आइए, आपको गड़बड़ लोगों के चेहरे पहचानने का एक आसान नुस्खा बताता हूं। कल दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (India International Center) में एक पुरुषोत्तम लेखक-प्रशासनिक का साठवां जन्मदिवस मनाया गया। तस्वीरें यहीं कहीं तैर रही हैं। खोजिए, मिल जाएंगी। सबसे पहले उसमें उन लोगों को देखिए जो जंतर-मंतर पर प्रो. कलबुर्गी की हत्या के विरोध में हुए जुटान में नहीं आए थे, जबकि यहां सेल्फी में दांत चियार रहे हैं। ये लोग सबसे खतरनाक नहीं हैं।
अब आप इनमें से उन्हें पहचानिए जो वीरेन डंगवाल पर हुए जीपीएफ के प्रोग्राम में मंच पर थे, जंतर-मंतर पर भी अगली कतार में थे और यहां भी मंच पर हैं। ये वही लोग हैं जो उदय प्रकाश के साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटाने पर न केवल चुप हैं बल्कि खुद अगड़म-सगड़म पुरस्कार लेने में व्यस्त हैं। ये लोग सबसे खतरनाक हैं।
आप एक ही हफ्ते में किसी के मरने का शोक भी मनाएंगे और बर्थडे भी... ई ना चोलबे। मुझे ''अग्निसाक्षी'' की याद आ रही है। हिंदी में तत्काल एक नाना पाटेकर मांगता।