अपराधों और महिला
अधिकारों के प्रति जागरूक रहने की।
कई बार ऐसा होता है, कि औरत खुद में ही अपनी परेशानी झेलती
रही है, किसी से कुछ नहीं कहती इस डर से कि कुछ हो नहीं सकता, कोई
कर भी क्या लेगा, लेकिन ठहरिये आप शायद ये भूल रही हैं कि आपको ऐसे कई अधिकार प्राप्त
हैं जिनकी जानकारी आपको नहीं है।
मार्च 1972 में, एक आदिवासी लड़की का पुलिस थाने में ही
पुलिसकर्मियों ने बलात्कार कर दिया था। इस मामले में शोर इसलिए मचा था, क्योंकि
जिन पर लड़की की सुरक्षा की जिम्मेदारी
एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स के मुताबिक साल 2005 से 2010 के बीच
पुलिस थानों में बलात्कार के लगभग 40 मामले (Rape cases in police stations)
सामने आये थे, जबकि ये भी सच है कि जितने मामले सामने आते हैं उससे कहीं अधिक घटित
हुए होते हैं। यदि हम सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों पर जायें तो किसी भी महिला
को सूरज डूबने के बाद या सही शब्दों में कहें तो शाम 5:30 के बाद थाने में नहीं
रखा जा सकता और तो और पूछताछ के दौरान महिला के साथ किसी महिला अफसर की उपस्थिति
भी अनिवार्य है, लेकिन देखा जाता है महिलाओं को फिर भी परेशान किया जाता है और इस तरह
के मामलों में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिसकी सबसे बड़ी
वजह है कानूनी अधिकारों की सही जानकारी का न होना।
महिलाओं को ऐसे बहुत सारे अधिकार प्राप्त हैं, जिनकी जानकारी
के अभाव में उन्हें अकसर परेशान होना पड़ता है। तो आइये जानते हैं उन कानूनी
अधिकारों के बारे में जिनके बारे में उनका जागरूक होना बेहद ज़रूरी है-
औरत कर सकती है किसी भी पुलिस स्टेशन में एफआईआर छेड़छाड़, बलात्कार
या किसी भी तरह के उत्पीड़न संबंधी फर्स्ट इन्फार्मेशन रिपोर्ट किसी भी थाने में
दर्ज कराई जा सकती है, भले ही अपराध संबंधित थाना क्षेत्र में हुआ हो या न हुआ हो। वह थाना
उस रिपोर्ट को संबंधित थाने को ट्रांसफर कर सकता है। केंद्र सरकार ने निर्भया
मामले के बाद सभी राज्यों को अपराध होते ही जीरो एफआईआर करने को कह दिया था और
पुलिस यदि किसी महिला की शिकायत दर्ज करने से मना कर दे तो संबंधित पुलिस अधिकारी
के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
किसी भी मामले में नाम आने पर पुलिस या मीडिया किसी के भी पास ये अधिकार नहीं है, कि वे संबंधित महिला का नाम उजागर करें। पीड़िता का नाम उजागर करना भारतीय दंड संहिता के तहत दंडनीय अपराध है। ऐसा पीड़िता को सामाजिक उत्पीड़न से बचाने के लिए किया जाता है। बलात्कार की शिकार महिला (Rape victim) अपना बयान सीधे-सीधे जिला मजिस्ट्रेट को दर्ज करा सकती है, जहां किसी और की उपस्थिति ज़रूरी नहीं है।
यदि किसी वजह से महिला पुलिस स्टेशन नहीं जा सकती है या फिर उसे इस
बात का डर है कि बाहर निकलने से अपराधी उसे फिर से कोई नुकसान पहुंचा देगा तो ऐसे
में संबंधित महिला मेल या डाक के द्वारा डिप्टी कमिश्नर या कमिश्नर स्तर के किसी
अधिकारी के सामने लिखित में अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है। शिकायत मिलने के बाद वो
अफसर/ अधिकारी संबंधित थानाधिकारी को मामले की सच्चाई को परखने की कार्रवाई का
निर्देश देता है। मेल द्वारा शिकायत करना काफी आसान है। ऑनलाइन फॉर्म भरने के बाद
महिला को एक एसएमएस प्राप्त होता है, जिसमें एक ट्रैकिंग नंबर भेजा जाता है।
पहले बलात्कार पीड़िता की मेडिकल जांच पुलिस में मामला दर्ज होने के
बाद होती थी, लेकिन अब फॉरेंसिक मेडिकल केयर फॉर विक्टिम्स ऑफ सेक्सुअल असाल्ट
(Forensic Medical Care
for Victims of Sexual Assault) के दिशा निर्देशों के अनुसार बलात्कार
पीड़िता एफआईआर दर्ज कराये बगैर भी डॉक्टरी परीक्षण के लिए डाक्टर मांग सकती है।
कुछ मामलों में तो पुलिसकर्मी ही पीड़िता को जांच कराने के लिए हॉस्पिटल ले जाता
था। अब मेडिकल मुआयना करवाने से पहले पीड़िता को डॉक्टर को सारी प्रक्रिया समझानी
होती है और उसकी लिखित सहमति लेनी होती है। पीड़िता यदि चाहे तो मेडिकल टेस्ट देने
से मना भी कर सकती है।
जिस महिला का बलात्कार हुआ है, वो कानूनी मदद
के लिए मुफ्त मदद मांग सकती है और ये जिम्मेदारी स्टेशन हाउस अधिकारी की होती है,
कि
वो विधिक सेवा प्राधिकरण को वकील की व्यवस्था करने के लिए जल्द से जल्द सूचित करें।
साथ ही यौन उत्पीड़न (sexual harassment) के अलावा
महिलाओं के और भी ऐसे कई अधिकार हैं, जिनकी कानूनी तौर पर जानकारी बेहद
ज़रूरी है, जैसे- पारिश्रमिक अधिकार, कार्य क्षेत्र में उत्पीड़न के खिलाफ
अधिकार, घरेलू हिंसा के खिलाफ अधिकार, काम काजी
महिलाओं के लिए मातृत्व लाभ संबंधी अधिकार, भ्रूण हत्या के
खिलाफ अधिकार और पुश्तैनी संपत्ति अधिकार।
हमारा कानून उतना भी हल्का नहीं है कि अपराधी अपराध करके बच निकले।
बस कमी शिक्षा और ज्ञान की है, साथ ही हमारी सामाजिक संरचना इस तरह की
है, कि बदनामी जैसा डर भी औरत को परेशान करता है। वो सोचती है, समाज
क्या कहेगा, लोग क्या कहेंगे, घर वाले क्या कहेंगे, पति
बच्चे सब क्या सोचेंगे... तो इन सभी बातों को एक तरफ रखकर अपने साथ होने वाले हर
अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठायें। लेकिन साथ ही इस बात का भी खयाल रखें, कि
कानून से मिले इन अधिकारों का कभी गलत इस्तेमाल न करें। सिर्फ किसी को नीचा दिखाने
या किसी को परेशान करने के लिए किसी निर्दोष को सजा न होने दें। क्योंकि ये
प्रक्रियाएं खेल या ट्रायल के लिए नहीं बनीं है। यदि कोई अवांछनीय घटना आपके साथ
घटी है तो खामोश न बैठें, क्योंकि अपराधी को सजा दिलाना आपका
कानूनी अधिकार है।
(देशबन्धु)