भारत में प्रार्थनास्थलों को लेकर विभिन्न विवाद, जैसे भागलपुर, मथुरा, ज्ञानवापी, और गुजरात के दंगे, देश में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देने का कारण बने हैं। इन विवादों में धार्मिक स्थलों का पुनःनिर्माण, उनका इतिहास, और राजनीतिक दृष्टिकोण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 1991 का कानून, जो प्रार्थनास्थलों की धार्मिक पहचान को बचाने का प्रयास करता है, के बावजूद देशभर में इन विवादों को लेकर फैसले जारी हैं। डॉ. सुरेश खैरनार के लेख से जानिए कैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अन्य धार्मिक दल इन मुद्दों पर अपनी भूमिका निभाते हैं और समाज में विभाजन को और गहरा करते हैं।
24 अक्तूबर 1989 को भागलपुर में रामशिला पूजा के जूलूस के दौरान दंगे की शुरुआत हुई, जो लगभग संपूर्ण भागलपुर कमिश्नरी के इलाकों में फैला। जिसमें तीन सौ से अधिक गांवों के अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के घरों को नष्ट करने की कोशिश की गई और उनके प्रार्थनास्थलों को ध्वस्त करने के बाद मलबे के उपर रामजी का मंदिर, दुर्गा का मंदिर, हनुमानजी का मंदिर जैसे काले कोलतार या लाल गेरु से लिखे हुए हमने अपने आंखों से देखा। और लगा कि भारत में रह रहे हर मुसलमान का अस्तित्व खतरे में है और उनके प्रार्थनास्थल भी, जो हमने भागलपुर दंगे के उपर जहाँ भी बोलने का मौका मिला वहां पर बोला है। और जहाँ भी हमारे लेख छपे उनमें भी यह बात लिखी है कि "आने वाले पचास वर्षों का भारतीय राजनीति का केंद्रबिंदु सिर्फ सांप्रदायिकता ही रहेगी और रोजमर्रा के सवाल दोयम हो जायेंगे। और इस बात को आज पैंतीस साल हो गये हैं।
हमारे देश की संसद में 13 सितंबर 1991 को प्रधानमंत्री
दूसरी तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघ प्रमुख श्री. मोहन भागवत ने कहा है कि "हमारे देश की हर मस्जिद के निचे शिवालय ढूंढना गलत है।" फिर उसके बावजूद ज्ञानव्यापी, भोजशाला, मथुरा तथा संभल और अजमेर शरिफ के मामले उठाने वाले लोग कौन है ? और यह मामले दर्ज कर लेने वाले लोग भी कौन है ? इसी तरह की बात प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र मोदी ने भी गोहत्या को लेकर, मॉबलिंचिग करने वाले लोगों को "हफ्तावसूली करने वाले गुंडों का गिरोह कहा था"! और संघ के ही लोगों ने उन्हें अपने स्टेटमेंट को वापस लेने के लिए कहा था। लेकिन उत्तर प्रदेश में अखलाक, जूनैद को मॉबलिंचिग करके मारने वाले लोगों पर क्या कारवाई हुई ?
संघ की प्रातःकालीन स्मरण करने वाले लोगों में महात्मा गांधी के भी नाम का समावेश है। लेकिन महात्मा गांधी की हत्या को वध बोलने से लेकर आजकल भी उनके फोटो को गोली मारने से लेकर उनके बारे में कमर के नीचे भाषा में बोलने वाले लोग कौन हैं ?
मोहन भागवत ने अगर हर मस्जिद के निचे शिवालय ढूंढने को गलत कहा है, तो बनारस के ज्ञानवापी, मथुरा, भोजशाला तथा संभल और अजमेर शरिफ के ताजा मामले कौन लोग हैं ? जो उन्हें तूल देने का काम कर रहे हैं ? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दोमुंही भाषा उनके स्थापना के समय से चल रही है, यह उनकी युद्धनीति का भाग है। भागलपुर से लेकर गुजरात तक के दंगों में संघ के स्वयंसेवकों की भूमिका क्या रही है ? यह बात अब उजागर हो चुकी है।
लेकिन काफी लोगों ने श्री. मोहन भागवत के हर मस्जिद के नीचे शिवालय ढूंढने को गलत कहने की बात की भूरि - भूरि प्रशंसा की है। तो मेरी मोहन भागवत से प्रार्थना है कि "वह चाहें तो ज्ञानवापी, मथुरा, भोजशाला, संभल तथा अजमेर शरीफ के चल रहे विवादों को तुरंत रोक सकते है, क्योंकि यह करने वाले खुराफाती दिमाग के लोग भी उन्हीं के हैं।
और सबसे महत्वपूर्ण बात जो सत्तर के दशक में महाराष्ट्र के जलगांव - भिवंडी के दंगों की जांच करने वाले जस्टिस मदान ने अपनी रिपोर्ट में साफ - साफ लिखा है कि किसी भी दंगे में संघ के लोग शामिल थे या नहीं यह बात दीगर है, लेकिन संघ रोजमर्रे की शाखाओं में अपने स्वयंसेवकों को अपने बौद्धिक खेल, गीतों के द्वारा जो सिखाने की कोशिश करता है, वह अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ नफरत पैदा करने का काम करता है। इसलिए भारतीय दंड संहिता के अनुसार किसी भी दंगे में संघ के सदस्य प्रत्यक्ष शामिल थे या नहीं यह मायने नहीं रखता है। आर. एस. एस. रोजमर्रा अपने शाखाओं में जो प्रचार- प्रसार करता है, वह दंगों में प्रस्फुटित होकर अभिव्यक्ति करता है।
आर. एस. एस. को 77 सालों पहले हुए बंटवारे को लेकर बहुत आपत्ति है और बार- बार अखंड भारत की बात रटता है। यहाँ तक कि संघ का भारत का नक्शा जो है, उसमें वर्तमान पाकिस्तान, बंगला देश के साथ अफगानिस्तान तक शामिल हैं। डॉ. राम मनोहर लोहिया ने भी भारतीय महासंघ की कल्पना की है,लेकिन उसके लिए इस क्षेत्र में रहने वाले सभी लोगों को आपसी विश्वास और प्रेम तथा भाईचारा के माहौल में रहने से होगा। न ही मंदिर - मस्जिदों तथा गोहत्या, लवजेहाद, लॅण्ड जेहाद, वोट जेहाद जैसा आरोप प्रत्यारोप करते हुए संभल गुजरात या भागलपुर जैसे दंगों को अंजाम देने से होगा ?
संघ के हाथ में कश्मीर से कन्याकुमारी, और नागालैंड से ओखा तक का भारत में वर्तमान समय में चल रहे विवादों को सुलझाने के लिए संघ कोई पहल कर रहा है ? या इन विवादों के पीछे संघ के विवेकानंद केंद्र, वनवासी कल्याण आश्रम या विभिन्न इकाईयों के वजह से यह हो रहा है ? इतना भी अपने गिरेबान के अंदर झांककर देखेगा तो अखंड भारत के तरफ की यात्रा करने के लिए काफी सहायता होगी।
डॉ. सुरेश खैरनार
लेखक सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता व मराठी के साहित्यकार हैं।
Web Title: Controversies over places of worship in India: From Bhagalpur to Mathura and Gyanvapi