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तीनों किसान कानूनों को वापस लेने में सरकार के सामने सबसे बड़ा धर्मसंकट है अडानी ग्रुप द्वारा कृषि सेक्टर में भारी भरकम निवेश (Adani Group invests heavily in agricultural sector) और उनका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बेहद करीबी (Very close to Prime Minister Narendra Modi) होना। आज भाजपा सांसद डॉ सुब्रमण्यम स्वामी का एक ट्वीट दिखा, जिंसमें वे कहते हैं कि,

"कलाबाज़ कलाकार अडानी के साढ़े चार लाख करोड़ रुपये की बैंकों की देनदारी एनपीए हो गई है। यदि मैं गलत कह रहा हूँ तो मुझे सच बताईये। इसके बावजूद उनकी संपत्ति 2016 के बाद हर दो साल पर दुगुनी हो रही है। वे बैंकों का ऋण चुका क्यो नहीं देते हैं ? हो सकता है जैसे उन्होंने अभी 6 हवाई अड्डे खरीदे हैं, वैसे ही सारे बैंक वे खरीद लें।"

डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ठीक ही तो कह रहे हैं कि, अडानी बैंकों का लोन, जो वे अपने राजनीतिक रसूख से एनपीए करा ले रहे हैं, चुका क्यों नहीं देते। आज किसानों के कर्ज माफी की बात यदि होती है तो, सरकार और उसके अर्थ विशेषज्ञ इस पर सरकार को राय देने लगते हैं कि ऐसे कर्ज़

माफी से न केवल अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा बल्कि बैंकों की सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ेगा।

एक सवाल उठता है कि क्या कृषि सुधार की कवायद के बीच नीति आयोग और सरकार ने कभी उन कारणों की पड़ताल करने की कोशिश की है कि, देश में किसानों द्वारा इतनी भारी संख्या में खुदकुशी करने का क्या कारण है ? पहले हम कुछ आंकड़ो को देखते हैं।

साल 2019 में 10,281 कृषि से जुड़े लोगों ने आत्महत्या की है जो देश मे कुल हुई आत्महत्याओं का 7.4% है। 2019 में देश भर में कुल 1,39,516 लोगों ने आत्महत्या की थी। यह आंकड़ा, एनसीआरबी ( नेशलन क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ) के एक्सिडेंटल डेथ एंड सुसाइड इन इंडिया, अध्य्याय से लिया गया है।

साल 2019 मे हुई आत्महत्याओं की संख्या साल 2018 में हुई आत्महत्याओं की संख्या 10,348 से थोड़ी ही कम है। लेकिन यदि केवल खेती पर ही आश्रित रहने वाले किसानों की आत्महत्या का आंकड़ा देखें तो, 2019 मे कुल 5,957 किसानों ने आत्महत्यायें की हैं जो, साल 2018 के आंकड़े 5,763 से कुल तीन प्रतिशत अधिक है।

अब राज्यवार आंकड़े देखते हैं।

महाराष्ट्र (3,927), कर्नाटक (1992), आंध्र प्रदेश (1,029), मध्य प्रदेश (541), छत्तीसगढ़ (499) और तेलंगाना (499) शीर्ष 6 राज्यों में शामिल हैं, जिनका किसानों की आत्महत्या के आंकड़ों में कुल 83% हिस्सा है। एनसीआरबी के इस अध्याय में किसान जिसे अंग्रेजी में फार्मर्स या कल्टीवेटर यानी खेत जोतने बोने वाले शब्द से वर्गीकृत किया है, की परिभाषा भी दी गई है। उक्त परिभाषा के अनुसार, वह व्यक्ति जो अपने स्वामित्व वाले खेत, या किसी का खेत किराए पर लेकर, या बिना किसी खेतिहर मज़दूर के कृषि कार्य करता है तो उसे फार्मर या कल्टीवेटर कहा जायेगा।

यह भी आश्चर्यजनक तथ्य है कि, आत्महत्या करने वाले किसानों में 86% किसान वे हैं जिनके पास भूमि है और शेष 14% भूमिहीन किसान हैं।

जिन किसानों की आजीविका केवल कृषि पर ही निर्भर है, उनमें से साल 2019 में 4,324 और साल 2018 में, 4,586 किसानों ने आत्महत्या की है। साल 2018 की तुलना में साल 2019 में किसानों की आत्महत्याओं में कुछ कमी भी आयी है।

17 राज्यों के आत्महत्या आंकड़ों से एक और चिंताजनक तथ्य यह निकल रहा है कि, इस 17 राज्यों में खेतिहर मजदूरों द्वारा की जाने वाली आत्महत्या की दर कृषि भूमि रखने वाले किसानों की तुलना में अधिक रही है। पर अन्य 7 राज्यों में भूमि स्वामित्व वाले किसानों ने, खेतिहर मजदूरों की तुलना में, अधिक आत्महत्यायें की हैं। पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, उत्तराखंड, मणिपुर, चंडीगढ़, दमन और दियु, दिल्ली और लक्षदीप से किसान आत्महत्याओं के बारे में आंकड़े शून्य हैं।

Why are people moving towards suicide in Indian society

भारत में आत्महत्याओं की दर (Suicide rate in India) चौंकाने वाली है। धर्म, आस्था और तमाम नियतिवादी दर्शन के बावजूद, भारतीय समाज में आत्महत्या की ओर लोग क्यों बढ़ रहे हैं, यह मनोचिकित्सकों और समाज वैज्ञानिकों के लिये अध्ययन का विषय हो सकता है।

10.4 people committed suicide per 10,000 population

1,39,123 आत्महत्याओं के आंकड़ों के साथ, भारत विश्व में सबसे ऊपर है। साल 2018 की तुलना में साल 2019 में आत्महत्याओं में 3.4% की वृद्धि हुई है। यह सभी सुसाइड आंकड़ों के संदर्भ में है। इसे अगर सांख्यिकी की एक अलग व्याख्या में कहें तो प्रति 10,000 आबादी पर 10.4 लोगों ने आत्महत्या की है।

सरकार ने क्या इस बिंदु पर भी कोई अध्ययन किया है कि इन तीन नए कृषि कानूनों से किसानों की आय, उनकी माली हालत कितनी सुधरेगी ? अगर किया है तो उसे कम से कम जनता और किसानों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए।

डॉ सुब्रमण्यम स्वामी की यह बात बिल्कुल सही है कि, अडानी को जब वे हर दो साल पर अपनी संपत्ति दूनी कर ले रहे हैं तो उन्हें बैंकों का का ऋण तो वापस कर ही देना चाहिए। लेकिन अडानी ग्रुप ऐसा नहीं करने जा रहा है, क्योंकि वह न केवल सरकार के बेहद करीब है, बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की उस ग्रुप पर विशेष अनुकम्पा भी है।

कल इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने अडानी ग्रुप पर सरकार द्वारा की गई एक विशेष अनुकम्पा का विस्तार से उल्लेख किया है।

प्रकरण इस प्रकार है। साल 2019 में, सरकार के सब कुछ बेचो अभियान जिसे निजीकरण कहा जा रहा है के अंतर्गत, कुछ हवाई अड्डों को निजी क्षेत्र में सौंपने के लिए जो निविदा आमंत्रित की गई थी में, अडानी ग्रुप को अधिकतर हवाई अड्डे सौंप दिए गए हैं। उक्त बोली की प्रक्रिया में वित्त मंत्रालय और नीति आयोग की आपत्तियों के बावजूद अडानी समूह को छह हवाई अड्डे दे दिए गए।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने कुछ अहम दस्तावेज़ हासिल किए हैं और इनके आधार पर ही अखबार ने अपनी खबर में यह सनसनीखेज खुलासा किया है।

इंडियन एक्सप्रेस द्वारा हस्तगत किये गए दस्तावेज़ों के अनुसार, अहमदाबाद, लखनऊ, मैंगलुरू, जयपुर, गुवाहाटी और थिरूवनंतपुरम के हवाई अड्डों के निजीकरण के लिए निविदा आमंत्रित की गई थी। इस संबंध में केंद्र सरकार की ओर से बनाई गई पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप अप्रेजल कमेटी ने 11 दिसंबर, 2018 को विमानन मंत्रालय के बोली लगाने के इस प्रस्ताव पर चर्चा की थी। इस चर्चा के जो मिनट्स ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को मिले हैं, उनके मुताबिक़ वित्त मंत्रालय की ओर से कहा गया था कि बोली लगाने वाली किसी भी एक कंपनी को दो से ज़्यादा हवाई अड्डे नहीं दिए जाने चाहिए।

लेकिन कमेटी की बैठक में वित्त मंत्रालय के इस नोट पर कोई बात नहीं की गई। इसी दिन नीति आयोग की ओर से भी हवाई अड्डों की बोली के संबंध में चिंता जाहिर की गई थी। आयोग की ओर से कहा गया था कि बोली लगाने वाली ऐसी कंपनी जिसके पास पर्याप्त तकनीकी क्षमता न हो वह इस प्रोजेक्ट को ख़तरे में डाल सकती है। इसके जवाब में वित्त मंत्रालय के सचिव एससी गर्ग ने अप्रेजल कमेटी की अध्यक्षता करते हुए कहा था कि सचिवों के समूह की ओर से पहले ही फ़ैसला कर लिया गया है कि हवाई अड्डे चलाने के लिए पहले से अनुभव होने को शर्त नहीं बनाया जाएगा।

टेंडर पा लेने के बाद फ़रवरी, 2020 में अडानी समूह की ओर से समझौतों पर दस्तख़त कर दिए गए। इन हवाई अड्डों के लिए निविदा जीतने के बाद अडानी समूह का एविएशन इंडस्ट्री में भी प्रवेश हो गया था।

लेकिन इसके एक महीने बाद अडानी समूह ने कोरोना आपदा की वजह से एएआई से इन हवाई अड्डों को अपने चार्ज में लेने के लिये फ़रवरी, 2021 तक का समय प्रदान करने का अनुरोध किया। लेकिन, एएआई ( एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया- Airport Authority of India ) की ओर से अडानी समूह को यह पत्र लिखा गया कि वे इन हवाई अड्डों को नवंबर, 2020 तक अपने हाथ में ले लें। इसके बाद तीन हवाई अड्डे- जयपुर, गुवाहाटी और तिरूवनंतपुरम सितंबर में जबकि अहमदाबाद, मेंगलुरू और लखनऊ के हवाई अड्डे नवंबर, 2020 में अडानी समूह को दे दिए गए। इन 6 हवाई अड्डों पर अडानी ग्रुप का पचास साल के लिये कब्ज़ा हो गया है।

अखबार आगे लिखता है,

"इस बोली प्रक्रिया के दौरान अडानी समूह ने इस फ़ील्ड के कई अनुभवी खिलाड़ियों जैसे जीएमआर समूह, जूरिक एयरपोर्ट और कोचिन इंटरनेशनल एयरपोर्ट को पीछे छोड़ दिया। अडानी समूह को इन सभी छह हवाई अड्डों का 50 साल तक के लिए संचालन का अधिकार मिल गया है। 2018, नवंबर में केंद्र सरकार ने सभी 6 हवाई अड्डों को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के आधार पर चलाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी।"

एएआई के अनुसार, पीपीपी मोड में चलाने का फ़ैसला विश्व स्तरीय सुविधाएँ देने के लिए लिया गया था। अडानी समूह के मालिक गौतम अडानी को भाजपा का क़रीबी माना जाता है।

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान गौतम अडानी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से क़रीबी को लेकर ख़ूब चर्चा हुई थी। गुजरात में अडानी समूह का काफ़ी बड़ा कारोबार है। लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी को अडानी समूह के हवाई जहाज़ का इस्तेमाल करते देखा गया था। विपक्षी दल यह आरोप लगाते रहे हैं कि मोदी सरकार के समय में गौतम अडानी का कारोबार काफ़ी तेज़ी से बढ़ा है।

इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक़, 2017 में भारत के कारोबारियों में गौतम अडानी की संपत्ति सबसे तेज़ी से बढ़ी थी, तब अडानी ने रिलायंस के चेयरमैन मुकेश अंबानी को भी पीछे छोड़ दिया था। अडानी की संपत्ति में 124.6 फ़ीसदी की वृद्धि हुई थी वहीं, अंबानी की संपत्ति 80 फ़ीसदी बढ़ी थी।

आज किसान आक्रोश का भी एक बड़ा कारण है अडानी ग्रुप का खेती किसानी के क्षेत्र में घुसपैठ।

वैसे तो किसी भी नागरिक को देश में कोई भी व्यापार, व्यवसाय या कार्य करने की छूट है, पर 2016 के बाद जिस तरह से अडानी ग्रुप की रुचि खेती सेक्टर में बढ़ी है, और उसके बाद जिस तरह से जून 2020 में इन तीन कृषि कानूनों को लेकर जो अध्यादेश लाये गए और फिर जिस प्रकार तमाम संवैधानिक मर्यादाओं और नियम कानूनों को दरकिनार कर के राज्यसभा में उन्हें सरकार ने पारित घोषित कर दिया, उससे यही लगता है कि सरकार द्वारा बनाये गए इन कानूनों का लाभ किसानों के बजाय अडानी ग्रुप को ही अधिक मिलेगा।

इन कानूनों की समीक्षा में लगभग सभी कृषि अर्थशास्त्री इस मत पर दॄढ हैं कि, यह कानून केवल और केवल कॉरपोरेट को भारतीय कृषि सेक्टर सौंपने के लिये लाये गए हैं।

सरकार, दस दौर की वार्ता के बाद भी अब तक देश और किसानों को नही समझा पाई कि इन कानूनों से किसानों का कौन सा, कितना और कैसे हित सधेगा। अब अगली बातचीत 19 जनवरी को होगी।

विजय शंकर सिंह



विजय शंकर सिंह (Vijay Shanker Singh) लेखक अवकाशप्राप्त आईपीएस अफसर हैं
विजय शंकर सिंह (Vijay Shanker Singh) लेखक अवकाशप्राप्त आईपीएस अफसर हैं

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