Hastakshep.com-जलवायु परिवर्तन-COP29 सम्मेलन में हानि व क्षति कोष में वित्तीय योगदान-COP29 में जलवायु हानि और क्षति कोष का उद्देश्य,
विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्तीय सहायता कैसे काम करती है,
जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देशों के लिए यूएन का वित्त पोषण प्रस्ताव,
यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश का जलवायु परिवर्तन पर सन्देश,

COP29 में जलवायु हानि व क्षति कोष की महत्ता पर जोर

संयुक्त राष्ट्र महासचिव का वैश्विक वित्तीय संकल्प के लिए आह्वान

  • चरम जलवायु के दौर में न्यायपूर्ण वित्तीय व्यवस्था क्यों ज़रूरी है?
  • विकासशील देशों के लिए हानि व क्षति कोष: बहुपक्षवाद और न्याय की ओर बढ़ता कदम
  • जलवायु वित्त पोषण में नवाचारी उपायों का महत्व
  • यूएनएचसीआर की रिपोर्ट: विस्थापन, संघर्ष और जलवायु परिवर्तन का बढ़ता खतरा
  • वर्ष 2040 तक चरम जलवायु जोखिमों का सामना करने वाले देशों का अनुमानित बढ़ता आंकड़ा

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने COP29 सम्मेलन में हानि व क्षति कोष में वित्तीय योगदान बढ़ाने पर ज़ोर दिया है ताकि जलवायु परिवर्तन से प्रभावित विकासशील देशों को राहत दी जा सके। बाकू में हुए उच्चस्तरीय संवाद में महासचिव ने चरम जलवायु संकट के बीच वित्तीय संसाधनों के न्यायपूर्ण वितरण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। संयुक्त राष्ट्र समाचार की इस ख़बर से जानिए इस पहल के प्रमुख पहलुओं और आगामी कदमों के बारे में विस्तार से।

कॉप29: जलवायु 'हानि व क्षति कोष' के लिए, वित्तीय संसाधन मुहैया कराने पर बल

12 नवंबर 2024 जलवायु और पर्यावरण

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने देशों से आग्रह किया है कि जलवायु परिवर्तन से प्रभावित विकासशील देशों की सहायता के लिए यह ज़रूरी है कि जलवायु हानि व क्षति कोष में योगदान का स्तर बढ़ाया जाए.

यूएन प्रमुख ने जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली हानि व क्षति के मुद्दे पर अज़रबैजान की राजधानी बाकू में कॉप29 सम्मेलन के दौरान आयोजित एक उच्चस्तरीय सम्वाद के दौरान यह अपील की है.

“चरम जलवायु के इस युग में, हानि व

क्षति के लिए वित्त पोषण अनिवार्य है. मैं सरकारों से इस वादे को पूरा करने का आग्रह करता हूँ. न्याय के नाम पर.”

उन्होंने कहा कि दुनिया पहले की तुलना में गर्म और अधिक ख़तरनाक होती जा रही है, जोकि अब बहस का विषय नहीं है. “जलवायु आपदाएँ बढ़ रही हैं, और उन्हें नुक़सान पहुँचा रही हैं, जो इसके लिए सबसे कम ज़िम्मेदार हैं.”

वहीं, इस विध्वंस में सबसे अधिक योगदान देने वाले, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन उद्योग, विशाल मुनाफ़े और सब्सिडी कमा रहे हैं.

यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली ‘हानि व क्षति’ से निपटने के लिए जिस कोष को स्थापित किया गया है, वो विकासशील देशों, बहुपक्षवाद और न्याय के लिए एक जीत है.

हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि इस कोष के ज़रिये अब तक जुटाई गई 70 करोड़ डॉलर की धनराशि से सबसे निर्बल समुदाय के घावों पर मरहम नहीं लगाया जा सकता है.

“हमें वित्त पोषण के स्तर के बारे में गम्भीरता से सोचना होगा. मैं देशों से इस कोष के लिए नए वित्तीय संसाधनों का संकल्प लेने का आग्रह करता हूँ.”

इस क्रम में, महासचिव गुटेरेश ने एक नए जलवायु वित्त पोषण लक्ष्य पर सहमति बनाने की पुकार लगाई है, जिसके लिए नवाचारी उपायों के ज़रिये संसाधन सुनिश्चित करने होंगे.

“हमें जहाज़रानी, विमानन और जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण जैसे सैक्टर से एकजुटता वसूली करने की आवश्यकता है, ताकि जलवायु कार्रवाई के लिए वित्तीय प्रबन्ध किए जा सकें. हमें कार्बन की एक न्यायसंगत क़ीमत तय करनी होगी.”

विस्थापितों के लिए कटु वास्तविकता

उधर, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने कॉप29 सम्मेलन के दौरान अपनी एक नई रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार युद्ध, हिंसा और उत्पीड़न से जान बचाकर भागने वाले लोगों के लिए अब जलवायु परिवर्तन एक बड़ा ख़तरा बन रहा है.

‘No Escape: On the Frontlines of Climate, Conflict and Displacement’ नामक इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में कमी लाने के लिए मज़बूत क़दम उठाने का आग्रह किया गया है.

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर यूएन शरणार्थी एजेंसी की यह पहली रिपोर्ट है. विश्व भर में 12 करोड़ से अधिक लोग जबरन विस्थापन का शिकार हैं, जिनमें से तीन-चौथाई लोग उन देशों में रह रहे हैं, जोकि बढ़ते उत्सर्जनों के असर का सामना कर रहे हैं.

क़रीब 50 फ़ीसदी विस्थापित उन स्थानों पर हैं, जिन्हें जलवायु जोखिमों और हिंसक टकराव, दोनों की मार झेलनी पड़ रही है, जैसेकि इथियोपिया, हेती, म्याँमार, सोमालिया, सूडान व सीरिया.

एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2040 तक जलवायु सम्बन्धी चरम जोखिमों का सामना करने वाले देशों की संख्या तीन से बढ़कर 65 तक पहुँच जाएगी. इस सदी के अन्त तक, अधिकाँश शरणार्थी शिविरों में रहने वाले विस्थापितों के लिए अत्यधिक गर्म दिनों की संख्या दोगुनी हो सकती है.