Hastakshep.com-हस्तक्षेप-आपातकाल में आरएसएस की भूमिका,आपातकाल का आरएसएस  ने किया समर्थन,देवरस का आचार्य विनोबा भावे को पत्र,देवरस का इंदिरा गाँधी को पत्र,

आरएसएस और बीजेपी के नेता भारत में 25 जून 1975 को इंदिरा गाँधी सरकार द्वारा इमरजेंसी लगाए जाने को "संविधान की हत्या" बताते हैं और यह दावा करते हैं कि देश में आज प्रजातंत्र बचा हुआ है क्योंकि ‘सरकार चला रहे नेता (आरएसएस-बीजेपी से जुड़े) वे लोग हैं जिन्होंने आपातकाल के ख़िलाफ़ आज़ादी की लड़ाई लड़ी। वे उदारवादी प्रजातान्त्रिक मूल्यों के प्रति समर्पित हैं, किसी मजबूरी की वजह से नहीं बल्कि एक धर्मसिद्धान्त के तौर पर। उनके ये दोनों दावे सफ़ेद झूठ हैं। सच तो यह है कि आरएसएस ने इंदिरा गाँधी के दमनकारी शासन के दौरान पूरी तरह से घुटने टेक दिए थे और इंदिरा गाँधी एवं उनके पुत्र संजय गांधी का पूरी वफ़ादारी के साथ समर्थन करने का आश्वासन लिखित रूप से दिया था। आरएसएस के अनेक 'स्वयंसेवक' 20-सूत्रीय कार्यक्रम को लागू करने का आश्वासन और माफ़ीनामे पर दस्तख़त कर जेल से छूटे थे।

प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने 25-26 जून, 1975 की रात देश में इमरजेंसी (आंतरिक आपातकाल) घोषित किया था।यह इमरजेंसी 19 महीने तक लागू रही। इस दौर को भारतीय लोकतंत्र के  काले दिनों के रूप में याद किया जायेगा। इंदिरा गाँधी का कहना था कि "जयप्रकाश नारायण ने सेना और सशस्त्र बलों से अपील की थी कि वे सरकार के 'अवैध' आदेशों को न मानें।इससे देश में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई और भारतीय गणतंत्र का अस्तित्व ख़तरे में पड़ गया। इसलिए सरकार के पास संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल घोषित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह गया था।राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) का कहना है कि उसने इंदिरा गाँधी द्वारा घोषित आपातकाल का बहादुरी के साथ मुक़ाबला किया और भारी दमन सहा। बहरहाल, उस दौर के अनेक कथानक और

दस्तावेज़ हैं जो आरएसएस के इन दावों को झुठलाते हैं।

आपातकाल में आरएसएस की भूमिका

जेपी आंदोलन के दौरान आरएसएस के साथ मिलकर इंदिरा गाँधी की नीतियों का विरोध करने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी का एक लेख आपातकाल की 25वीं वर्षगांठ पर वर्ष 2000 में अंग्रेज़ी पत्रिका 'तहलका' में प्रकाशित हुआ था। उनके अनुसार आरएसएस के आपातकाल विरोधी संघर्ष में सहभागिता को लेकर उस दौर में भी ‘मन ही मन हमेशा एक क़िस्म का संदेह, उसके साथ कुछ दूरी, विश्वास की कमी’ का भाव रहता था।प्रभाष जोशी के मुताबिक़ ‘उस समय के आरएसएस प्रमुख बालासाहेब देवरस ने इंदिरा गाँधी और संजय गाँधी के कुख्यात 20-सूत्रीय व पांच सूत्रीय कार्यक्रम को लागू करने में सहयोग करने के लिए इंदिरा गाँधी को एक पत्र लिखा था।यह आरएसएस का असली चरित्र है..... आप उनके काम करने के अंदाज़ और तौर तरीक़ों को देख सकते हैं।यहाँ तक कि आपातकाल के दौरान, आरएसएस और जनसंघ के अनेक लोग माफ़ीनामा देकर जेलों से छूटे थे। माफ़ी माँगने में वे सबसे आगे थे। उनके कुछ नेता ही जेलों में रह गए थे: यहाँ तक की अटल बिहारी वाजपेयी भी जेल से छूट कर आ गए थे। आरएसएस ने आपातकाल लागू होने के बाद उसके ख़िलाफ़ किसी तरह का कोई संघर्ष नहीं किया। तो अब, बीजेपी आपातकाल के ख़िलाफ़ संघर्ष की याद को अपनाने की कोशिश क्यों कर रही है?’

प्रभाष जोशी के निष्कर्ष के अनुसार, ‘वे कभी संघर्षशील शक्ति न तो रहे हैं न ही वे कभी संघर्ष के प्रति उत्सुक रहने वालों में से हैं। वे बुनियादी तौर पर समझौता परस्त रहे हैं। वे कभी भी सही मायने में सरकार के ख़िलाफ़ संघर्ष करने वालों में नहीं रहे हैं।

संघ ने किया था आपातकाल का समर्थन?

एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी टी.वी. राजेश्वर जो आपातकाल के समय आईबी के उप-प्रमुख थे। वह बाद में आईबी के निदेशक भी रहे और रिटायर होने के बाद उत्तर प्रदेश और सिक्किम के राज्यपाल रहे। उन्होंने अपनी पुस्तक 'इंडिया: द क्रूशियल ईयर्स’ में, इस तथ्य की पुष्टि की है कि ‘आरएसएस न केवल आपातकाल का समर्थन कर रहा था बल्कि, वह श्रीमती इंदिरा गाँधी के अलावा संजय गाँधी के साथ संपर्क स्थापित करना चाहता था।

टी.वी. राजेश्वर ने मशहूर पत्रकार करण थापर के साथ एक इंटरव्यू में बताया, ‘देवरस (आरएसएस प्रमुख) ने गोपनीय तरीक़े से प्रधानमंत्री आवास के साथ संपर्क बनाया हुआ था और देश में अनुशासन लागू करने के लिए सरकार ने जो सख़्त क़दम उठाए थे उनमें से कई का मज़बूती के साथ समर्थन किया था। देवरस, श्रीमती इंदिरा गाँधी और संजय गाँधी से मिलने के इच्छुक थे। लेकिन श्रीमती गाँधी ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया।

राजेश्वर की पुस्तक के अनुसार - ‘आरएसएस, एक दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादी संगठन, को आपातकाल के समय प्रतिबंधित कर दिया गया था। लेकिन इसके प्रमुख बालासाहेब देवरस… ने लागू आदेशों और देश में अनुशासन को लागू करने के लिए सरकार के अनेक आदेशों का मज़बूती के साथ समर्थन किया।संजय गाँधी के परिवार नियोजन अभियान और इसे विशेष रूप से मुसलमानों के बीच लागू करने के प्रयासों का देवरस का भरपूर समर्थन हासिल था।

टी. वी. राजेश्वर ने यह तथ्य भी उजागर किया है कि आपातकाल के बाद भी ‘संघ (आरएसएस) ने आपातकाल के बाद हुए चुनावों में कांग्रेस को अपना समर्थन विशेष रूप से व्यक्त किया था।’

इसके अलावा यह तथ्य भी ख़ास तौर पर ग़ौरतलब है कि सुब्रमण्यम स्वामी जो अब बीजेपी में हैं और उसके सांसद भी रह चुके हैं (1974 में जनसंघ के ज़माने से सांसद रहे हैं), के अनुसार भी आपातकाल की अवधि में, आरएसएस के अधिकांश वरिष्ठ नेताओं ने आपातकाल के ख़िलाफ़ संघर्ष के साथ गद्दारी की थी। उस समय के दस्तावेज़ प्रभाष जोशी और राजेश्वर के इस कथन की पुष्टि करते हैं।

आरएसएस के जानकार और उसपर कई किताबें लिख चुके शम्सुल इस्लाम कहते हैं कि "हैरानी की बात तो यह है कि इसके बावजूद, आरएसएस वाले आपातकाल के दौरान अपने कथित उत्पीड़न के एवज़ में आज मासिक पेंशन प्राप्त कर रहे हैं।बीजेपी शासित या कभी बीजेपी शासित राज्य रहे गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में उन लोगों को 10,000 रुपये तक मासिक पेंशन देने का फ़ैसला लिया गया जिन्हें आपातकाल के दौरान एक महीने से कम समय तक जेल में रखा गया था।और आरएसएस से जुड़े जो लोग इस दौरान 2 माह से कम अवधि के लिए जेल गए थे उन्हें बतौर 20,000 रुपये पेंशन देना तय किया गया। इस नियम में उन 'स्वयंसेवकों' का ख्याल रखा गया जिन्होंने केवल एक या दो महीने जेल में रहने के बाद घबरा कर दया याचिका पेश करते हुए माफ़ीनामे पर दस्तख़त कर दिए थे। इस पेंशन के लिए ऐसी कोई शर्त नहीं थी कि लाभार्थी आपातकाल के पूरे दौर में जेल में रहा हो या ना रहा हो।ख़ास बात यह है कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ देश की आज़ादी के आंदोलन में जेल में रहने वालों को मिलने वाली स्वतंत्रता सेनानी पेंशन पाने वालों में से एक भी आरएसएस का 'स्वयंसेवक' नहीं है।"

इमरजेंसी के दौरान आरएसएस का रोल-आरएसएस ने कहा था कि उसका जेपी आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं?

आरएसएस के तीसरे सरसंघचालक, मधुकर दत्तात्रेय देवरस ने आपातकाल लगने के दो महीने के भीतर इंदिरा गाँधी को पहला पत्र लिखा था। यह वह समय था जब राजकीय आतंक चरम पर था। देवरस ने अपने पत्र दिनांक 22 अगस्त, 1975 की शुरुआत ही इंदिरा गाँधी की प्रशंसा के साथ इस तरह की :

‘मैंने 15 अगस्त, 1975 को रेडियो पर लाल क़िले से देश के नाम आपके संबोधन को जेल (यरवदा जेल) में सुना था। आपका यह संबोधन संतुलित और समय के अनुकूल था। इसलिए मैंने आपको यह पत्र लिखने का फ़ैसला किया।’

इंदिरा गाँधी ने देवरस के इस पत्र का कोई जवाब नहीं दिया। देवरस ने 10 नवंबर, 1975 को इंदिरा गाँधी को एक और पत्र लिखा। इस पत्र की शुरुआत उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फ़ैसले के ख़िलाफ़ दिए गए निर्णय के लिए बधाई के साथ की। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनको चुनाव में भ्रष्ट साधनों के उपयोग का दोषी मानते हुए रायबरेली लोकसभा सीट से उनके चुनाव को अवैध क़रार दिया था। जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने वैध घोषित कर दिया। देवरस ने इस पत्र में लिखा -

'सुप्रीम कोर्ट के सभी पांच न्यायाधीशों ने आपके चुनाव को संवैधानिक घोषित कर दिया है, इसके लिए हार्दिक बधाई।'

ग़ौरतलब है कि विपक्ष का दृढ़ मत था कि यह निर्णय कांग्रेस द्वारा 'मैनेज्ड' था। देवरस ने अपने इस पत्र में यहाँ तक कह दिया- “आरएसएस का नाम जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के साथ बिलावजह जोड़ दिया गया है। सरकार ने अकारण ही गुजरात आंदोलन और बिहार आंदोलन के साथ भी आरएसएस को जोड़ दिया है… संघ का इन आंदोलनों से कोई संबंध नहीं है…।

विनोबा को पत्र

इंदिरा गाँधी ने क्योंकि देवरस के इस पत्र का जवाब नहीं दिया इसलिए आरएसएस प्रमुख ने विनोबा भावे के साथ संपर्क साधा जिन्हें सरकारी संत कहा जाता था और जिन्होंने आपातकाल का समर्थन किया था तथा इंदिरा गाँधी का पक्ष लिया था। देवरस ने अपने पत्र दिनांक 12 जनवरी, 1976 में, आचार्य विनोबा भावे से आग्रह किया कि आरएसएस पर प्रतिबंध हटाए जाने के लिए वे इंदिरा गाँधी को सुझाव दें।

आचार्य विनोबा भावे ने भी पत्र का जवाब नहीं दिया। हताश देवरस ने विनोबा भावे को एक और पत्र लिखा जिस पर तिथि अंकित नहीं है। उन्होंने लिखा :

‘अख़बारों में छपी सूचनाओं के अनुसार प्रधानमंत्री (इंदिरा गाँधी) 24 जनवरी को वर्धा पवनार आश्रम में आपसे मिलने आ रही हैं। उस समय देश की वर्तमान परिस्थिति के बारे में उनकी आपके साथ चर्चा होगी। मेरी आपसे याचना है कि प्रधानमंत्री के मन में आरएसएस के बारे में जो ग़लत धारणा घर कर गई है आप कृपया उसे हटाने की कोशिश करें ताकि आरएसएस पर लगा प्रतिबंध हटाया जा सके और जेलों में बंद आरएसएस के लोग रिहा होकर प्रधानमंत्री के नेतृत्व में प्रगति और विकास में सभी क्षेत्रों में अपना योगदान कर सकें।’

आरएसएस को आपातकाल के मुजरिमों को गले लगाने में भी कोई एतराज़ नहीं रहा है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने 2018 में स्वयंसेवकों के दीक्षा समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था। प्रणब मुखर्जी की गिनती आपातकाल के दौरान हुई ज़्यादतियों के लिए ज़िम्मेदार सर्वोच्च कांग्रेसी नेताओं में होती है और शाह आयोग ने भी आपातकाल की ज़्यादतियों के लिए उन्हें प्रमुख रूप से ज़िम्मेदार माना था।

क़ुरबान अली

(क़ुरबान अली एक वरिष्ठ पत्रकार हैं और उन्होंने अपनी पत्रकारिता के चार दशक से भी ज़्यादा लंबे समय में भारत के स्वतंत्रता संग्राम का खोजपूर्ण नज़रों से अध्ययन किया है और अब वह देश में समाजवादी आंदोलन के इतिहास का दस्तावेजीकरण कर रहे हैं)।

सन्दर्भ:

1. आरएसएस प्रमुख बाला साहब देवरस ने आपातकाल के दौरान महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकर राव चव्हाण, प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी और विनोबा भावे को कई पत्र लिखे जिनमें गिड़गिड़ाते हुए और माफ़ी मांगते हुए जेल से रिहा करने की गुहार की गई थी। ये पत्र, अन्य लोगों के पत्रों के साथ,एस. बी. चव्हाण द्वारा 18 अक्टूबर, 1976 को महाराष्ट्र विधानसभा के पटल पर रखे गए थे। आरएसएस कार्यकर्त्ता बापू राव मोघे ने 24 जुलाई, 1977 के पाञ्चजन्य (आरएसएस मुखपत्र) में इन पत्रों के लिखे जाने की पुष्टि की थी। उन्होंने लिखा था कि आर.एस.एस. बातचीत चाहता था लेकिन सरकार ने बाला साहब देवरस के पत्रों का जवाब नहीं दिया। बाद में यह पत्र खुद आरएसएस द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक में भी प्रकाशित हुए.

इसके अलावा आरएसएस के एक समर्पित कार्यकर्त्ता और वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने बीबीसी को दिए गए एक इंटरव्यू में यह बात स्वीकार की है।

2. आरएसएस के एक बहुत ही गंभीर अध्येता जो पहले संघ के कार्यकर्त्ता रह चुके थे, देसराज गोयल ने 1979 में आरएसएस पर लिखित अपनी पुस्तक में यह पत्र/ माफ़ीनामे प्रकशित किये हैं।

3. साथ ही कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री रहे ब्रहमदत्त ने अपनी पुस्तक "फाइव हेडेड मॉन्स्टर" और ए जी नूरानी द्वारा आरएसएस पर लिखित पुस्तक "आरएसएस-ए मैनेस तो इंडिया" में भी यह माफ़ीनामे प्रकाशित किये गए हैं।

क. महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शंकर राव चव्हाण को पत्र 12 जुलाई 1975

ख . देवरस का इंदिरा गाँधी को पत्र दिनांक 22 अगस्त, 1975

ग. देवरस का इंदिरा गाँधी को पत्र दिनांक 10 नवंबर, 1975

घ. देवरस का आचार्य विनोबा भावे को पत्र दिनांक 12 जनवरी, 1976.आरएसएस पर से प्रतिबन्ध हटाने का आग्रह।

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