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Demand to include Bhojpuri in eighth schedule of constitution

नई दिल्‍ली: भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग  ()एक बार फिर बहुत जोर-शोर से उठाई गई है। अवसर था भोजपुरी समाज दिल्‍ली द्वारा इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (India International Center) में आयोजित समाज के अध्‍यक्ष अजीत दुबे द्वारा लिखित पुस्‍तक “तलाश भोजपुरी भाषायी अस्मिता की” के विमोचन का। पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री एवं राज्‍यपाल डॉं. भीष्‍मनारायण सिंह की अध्‍यक्षता में तथा सांसद शत्रुघ्‍न सिन्‍हा, जगदम्बिका पाल व मनोज तिवारी तथा वरिष्‍ठ पत्रकार राम बहादुर राय की उपस्थिति में सम्‍पन्‍न इस कार्यक्रम में भोजपुरी की संवैधानिक मान्‍यता के मुद्दे पर खूब खुलकर बातें हुईं तथा सरकार से इस मुद्दे पर जल्‍द से जल्‍द अपेक्षित कार्रवाई की जाने की मांग की गई।

गौरतलब है कि मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्‍ली के उपाध्‍यक्ष अजीत दुबे की यह पुस्‍तक भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के अभियान के विशेष संदर्भ में ही लिखी गई है।

What does it mean for a language to be included in the eighth schedule

किसी भाषा के आठवीं अनुसूची में शामिल होने का अर्थ क्‍या है, ऐसा होने से उस भाषा को लाभ क्‍या होते हैं, पिछली सरकारों ने अगर आज तक 22 भारतीय भाषाओं को 8वीं अनुसूची में शामिल किया तो भोजपुरी को यह सम्‍मान प्रदान करने में सरकारें हिचकिचाती क्‍यों रहीं, इस मुद्दे को लेकर संसद से सड़क तक क्‍या प्रयास किए गए हैं, आखिर वे बाधाएं क्‍या हैं जो भोजपुरी की राह में रोड़े अटका रही हैं, इस मुद्दे पर सरकार का अब तक का रूख क्‍या रहा है, सरकार ने अब तक इस दिशा में किया क्‍या है, इन तमाम प्रश्‍नों के जवाब अजीत दुबे की इस पुस्‍तक में मौजूद है।

पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा मैथिली-भोजपुरी अकादमी (Maithili-Bhojpuri Academy,), दिल्‍ली के उपाध्‍यक्ष मनोनीत किए गए अजीत दुबे ने अपने संबोधन में पिछली यूपीए

सरकार द्वारा भोजपुरी की उपेक्षा किए जाने की बात कहते हुए वर्तमान सरकार से यह आग्रह किया कि वह भोजपुरी को संवैधानिक मान्‍यता प्रदान करे। उन्‍होंने कहा कि इस बारे में पिछली सरकार ने पांच बार आश्‍वासन दिया, लेकिन इस संबंधी बिल तक पेश नहीं किया गया। भोजपुरी क्षेत्र के सांसदों से अपनी भाषा के सम्‍मान के इस मुद्दे को अपनी प्राथमिकताओं में रखने की अपील करते हुए उनसे संसद में इस मुद्दे को उठाने की मांग की।

इस अवसर पर बोलते हुए डॉ. भीष्‍मनारायण सिंह ने कहा कि “पुस्तक में भोजपुरी भाषा की अस्मिता से संबंधित लेखक के विचार बहुत ही सराहनीय हैं और इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। इस लोक कृत्य के लिए उनकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, वह कम है।”

सांसद शत्रुघ्‍न सिन्‍हा ने कहा कि भोजपुरी को संवैधानिक मान्‍यता अवश्‍य मिलनी चाहिए और विश्‍वास है कि मिलेगी।

सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि उन्‍होंने श्री दुबे को पिछले 20 वर्षों से भोजपुरी को सजाते-संवारते हुए देखा है, भोजपुरी के लिए छटपटाते देखा है, उनकी यह पुस्‍तक बहुत उपयोगी है। उन्‍होंने कहा कि अपनी भाषा के प्रति संजीदा न होना ही भोजपुरी की संवैधानिक मान्‍यता की राह की असली रूकावट है और अगर हम ठान लें तो कोई शक्ति भोजपुरी को रोक नहीं सकती। आज न कल भोजपुरी संविधान की आठवीं अनुसूची में अवश्‍य शामिल  होगी।

वरिष्‍ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने कहा कि श्री दुबे की यह पुस्‍तक केवल भोजपुरी की अस्मिता वाली किताब नहीं है बल्कि उनके और हमारे लिए ब्रह्मास्‍त्र है। यह पुस्‍तक पाठ करने लायक है।

उन्‍होंने यह भी कहा कि भोजपुरी की संवैधानिक मान्‍यता से हिन्‍दी को नुकसान नहीं होगा अपितु इससे हिन्‍दी का संकट कम होगा।

कार्यक्रम का संचालन प्रो. संजीव तिवारी ने किया तथा धन्‍यवाद प्रस्‍ताव समाज के वरिष्‍ठ उपाध्‍यक्ष प्रभुनाथ पाण्‍डेय ने दिया।

इस अवसर पर महामंत्री एल. एस. प्रसाद, संयोजक विनयमणि त्रिपाठी, संपादक अरविन्‍द गुप्‍ता व सनत दुबे आदि सहित अनेक कवि, लेखक, वकील, अध्‍यापक, समाजसेवी, पत्रकार व अन्‍य बुद्धिजीवी उपस्थित थे। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में दी गई।

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