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सुप्रीम कोर्ट ने खत्म किया 500 साल से चला आ रहा विवादित मुद्दा, भाजपा के हाथ से निकल गया मुख्य मुद्दा

नई दिल्ली। राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले (Supreme Court verdict in Ram temple-Babri Masjid dispute) में रामलला को विवादित जमीन देकर अयोध्या में राम मंदिर बनाने का रास्ता पूरी रह से प्रशस्त कर दिया है। साथ ही सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद तामीर के लिए 5 एकड़ जमीन देने का आदेश देकर देश की धर्मनिपरेक्ष छवि को बरकरार रखा है। इसकी जिम्मेदारी भी कोर्ट ने केंद्र सरकार को दी है।

हालात के हिसाब लगभग पूरा देश इस फैसला का स्वागत कर रहा है। स्वागत करने का बहुत बड़ा कारण विवादित मुद्दे का खत्म होना माना जा रहा है। 500 साल से ऊपर से चला आ रहा यह विवादित मुद्दा लगभग खत्म हो चुका है। इस मुद्दे पर न केवल भाजपा बल्कि कांग्रेस, सपा के अलावा कई पार्टियों ने सियासत की रोटियां सेंकी है। आंदोलन में कितने लोगों की बलि चढ़ी है।

राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद से राजनीतिक दलों को धर्म के नाम पर राजनीति (Politics in the name of religion,) करने का मौका मिल रहा था।

हालाांकि ऑल इंडिया मुस्लिमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं। यह उनका राजनीतिक एजेंडा है। हां यह बात जरूर है कि राम मंदिर निर्माण आंदोलन के मुख्य नेता लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, विनय कटिहार और कल्याण सिंह दूर-दूर तक कहीं नहीं दिखाई दे रहे हैं। राम मंदिर आंदोलन से निपटने वाले नेता लालू प्रसाद यादव जेल में हैं तो मुलायम सिंह यादव भाजपा के विश्वास में।

भाजपा के हाथ से मुख्य मुद्दा निकल गया है

जमीनी हकीकत भी यही है कि राम मंदिर निर्माण का मुददा भले ही किसी समय कांग्रेस के पास था पर भाजपा ने इसे कब्जाकर पूरी तरह से भुनाया है। मौजूदा हालात में

भले ही भाजपा राम मंदिर निर्माण कर इसका फायदा उठा ले पर आने वाले समय में उनके हाथ से उनके हाथ से मुख्य मुद्दा निकल गया है।

आज की तारीख में भले ही कांग्रेस अयोध्या विवाद पर तरह-तरह की बाते कर रही हो पर वह कांग्रेस ही थी जिसने भारतीय जनता पार्टी को देश की राम मंदिर मुद्दा सौंपकर राजनीति में इतनी बड़ी ओपनिंग उपलब्ध कराई थी।

भाजपा ने 1989 में अपने पालमपुर (हिमाचल प्रदेश) संकल्प में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण का वादा किया था। उसी साल दिसंबर में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राम मंदिर के निर्माण की बात अपने चुनावी घोषणापत्र में पहली बार कही थी। वह राम मंदिर मुद्दा ही था कि 1984 में दो सीट जीतने वाली भाजपा ने 1989 के चुनाव में 85 सीटें जीत ली थी। वह दौर उभरते हुए राष्ट्रवाद की शुरुआत का था।

दरअसल राजनीति के मजे हुए खिलाड़ी तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने देश के बदलते हुए मूड को भांप लिया था। आडवाणी ने राम जन्मभूमि के आंदोलन ने बिखरे हुए राष्ट्रवाद को धर्म से जोड़कर इसे एक हिंदू राष्ट्रवाद के राजनीतिक आंदोलन में बदल दिया था। राम जन्मभूमि आंदोलन ने भारत में पहली बार हिंदू राष्ट्रवाद को एक सामूहिक विवेक में तब्दील कर दिया था। वह राम मंदिर मुद्दा ही था कि भाजपा की बढ़ती हुई लोकप्रियता और आडवाणी के ऊंचे होते हुए क़द से जनता दल की सरकार घबरा गई थी।

प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भाजपा के बढ़ते असर को कम करने के लिए 1990 में मंडल कमीशन के आरक्षण को लागू करने की घोषणा कर दी। लालकृष्ण आडवाणी ने सितंबर 1990 में रथयात्रा निकाली ताकि कारसेवक 30 अक्टूबर को राम मंदिर के निर्माण में हिस्सा ले सकें।

जो भाजपा आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले की दुहाई देते थक नहीं रही है इसी पार्टी के नायक लाल कृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा के दौरान मुंबई में कहा था,  कि लोग कहते हैं 'मैं अदालत के फ़ैसले (राम मंदिर-बाबरी मस्जिद के मुक़दमे में) को नहीं मानता, क्या अदालत ये तय करेगी कि राम का जन्म कहां हुआ? '

राम मंदिर मुद्दे पर आडवाणी की रथयात्रा ने भाजपा को एक ऐसा प्लेटफॉर्म दिया था, जिससे भाजपा के लिए ऑल इंडिया पार्टी बनने का रास्ता खुल गया था।

वह राम मंदिर मुद्दा ही था जिसके बल पर भाजपा ने 1991 में हुए मध्यावधि आम चुनाव में 120 सीटें हासिल की थी। जो पिछले चुनाव की तुलना में 35 सीटें ज़्यादा थीं। उसी साल उत्तर प्रदेश में भाजपा ने पहली बार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता हासिल की। भाजपा के आक्रामक नेता कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे।

यह भी जमीनी सच्चाई है कि 6 दिसंबर 1992 को मस्जिद के तोड़े जाने के बाद कल्याण सिंह की सरकार तो गिरी ही भाजपा को भी इसका काफ़ी नुक़सान हुआ था। तब ऐसा लगने लगा था कि राम मंदिर के मुद्दे से अब पार्टी को जितना सियासी लाभ होना था हो चुका।

मस्जिद के गिराए जाने के बाद भाजपा का ग्राफ़ धीरे-धीरे नीचे जाने लगा था।

एक समय ऐसा भी आया कि उदार हिन्दू माने जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में मंदिर का मुद्दा पार्टी ने थोड़ा पीछे रख दिया था। 1991 में पार्टी की केंद्र में सरकार बनी, जिससे पार्टी का मनोबल बढ़ा और अब उसे मंदिर मुद्दे की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। शायद इसीलिए 2004 के चुनाव में पार्टी ने 'इंडिया शाइनिंग' का नारा देकर विकास की बात की। पार्टी चुनाव हार गई। कांग्रेस की अगुआई में यपीए की सरकार बनी। 2009 में पार्टी ने राम मंदिर का मुद्दा फिर से सामने रखा लेकिन पूरी ताक़त से नहीं। लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया। पार्टी फिर से चुनाव हार गई। यूपीए की सरकार दोबारा से बन गई।

CHARAN SINGH RAJPUT चरण सिंह राजपूत, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। CHARAN SINGH RAJPUT चरण सिंह राजपूत, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने आम चुनाव लड़ा तो राम मंदिर की जगह विकास को पहल दी और भाजपा भारत की सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी। मोदी की अगुआई में भाजपा की सरकार बनी। मोदी ने पांच साल तक अपने एजेंडे पर खुलकर बैटिंग की। 2019 में भी मोदी ने राम मंदिर से ज्यादा तवज्जो राष्ट्रवाद को दी और फिर से प्रचंड बहुमत के साथ मोदी सरकार बनी। हां फिर से मंदिर निर्माण का मुद्दा उभरने लगा था। भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना उस पर  राम मंदिर निर्माण के वादे को न निभाने का आरोप लगाने लगी थी। बड़े स्तर पर संत समाज भी पार्टी से नाराज था।

यह समय की नजाकत ही है कि किसी समय देश के सबसे विवादित नेता रहे नरेन्द्र मोदी के राज में राम मंदिर निर्माण का मुद्दा सुलझ रहा है। उत्तर प्रदेश में भी कट्टर हिन्दुत्व की छवि रखने वाले योगी आदित्यनाथ की सरकार है।

चरण सिंह राजपूत

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