Hastakshep.com-Opinion-dreaded terrorist-dreaded-terrorist-Literal meaning of taliban-literal-meaning-of-taliban-Taliban cruelty-taliban-cruelty-Taliban's cruelty-talibans-cruelty-Talib-e-ilm-talib-e-ilm-अफगानिस्तान-aphgaanistaan-ओसामा बिन लादेन-osaamaa-bin-laaden-खूंखार आतंकवादी-khuunkhaar-aatnkvaadii-तालिब-ए-इल्म-taalib-e-ilm-तालिबानों की क्रूरता-taalibaanon-kii-kruurtaa

क्या हैं तालिबानों की क्रूरता के कारण ? What are the reasons for the Taliban's cruelty ?

तालिबान के शाब्दिक अर्थ (Literal meaning of taliban) तो वैसे इच्छुक, चाहने वाला अर्थात् तलबगार आदि के होते हैं। जैसे तालिब इल्म अर्थात् इल्म या विद्या का चाहने वाला या ज्ञान ग्रहण करने वाला। छात्र को तालिब-ए-इल्म (Talib-e-ilm) कहा जाता है। परंतु आज दुनिया में जिन तालिबानों ने इस शब्द की छवि को ध्वस्त कर रखा है उन तालिबानों का नाम सुनकर ही हम लोगों के ज़ेहन में सिर्फ एक खूंखार आतंकवादी (dreaded terrorist) का चेहरा सामने आता है। गोया तालिबान का अर्थ आज के दौर में सिर्फ यह रह गया है कि हाथों में आधुनिक ए के 47 लिए हुए, कंधे पर रॉकेट लांचर लादे हुए, सिर पर साफा, हाथों में हथियार, क्रूरता की इंतेहा, औरतों, बुज़ुर्गों पर ज़ुल्म, शिक्षण सस्थाओं के दुश्मन, अफीम के उत्पादक एवं सौदागर, विकास के सख्त विरोधी तथा जंगलीपन व वहशीपन को अपनी विरासत समझने वाले लोग तथा इसी विरासत को अपनी आने वाली नस्लों को भी हस्तांरित करने वाला एक वर्ग विशेष।

प्रश्र यह है कि तालिबानों की इस क्रूरता,आक्रामकता, जहालत तथा अमानवीयता के पीछे वास्तविक रहस्य है क्या? क्यों यह तालिबान आज इंसान के रूप में दिखाई देने वाले राक्षस बने हुए हैं? इन्हें आखिर क्रूरता की प्रेरणा कहां से मिल रही है।

तालिबान का इतिहास History of Taliban in Hindi

वैसे तो इतिहास यही बताता है कि अफगानिस्तान के कबायली इलाकों में तथा पाक सीमा से लगते वज़ीरिस्तान क्षेत्र जिसे फ़ाटा के नाम से जाना जाता है,के हज़ारों वर्ग किलोमीटर के इलाके में इस कबायली समुदाय का हमेशा से ही दबदबा रहा है। किसी के अधीन रहना अथवा अपनी संस्कृति व स यता को

लेकर समझौता करना इनकी फि़तरत में शामिल नहीं है।  बदलते समय के साथ-साथ बदलना इन्हें हरगिज़ पसंद नहीं है। आधुनिकता तथा विकास इन्हें कतई नहीं भाता। चूंकि यह कौम इस्लाम की मानने वाली है लिहाज़ा अल्लाह के सिवा किसी और बड़ी से बड़ी सांसारिक शक्ति से डरना इन्हें बिल्कुल नहीं आता। और यही वजह थी कि इस कबायली समुदाय ने ब्रिटिश हुक्मरानों को उस समय अपने क्षेत्र में प्रवेश नहीं करने दिया जबकि पूरी दुनिया में अंग्रेज़ी हुकूमत का बोलबाला था। उस समय इनका नाम तालिबानी तो नहीं था परंतु इसी नस्ल के जंगजू लोगों ने अपने जुझारूपन तथा आक्रामकता के बल पर तत्कालीन आधुनिक व शक्तिशाली बरतानवी फ़ौजों को अपने इसी क्षेत्र से खदेड़ भगाया था। और उस समय अंग्रेज़ों का उस क्षेत्र में न टिक पाना ही इस बात की वजह समझा जा सकता है कि उस इलाके का तबसे लेकर अब तक कोई विकास नहीं हो सका। सड़कों व उद्योगों की कमी रही और आधुनिकता की चकाचौंध से यह क्षेत्र दूरा रहा। यह घटना तो इस बात का प्रमाण है कि तालिबानी कौम स्वभावत: शुरु से ही आक्रामक है तथा किसी से भी न डरने वाली एक लड़ाका प्रवृति की कौम है।

समय बीतने के साथ-साथ इन्हें यह एहसास भी होने लगा कि अपनी स्वायता  तथा संस्कृति की रक्षा करने के लिए सत्ता पर भी अपनी पकड़ होनी ज़रूरी है। उधर दूसरी ओर अफगानिस्तान पर वर्चस्व को लेकर तत्कालीन सोवियत संघ व अमेरिका में शीत युद्ध चल रहा था।

अफगानिस्तान में सोवियत समर्थक डा. मोहम्मद नजीबुल्ला, जोकि पीपुल्स डेेमोक्रेटिक पार्टी से संबद्ध थे, अफगानिस्तान के सातवें राष्ट्रपति थे। चूंकि वे सोवियत समर्थक थे इसलिए अमेरिका ने उस समय तालिबानों की सहायता से नजीब को अपदस्थ करने की ठानी। अफगानिस्तान विद्रोह तथा गृह युद्ध जैसी स्थिति से गुज़रने लगा। कई कबिलाई नेता टैंकों व बस्तर बंद गाड़ियों से लैस होकर आमने-सामने आ गए। कबाईलियों ने सोवियत फौजों को अमेरिकी सहायता से देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया। हालांकि अहमद शाह मसूद ने उस समय राष्ट्रपति नजीब को यह सलाह दी थी कि वे देश छोड़कर चले जाएं। अन्यथा तालिबान उनके साथ कोई बुरा सुलूक भी कर सकते हैं। परंतु नजीब को विश्वास था कि तालिबान उनके साथ कोई अभद्र व्यवहार नहीं करेंगे।

विद्रोह बढ़ जाने तथा अपनी सत्ता डगमगाती देख राष्ट्रपति नजीब काबुल स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ के भवन में पनाह लेने चले गए। परंतु उग्र तालिबानों की निर्मम भीड़ ने उन्हें वहां भी नहीं छोड़ा। 27 सितंबर 1996 को तालिबानों ने नजीब को पकड़ लिया। 28सितंबर तक उन्हें सरेआम सड़कों पर घूम-घूम कर खूब यातनाएं दीं। उनकी उंगलियां काट डालीं। उन्हें ट्रक में बांधकर खींचा। यह पूरा नज़ारा नजीब के भाई शाहपुर अहमद ज़ई भी उनके साथ देखते रहे। उन्हें भी तालिबानों ने खूब प्रताडि़त किया और बाद में गोली मार दी।

अगले ही दिन नजीब की हत्या कर उनका मृत शरीर तालिबानों ने काबुल के आर्याना स्कवायर पर खंभे पर लटका दिया।

इस घटना ने तालिबानों की क्रूरता (Taliban cruelty) को जगज़ाहिर कर दिया और उसी समय दुनिया को यह संदेश भी मिल गया कि तालिबान अब केवल धर्म की नहीं बल्कि सत्ता की बात भी करने लगे हैं। दुनिया आज भलीभांति यह भी जानती है कि तालिबानों को उस समय आक्रामक बनाने में तथा उन्हें भरपूर हथियार उपलब्ध कराने में आज के उसी अमेरिका की महत्वपूर्ण भूमिका थी जो आज स्वयं उन्हीं तालिबानों का सबसे बड़ा दुश्मन बन चुका है।

उपरोक्त घटना के बाद तालिबानों के हौसले इस कद्र बढ़ गए कि अब वे आम लोगों को तुच्छ समझने लगे। समय बीतने के साथ-साथ इन्हें पहले मुल्ला मोहम्मद उमर और बाद में ओसामा बिन लादेन जैसे खूंखार प्रवृत्ति के लोगों का नेतृत्व मिल गया।

लादेन व मुल्ला उमर ने इन तालिबानों को वृहद् इस्लामी साम्राज्य का नक्शा (Map of large islamic empire) समझा दिया। बस लड़ाकू प्रवृति का यह समुदाय आंख मूंदकर इस्लामी साम्राज्य की स्थापना करने के लादेन व मुल्ला उमर के मिशन पर अमल करने लगा। नजीब की हत्या के बाद इन दुर्दांत अतिवादियों ने जहां अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्ज़ा कर देश की राजधानी काबुल के बजाए कंधार स्थानांतरित कर डाली वहीं इन्होंने पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी ज़बरदस्त घुसपैठ की। अफगान-पाक सीमा के कबाईली क्षेत्रों में जहां तालिबानों ने स्वयं मोर्चा संभाला वहीं पाकिस्तान में तहरीक-ए- तालिबान नामक संगठन को सक्रिय कर दिया। इनके मिशन में पाकिस्तान पर भी अपनी हुकूमत का झंडा लहराना शामिल था। परंतु 9/11को अमेरिका पर हुए आतंकी हमले के बाद तो अफगानिस्तान का विशेषकर तालिबानों का परिदृश्य ही बदल गया। विश्व की सबसे बड़ी ताकत अमेरिका अपने नाटो देशों के सहयोगियों के साथ कुछ समय के लिए तालिबानों को अफगानिस्तान की सत्ता से उखाड़ फेंकनें में सफल रहा। अमेरिकी कोशिशों के चलते काबुल पुन: राजधानी बना। परंतु मात्र 2 वर्षों के अंतराल के बाद ही तालिबान अपने इसी क्रूर व आक्रामक स्वभाव की बदौलत पुन: संगठित हो गए।

अब आज की स्थिति यह है कि वही तालिबान अफगानिस्तान के बड़े हिस्से पर अपना वर्चस्व पुन: कायम कर चुके हैं। अफगानिस्तान के आम लोगों पर ज़ुल्म ढाने की बातें क्या करनी अब तो नाटो के सैन्य  क़ाफिले अथवा उनके सैन्य बेस कैंप, तेल डिपो या टैंकरों के क़ाफिले कुछ भी तालिबानों के निशाने से बच नहीं सके हैं।

ताज़ातरीन खबरों के अनुसार तालिबानों ने नाटो सेना द्वारा अपने आठ लड़ाकों की हत्या किए जाने के बदले में एक अमेरिकी हैलीकॉप्टर को मार गिराया जिसमें 31 अमेरिकी जवान मारे गए तथा 7 अफगाऩ फौजी भी मारे गए।

खबर तो यह भी है कि इस हैलीकॉप्टर में अमेेरिकी सील कमांडो के वह जवान भी शामिल थे जिन्होंने पिछले दिनों एबटाबाद में अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लाडेन को मार गिराया था। अभी कुछ दिन पूर्व ही 8 सैनिकों के सिर काट देने की वारदात भी इन्हीं तालिबानों ने अंजाम दी थी। हद तो यह है कि यह मानवता के दुश्मन अपने ऐसे वीभत्स कारनामों की वीडियो भी बनवाते हैं तथा दुनिया को अपनी क्रूरता दिखाने के लिए इसे सार्वजनिक भी करते हैं।

लगभग तीन दशकों से गोला,बारूद,टैंक,तोप रॉकेट जैसे माहौल में जीने वाला यह तालिबानी समाज अब इन्हीं तीन दशकों में होश संभालने वाली अपनी नई नस्ल को भी विरासत में यही क्रूरता,खून-खऱाबा, हठधर्मी,जहालत व कट्टरता सुपुर्द कर चुका है। लिहाज़ा यह कहा जा सकता है ज़ुल्मो-सितम व क्रूरता अब इनके खून में बस चुकी है।

दूसरी बात यह भी है कि युद्ध, कबीलाई संग्राम, राजनैतिक अस्थिरता तथा विद्रोह जैसे वातावरण ने अफगानिस्तान को गरीब से और भी गरीबतर देश बना दिया है। कल तक जो अफगानिस्तान सूखे मेवे तथा तरह-तरह के फलों के लिए विश्वप्रसिद्ध था आज वही देश तालिबानों की गिरफ्त  में आने के बाद अफीम की खेती पर आश्रित होकर रह गया है। जहां की मेहमान नवाज़ी कभी पूरी दुनिया में जानी जाती थी वही देश अब नफरत,कट्टरता व क्रूरता के लिए जाना जाने लगा है। परिणामस्वरूप वहां कोई भी देश अथवा निवेशक उद्योग लगाना नहीं चाहता। पर्यटक वहां जाने से गुरेज़ करते हैं। वहां के विकास व निर्माण कार्यों पर लगे तमाम लोगों के अपहरण हो चुके हैं व उनकी हत्याएं की जा चुकी हैं। इसके अतिरिक्त तालिबानों के साथ शस्त्र उठाने वालों में गत् कुछ वर्षों में तमाम ऐसे लोग भी शामिल हुए हैं जिनके परिवार के किसी सदस्य की नाटो सैनिकों द्वारा बेवजह हमला कर हत्याएं कर दी गई हैं। कुल मिलाकर गऱीबी,बेरोज़गारी,अशिक्षा तथा अपने दुश्मन से बदला लेने की भावना ने भी तालिबानों को क्रूर से क्रूरतम बना दिया है।

और आज यही अमानवीयता के प्रतीक बन चुके तालिबान स्वयं को पुन: इतना मज़बूत कर चुके हैं कि कल तालिबानों को अफगानिस्तान से जड़ से उखाड़ फेंकने का दावा करने वाला तथा उसे अफगानिस्तान की सत्ता से बेदखल करने वाला अमेरिका आज स्वयं उन्हीं तालिबानों को पीठ दिखाने के लिए तैयार बैठा है। और तालिबान हैं कि अमेरिका के अफगानिस्तान से जाते-जाते अमेरिकी सैनिकों पर बड़े से बड़ा प्रहार करने से बाज़ नहीं आ रहे।

हम कह सकते हैं कि अफगानिस्तान में अस्थिरता के गत् तीन दशकों ने ही तालिबानों को क्रूर,निर्दयी तथा मानवता का दुश्मन बना दिया है।

तनवीर जाफरी

Taliban are now talking not only about religion but also about power.

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