Hastakshep.com-स्तंभ-महिला असुरक्षा पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू 
महिला असुरक्षा पर मोदी सरकार की विफलता,
मणिपुर हिंसा और प. बंगाल बलात्कार मामला,
महिला सुरक्षा और भाजपा की राजनीति,
राष्ट्रपति के बयान और असुरक्षित भारत-महिला असुरक्षा और मोदी सरकार की विफलता,

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में महिलाओं की बढ़ती असुरक्षा पर अपनी चिंता और निराशा जाहिर की। उनके बयान ने मोदी सरकार की नाकामी को उजागर किया है, खासकर मणिपुर और प. बंगाल की घटनाओं को लेकर।देशबन्धु/ DB Live की संपादक सर्वमित्रा सुरजन के इस लेख से जानिए कैसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का ये बयान महिलाओं की सुरक्षा और सरकार की भूमिका पर सवाल उठाता है

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का भय और निराशा

राष्ट्रपति का भय और निराशा

देश की राष्ट्रपति, प्रथम नागरिक श्रीमती द्रौपदी मुर्मू बहुत निराश और भयभीत हैं। एक समाचार एजेंसी को दिए साक्षात्कार में उन्होंने महिलाओं की बढ़ती असुरक्षा पर अपना भय और निराशा दोनों जाहिर करते हुए कहा कि बेटियों के खिलाफ अपराध बर्दाश्त नहीं, बस अब बहुत हुआ। राष्ट्रपति का यह बयान साफ तौर पर मोदी सरकार की नाकामी को दर्शा रहा है। बेटी बचाओ और बेटी बढ़ाओ जैसी बातें करने वाली सरकार के शासन का सच क्या यह है कि भारत इतना असुरक्षित देश बन चुका है, जहां राष्ट्रपति को भी डर लगने लगा है और निराशा होने लगी है। माननीय राष्ट्रपति महोदया से यह पूछा जाना चाहिए कि अगर आप अपने डर का इज़हार इस तरह करेंगी, तो इस देश की आम लड़कियां कहां जाएंगी और उनके मां-बाप, परिजन, किसके पास जाकर अपनी निराशा को जाहिर करेंगे।

मणिपुर की घटनाओं पर राष्ट्रपति की चुप्पी

काश, राष्ट्रपति ने इस भय और निराशा को तब जाहिर किया होता, जब मणिपुर में कुकी-जोमी समुदाय की दो महिलाओं को निर्वस्त्र जुलूस निकालकर मानसिक और शारीरिक दोनों तरह से छलनी कर दिया गया था। इस मामले की गूंज अंतरराष्ट्रीय स्तर तक सुनाई दी। कई मंचों से

भारत के सभ्य समाज के इस घिनौने चेहरे पर चर्चा हुई। देश के भीतर अनेक तबकों ने उनसे आग्रह किया था कि वे इस मामले पर कुछ तो कहें, क्योंकि आपकी सरकार यानी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रही सरकार ने तो मुंह पर ताला ही लगा लिया था। हेमंत सोरेन जैसे आदिवासी नेता ने राष्ट्रपति मुर्मू को बहुत दुखी मन से पत्र भी लिखा था।

श्री सोरेन ने 22 जुलाई 2023 को लिखे पत्र में आपसे कहा था कि ''क्रूरता के सामने चुप्पी एक भयानक अपराध है, इसलिए मैं आज मणिपुर में हिंसा पर भारी मन और गहरी पीड़ा के साथ आपको पत्र लिखने के लिए मजबूर हूं'', ''मणिपुर और भारत के सामने आने वाले संकट के इस सबसे कठिन समय में हम आपको आशा और प्रेरणा के अंतिम स्रोत के रूप में देखते हैं जो इस कठिन समय में मणिपुर के लोगों और भारत के सभी नागरिकों को रोशनी दिखा सकते हैं।''

लेकिन राष्ट्रपति महोदया तब भी चुप रहीं। कुछ और नेताओं ने भी उनसे मणिपुर के मुद्दे पर कुछ बोलने का नाकाम आग्रह किया था। इसके बाद जब महिला पहलवान यौन उत्पीड़न के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ने उतरीं और राजनीति के अखाड़े में उन्हें मात देने की कोशिशें चलती रहीं, तब भी राष्ट्रपति की तरफ ही निगाहें टिकी थीं कि कम से कम इस मामले में वे कुछ कहेंगी। लेकिन उन्होंने तब भी कुछ नहीं कहा। फिर अभी ऐसा क्या हो गया है कि उनको भी डर और निराशा का अहसास होने लगा है।

प. बंगाल की घटना और भाजपा की राजनीति

दरअसल कोलकाता में आर जी कर सरकारी अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या का जो जघन्य अपराध हुआ, उस पर इस समय देश भर में रोष की लहर उठी है। यह लहर वैसी ही है, जैसे 12 साल पहले दिल्ली निर्भया मामले के बाद तत्कालीन यूपीए सरकार और दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार के खिलाफ समाज मे नाराजगी देखी जा रही थी। तब समाज के बहुसंख्यक वर्ग की नाराजगी को भाजपा ने कांग्रेस सरकार को अपदस्थ करने का जरिया बनाया था। हालांकि निर्भया के इलाज की समुचित व्यवस्था से लेकर, उसके परिजनों की मदद और दोषियों पर कार्रवाई तक कांग्रेस कहीं भी पीछे नहीं हटी। न ही तत्कालीन प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह ने इस मामले में चुप्पी साधी या लोगों की नाराजगी का दमन किया। इसके बाद भी समाज के बड़े वर्ग को कांग्रेस की नाकामी नजर आई, भाजपा की चालाकी नहीं दिखी और नतीजा यह हुआ कि 2014 में यूपीए सत्ता से हट गई और नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने। अब एक बार फिर वही खेल भाजपा खेल रही है, लेकिन इस बार खेल का मैदान प.बंगाल बना हुआ है।

मोदी सरकार और महिला सुरक्षा की विफलता

प.बंगाल की घटना को भाजपा ने महिलाओं की सुरक्षा और इंसाफ से बड़ा मुद्दा बनाते हुए ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ सियासी हथियार बना लिया है।

भाजपा के 11 सालों के शासनकाल में कठुआ, हाथरस, उन्नाव, मणिपुर, उत्तराखंड, बदलापुर जैसी कई बड़ी घटनाएं हुई हैं, जो चर्चा में आईं, वहीं हजारों मामले ऐसे भी हुए हैं, जिनका कोई संज्ञान ही नहीं लिया गया है। 2022 की एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि देश में हर 16 मिनट में एक बलात्कार की घटना हो रही है। यानी लड़कियों, महिलाओं के लिए वाकई भय का माहौल है। इसी माहौल में बिल्किस बानो के बलात्कारियों को जेल से रिहाई और स्वागत का काम भी हुआ और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद दोषियों को फिर से जेल में भेजा गया। मगर इस माहौल में जब गैरभाजपा शासित राज्य प.बंगाल का नाम आया, तब राष्ट्रपति महोदया अपनी चुप्पी तोड़ रही हैं।

महिला असुरक्षा: आंकड़े और वास्तविकता

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कोलकाता की घटना पर दुख व्यक्त करते हुए कहा, किसी भी सभ्य समाज में महिलाओं के खिलाफ इस तरह के अत्याचार की अनुमति नहीं दी जा सकती। समाज को भी ईमानदार, निष्पक्ष और आत्मनिरीक्षण होना चाहिए। उन्होंने कहा ''निर्भया के बाद 12 सालों में अनगिनत रेपों को समाज भूल चुका है, यह सामूहिक भूलने की बीमारी सही नहीं है। इतिहास का सामना करने से डरने वाले समाज सामूहिक स्मृतिलोप का सहारा लेते हैं; अब भारत के लिए इतिहास का सामना करने का समय आ गया है।'' राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि समाज को खुद से कुछ कड़े सवाल पूछने की जरूरत है। कोई भी सभ्य समाज बेटियों और बहनों पर इस तरह के अत्याचारों की अनुमति नहीं दे सकता।

राष्ट्रपति का बयान और असुरक्षित भारत

राष्ट्रपति के इन विचारों से किसी की असहमति नहीं हो सकती। लेकिन उन्होंने जिन कड़े सवालों को पूछने की जरूरत समाज के लिए बताई है, क्या वैसे ही कड़े सवाल वे प्रधानमंत्री मोदी से कर सकती हैं। क्या वे उन्हें एक बार मणिपुर जाने की सलाह दे सकती हैं। जाहिर है, ऐसा नहीं होगा, न ही ऐसा होने की कोई उम्मीद है। क्योंकि मणिपुर की पीड़िताओं का दर्द भाजपा की राजनीति के लिए माकूल नहीं है। प.बंगाल में तो भाजपा को उम्मीद है कि अगर वह ममता बनर्जी की सरकार के खिलाफ भड़के हुए गुस्से को हवा देती रहे तो हो सकता है उसकी जमीन थोड़ी और मजबूत हो जाए और 2026 के चुनावों में उसे जीत मिल जाए। इसलिए बंगाल बंद से लेकर धरना-प्रदर्शन तक विरोध के सारे तरीके भाजपा आजमा रही है। कश्मीर फाइल्स के निर्माता विवेक अग्निहोत्री भी हंसते-मुस्कुराते हवा में मुटि्यां लहराकर अपना विरोध कोलकाता में प्रकट कर आए हैं। 2026 के पहले वे आर जी कर मेडिकल फाइल्स जैसी कोई फिल्म बना दें, तो आश्चर्य नहीं।

 जाहिर है प. बंगाल में इस वक्त पीड़िता के परिजनों के दर्द से ज्यादा फिक्र भाजपा को अपनी राजनीति की हो रही है। अगर राष्ट्रपति महोदया, इस राजनीति के उजागर होने से पहले अपनी चिंता और महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार पर कुछ बोलतीं, तो उसका असर ज्यादा होता। लेकिन अभी तो देर हो चुकी है।

President Draupadi Murmu's fear and despair: Women's insecurity and Modi government's failure

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