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सऊदी अरब और इस्राईल के हथियारों ने मध्यपूर्व की शांति को अशांति में बदल दिया है
संयुक्त राष्ट्रसंघ में ईरानी राजदूत के सहायक ग़ुलाम हुसैन देहक़ानी ने क्षेत्रीय देशों को हथियार निर्यात करने और जायोनी शासन को विभिन्न प्रकार के हथियारों से लैस किये जाने को मानवाधिकार के अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन बताते हुए कहा है कि सऊदी अरब की आक्रामक नीति से पश्चिमी देशों के लिए हथियारों के निर्यात का मार्ग प्रशस्त हो गया है।

निरस्त्रीकरण कमेटी की वार्षिक बैठक में अपने भाषण में ग़ुलाम हुसैन देहक़ानी ने सऊदी अरब, जायोनी शासन और क्षेत्र के दूसरे पक्षों को लगातार हथियार बेचे जाने के परिणामों के बारे में चेतावनी दी।

ईरानी समाचार पोर्टल parstoday पर प्रकाशित ख़बर के मुताबिक देहकानी ने पश्चिम एशिया में कुछ पक्षों को बड़ी मात्रा में आधुनिकतम हथियार बेचे जाने के बारे में कहा कि ईरान अस्थिर बनाने वाले कारकों और इसी प्रकार क्षेत्र विशेषकर सऊदी अरब और इस्राईल को हथियारों के निर्यात से चिंतित है।

पश्चिम विशेषकर अमेरिका ने फारस की खाड़ी के अरब देशों को हथियारों की विस्तृत बिक्री को अपनी कार्यसूची में शामिल कर रखा है जबकि इन हथियारों ने क्षेत्र की शांति व सुरक्षा को लक्ष्य बना रखा है।
अमेरिका और ब्रिटेन हालिया वर्षों में अरबों डॉलर का हथियार सऊदी अरब को बेच चुके हैं।
सऊदी अरब को ऐसी स्थिति में हथियारों से लैस किया जा रहा है जब उसका लैस किया जाना पश्चिम एशिया की शांति व सुरक्षा से विरोधाभास रखता है।

सऊदी अरब की आक्रामक नीति से पश्चिमी देशों के लिए हथियारों के निर्यात का मार्ग प्रशस्त हो गया है और उसकी यह नीति क्षेत्र के दसियों हजार लोगों की हत्या का कारण बनी है।

सऊदी अरब ने 26 मार्च वर्ष 2015 से यमन पर पाश्विक हमला आरंभ कर रखा है जिसमें अब तक दसियों हज़ार लोग हताहत व घायल हो चुके हैं और व्यवहारिक

रूप से यमन जातीय सफाये और मानवता विरोधी अपराधों की प्रदर्शनी में परिवर्तित हो चुका है। 

बहरहाल जो देश मानवाधिकारों के हनन का राग अलापते हैं वही देश उन देशों व सरकारों के हाथ विनाशकारी हथियार बेचते हैं जो खुल्लम खुल्ला मानवाधिकार का हनन करती हैं और यह शोचनीय बिन्दु है।