फैजाबाद/अयोध्या। पिछले कई सालों से अयोध्या फिल्म सोसाइटी (Ayodhya Film Society) द्वारा आयोजित फिल्म फेस्टिवल का समापन हो गया। गौरतलब है कि अवध की गंगा-जमुनी तहजीब (Ganges-Jamuni Tehzeeb of Awadh) को समर्पित इस फेस्टिवल में सिनेमा के माध्यम से समाज और राजनीतिक चेतना से जुड़े मुद्दों पर बहस की जाती है। बता दें कि फेस्टिवल 'अवाम का सिनेमा' (Awam ka Cinema) का उद्घाटन प्रेस क्लब फैजाबाद में किया गया। इस दौरान काकोरी के क्रांतिवीर की जेल डायरी और दुर्लभ दस्तावेज़ो की प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। इस अनोखी प्रदर्शनी का उद्घाटन फ़िल्मकार-लेखिका मधुलिका सिंह के हाथों हुआ।
इस मौके पर मधुलिका सिंह ने कहा कि, ‘आज सोशल मीडिया के चलते समाज के भीतर जागरूकता पैदा हुई है। नौजवान तो जागरूक हुआ ही है उसके परिणाम से कई तरह के सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलनो का दौर भी शुरू हो गया है। इसका प्रमाण यह है कि पिछले कुछ माह में देश की जनता ने कई घटनाओं को लेकर खुलकर अपना प्रतिरोध जताया। ऐसे समय में फैजाबाद जैसी जगह पर आवाम का सिनेमा के माध्यम से वैसा ही कार्य किया जा रहा है। इसके लिए अवाम का सिनेमा बधाई के काबिल है। ऐसे ही कार्यक्रमों के माध्यम से नई पीढ़ी शहीदों के विचारों से लैस होती है और समाज को उसका लाभ मिलता है। आने वाले खतरों से निपटने के लिए यह जरूरी भी है।
कार्यक्रम के दौरान मौजूद समाजवादी विचारक अशोक श्रीवास्तव ने कहा कि, जिस दासता से मुक्ति के लिए शहीदों ने बलिदान दिया, उसी आजादी पर आज चौतरफा खतरा बढ़ा है। जबकि कॉ. अतुल कुमार सिंह ने कहा कि, जिस खतरनाक दौर में देश चल रहा है, उसमें नई पीढ़ी को शहीद-ए-वतन अशफाक़ उल्ला खां, भगत सिंह जैसे
उद्घाटन समारोह को हरिशचन्द्र श्रीवास्तव, जलाल सिद्दीकी, सूर्यकांत पांडेय, सैय्यद निज़ाम अशरफ, सौमित्र मिश्र, इरम सिद्दीकी, मास्टर अहमद अली आदि वक्ताओं ने भी संबोधित किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता शिल्पी चौधरी जबकि संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी सुनील दत्ता ने की।
प्रदर्शनी में पहुंचे लोगों ने उनके पन्नों को पढ़कर जाना कि हमारे अमर शहीद समाज की बुराइयों और गुलामी की जंजीरों से निपटने के लिए किस तरह कटिबद्ध थे। कैसे वे अपने जान की परवाह तक नहीं करते थे। प्रदर्शनी में शहीदों से जुड़े दुर्लभ दस्तावेजों को नई पीढ़ी के बीच ले जाने के प्रयास की काफी सराहना की गई।
इस दौरान काकोरी के नायक के शहादत स्थल के सामने चौधरी चरण सिंह गेट देखकर लोग आहत भी हुए। इस संबंध में दुखी कार्यकर्ताओं ने वहां से लौटने के बाद राज्य के मुखिया अखिलेश यादव को एक पत्र लिखकर इस सन्दर्भ में अवगत कराया। अयोध्या फिल्म सोसाइटी ने तीन दिवसीय 8वें प्रतिरोध की संस्कृति ‘अवाम का सिनेमा’ के माध्यम से अपना कड़ा प्रतिरोध जताते हुए तत्काल कारवाई करने की मांग की। ऐसा नहीं किए जाने पर अयोध्या से ही आंदोलन किए जाने की चेतावनी दी गई।
गौरतलब है कि 19 दिसंबर 2007 शहीद-ए-वतन अशफाक़ उल्ला खां का अपमान करने की साजिश के तहत शहीदी गेट के आगे चौधरी चरण सिंह गेट का निर्माण करा दिया गया था। शहीद-ए-वतन की शहादत दिवस पर 1857 की 150वी वर्षगांठ पर जिस जगह शहीद अशफ़ाकउल्ला खां का स्मारक होना चाहिए था वहां पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह गेट बना दिया गया, वह भी महज इसलिए कि चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजित सिंह की पार्टी के तत्कालीन विधानपरिषद् सदस्य व मंत्री मुन्ना सिंह चौहान को अपने राजनीतिक हित साधकर चौधरी अजित सिंह को खुश करना चाहते थे।
उधर, ‘अवाम का सिनेमा’ आयोजन के तीसरे दिन भानु प्रताप वर्मा कालेज हनुमंत नगर,मसौधा के परिसर मे प्रतिरोध की संस्कृति ‘अवाम के सिनेमा’ का समापन के मौके पर प्रधानाचार्य निर्मल कुमार वर्मा ने अपने बयान में कहा कि गांव देहात में सिनेमा की ऐसी संस्कृति की लगातार पहल होनी चाहिए, जिससे कस्बाई इलाकों की नई पीढ़ी भी देश-दुनिया से वाकिफ हो।
फिल्म प्रभाग की प्रस्तुति दस्तावेजी फिल्म ‘बेगम अख्तर’ के प्रदर्शन के बाद सिनेमा एक्टिविस्ट शाह आलम ने कहा कि, ‘मलिका-ए-ग़ज़ल बेगम अख्तर, अवध में अजनबी बन गई हैं। मसौधा से चंद कदम दूर भदरसा में जन्मी बेग़म अख्तर को दुनिया भर में ग़ज़ल की रूह कहा जाता है। रेशमी, उनींदी, जलतरंग सी कोमल और गहरी आवाज़ की मलिका अख्तरी बाई फैजाबादी उर्फ़ बेग़म अख्तर ग़ज़ल, ठुमरी और दादरा गायन में देश की सबसे बुलंद आवाजों में एक रही हैं। महज़ पंद्रह साल की उम्र में ही उन्होंने अपने संगीत कार्यक्रमों से देशव्यापी शोहरत पाई।
शाह आलम ने बताया कि उनकी कला के सम्मान में भारत सरकार ने 1968 में उन्हें पद्मश्री और 1975 में पद्मभूषण से नवाज़ा। आज इस महान शख्सियत और उसकी कला को संजोने के बजाए अपने ही दयार में उन्हें भुला दिया गया। उनकी याद में स्मारक जैसा भी कुछ नहीं और न ही कोई संगीत कॉलेज।
हिंदी में बनी यह फिल्म समाज में फैले अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र के खिलाफ संदेश देती है। फिल्म प्रदर्शन के बाद रंगकर्मी सुनील दत्ता ने बताया कि “क़ैद” फ़िल्म की कहानी प्रसिद्ध लेखक ज्ञान प्रकाश विवेक से उधार ली गई है। कैद की कहानी संजू नाम के एक लड़के पर केन्द्रित है जो अंधेरे और अकेलेपन का ऐसा आदी हो जाता है कि किसी को देखते ही चीखने-चिल्लाने लगता है।
फेस्टिवल के दौरान प्रसिद्ध फिल्म निर्माता-निर्देशक ख्वाजा अहमद अब्बास के जन्मशताब्दी वर्ष में उनकी विश्वविख्यात ‘धरती के लाल’ फिल्म के कुछ अंश दिखाए गए। इस दौरान प्रसिद्ध फिल्म मेकर मणिकौल की फिल्म ‘सतह से उठता आदमी’ का भी अंश दिखाकर विद्रोही जनवादी कवि मुक्तिबोध को भी याद किया गया।