Hastakshep.com-शब्द-हिंदी निबंध लेखन पर नई किताबें-डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल की पुस्तकें-विश्व पुस्तक मेला 2025 के प्रमुख विमोचन-हिंदी साहित्य में संस्मरण की भूमिका-सामाजिक मूल्यों पर आधारित निबंध-आधुनिक हिंदी गद्य में अग्रवाल का योगदान,कथेतर लेखन और संस्मरण साहित्य,

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल की पुस्तकों का हुआ लोकार्पण | सामाजिक मूल्यों से निर्मित निबंधों की चर्चा

हिंदी साहित्य में एक नई उपलब्धि!

दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल की दो महत्वपूर्ण पुस्तकों "पड़ोस का समय" और "गए दिनों का सुराग लेकर" का भव्य लोकार्पण हुआ। विख्यात आलोचक डॉ वैभव सिंह और डॉ पल्लव ने इन पुस्तकों की साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्ता पर विचार रखते हुए बताया कि अग्रवाल के निबंध हिंदी साहित्य की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाते हैं।

🔹इस आयोजन में प्रमुख चर्चा बिंदु:

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल के निबंधों की सामाजिक प्रासंगिकता

संस्मरण विधा की साहित्य में बढ़ती भूमिका

हिंदी साहित्य में कथेतर लेखन का महत्व

नई दिल्ली, 9 फरवरी 2025। रोज़मर्रा के विषयों पर निबंध लिखना आसान नहीं है क्योंकि ऐसे निबंधकार को जीवन के बुनियादी और मूलभूत संघर्षों से दो चार होना पड़ता है।

विख्यात आलोचक डॉ वैभव सिंह ने विश्व पुस्तक मेले में डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल की दो पुस्तकों का लोकार्पण करते हुए कहा कि अग्रवाल का लेखन हिंदी निबंध लेखन की गौरवशाली परम्परा की याद दिलाता है जो भारतेंदु, बालकृष्ण भट्ट और परसाई जैसे महान निबंधकारों की थाती है।

कौटिल्य बुक्स के स्टॉल पर हुए लोकार्पण में डॉ सिंह ने उनके निबंध संग्रह ‘पड़ोस का समय’ के विषय वैविध्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि साहित्य, संस्कृति, मीडिया और शिक्षा से जुड़े गंभीर मुद्दों पर अग्रवाल के निबंध पाठकों को समृद्ध करने वाले हैं। उन्होंने इन निबंधों की भाषा शैली को भी सरल और बोधगम्य बताया।

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल की दूसरी विमोचित पुस्तक ‘गए दिनों का सुराग़ लेकर’ की चर्चा करते हुए युवा आलोचक डॉ पल्लव ने कहा कि यदि नई सदी को कथेतर लेखन की सदी कहा जा रहा है तो इसका श्रेय संस्मरण विधा को सबसे अधिक है और दुर्गाप्रसाद अग्रवाल के संस्मरण निश्छलता व हार्दिकता का अनूठा मेल हैं।

पल्लव ने कहा कि इस संस्मरण पुस्तक में डॉ अग्रवाल के

कालेज अध्यापन के सुनहरे प्रसंग हैं जो पिछली शताब्दी में उच्च शिक्षा की गंभीरता और शिक्षकों के समर्पण से उपजे हैं।

पल्लव ने कहा कि स्मृतियों से शक्ति भी मिलती है और यह पुस्तक लेखक की सकारात्मक दृष्टि का सुंदर चित्र खींचने में सफल है।

आयोजन में राजस्थान विश्वविद्यालय के हिंदी प्रोफ़ेसर डॉ विशाल विक्रम सिंह ने कहा कि गद्य विधाओं के लेखन में डॉ अग्रवाल ने लगातार सृजन किया है जो किसी भी प्रतिबद्ध लेखक के लिए स्पृहणीय है। सिंह ने कहा कि असामाजिकता के कटु वातावरण में अग्रवाल साहब का सम्पूर्ण लेखन पाठकों को विवेकवान नागरिक बनाता है।

संयोजन कर रही काजी नजरूल विश्वविद्यालय, आसनसोल की हिंदी विभाग की प्रोफेसर एकता मंडल ने निबंध लेखन को अनिवार्य बताते हुए इसे लोकतंत्र के लिए भी आवश्यक बताया।

इससे पहले कौटिल्य बुक्स के निदेशक सुधीर यादव ने सभी वक्ताओं का स्वागत किया और बताया कि उनके प्रकाशन से डॉ अग्रवाल की यह छठी पुस्तक है। आयोजन में बड़ी संख्या में पाठक, लेखक और साहित्यकार उपस्थित थे।

अंत में सूरज कुमार ने सभी का आभार प्रदर्शित किया।]