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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल (21 years of marriage age of girls) करने को कृतसंकल्प हैं और लोकसभा में भी विधेयक पारित हो चुका है।

आधी आबादी पर प्रेम और विवाह की उम्र कानूनी जामा पहनाकर थोपने की इस पहल पर स्त्रियों से कोई राय नहीं पूछी गयी।

निर्णय की किसी प्रक्रिया में स्त्री की सहमति असहमति की न समाज परवाह करती है और न समाज उन्हें कोई अधिकार देता है। गांवों में तो स्त्री को पंचायत में बोलने का अधिकार नहीं है।

पर्दा और बुरका और हिजाब में कितनी स्वतंत्र है स्त्री?

धर्म स्त्री को कैसे नियंत्रित करता है?

यह किंवदंती है कि आदिवासी समाज में स्त्री स्वतंत्र है, लेकिन मुक्त बाजार में आदिवासी स्त्री की क्या स्थिति है इन दिनों?

धर्म क्या आदिवासी स्त्री को प्रभावित नहीं करता? घरेलू हिंसा और दहेज की क्या स्थिति है आदिवासी और दलित समाज में? हम इस पर भी फोकस चाहते हैं।

हम इस मुद्दे पर खुलकर करते हुए हर स्त्री का पक्ष प्रस्तुत करना चाहते हैं।

कहने को संविधान है और कानून का राज है, लेकिन असमानता, अन्याय और भेदभाव के देश में धर्म और जाति की दीवारों में कैद पितृसत्त्ता के सामंती मध्ययुगीन अत्याधुनिक तकनीक और संसाधनों से लैस समाज और उपभोक्ता बाजार की दृष्टि में स्त्री अब भी वस्तु है, जिसे खरीदा, बेचा जा सकता है, जिसका मनचाहा इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसे मनुष्य तो समझा नहीं जाता, शायद जीवित प्राणी भी नहीं।

मनुस्मृति व्यवस्था के रामराज्य में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का वास्तव में क्या मायने हैं?

घर, बाहर, सार्वजनिक स्थलों में

स्त्री कितनी सुरक्षित है? उसके लिए आजीविका और रोजगार की कितनी आजादी है?

पढ़ी लिखी योग्य होने के बावजूद स्त्री के लिए क्या अवसर है? स्त्री को जीवनसाथी चुनने, प्रेम और विवाह के मामले में, सम्पत्ति के मामले में और अर्थ व्यवस्था, उत्पादन प्रणाली में क्या अधिकार हैं? उस पर पाबंदियां कितनी खत्म हुई हैं?

पढ़ी लिखी, कामकाजी महिलाओं को प्रेम और विवाह की कितनी स्वतंत्रता है?

प्रेम और विवाह भारत में स्त्री के लिए चक्रव्यूह है, जिसमें निशस्त्र वह घुस तो जाती है, लेकिन उसमें से निकलने का कोई रास्ता उसे मालूम नहीं होता।

सात महारथी नहीं, असंख्य महारथियों के विरुद्ध अकेली स्त्री को निःशस्त्र लड़ना होता है।

प्रेम और विवाह में ही स्त्री की सारी समस्याओं की जड़ें हैं। इस पर हम हर स्त्री का पक्ष और उनका अनुभव प्रस्तुत करना चाहते हैं।

मोबाइल टीवी के जमाने में बड़ी संख्या में स्कूली लड़कियां 14-15 साल की उम्र में प्रेम और विवाह के गोरखधंधे में फंस रही हैं तो हाशिये के समाज में बेटियां जन्मजात असुरक्षित हैं।

नए कानून से होगा स्त्रियों का सशक्तिकरण?

महिला आरक्षण का क्या हुआ?

हम मानते हैं कि स्त्री के बोलने लिखने से ही हालात बदलेंगे। वे ही दुनिया बदल सकती हैं।

पलाश विश्वास

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