‘‘यदि आप गरीब हो तो मौत आपको जल्दी आलिंगन करती है’’ यह शीर्षक है इण्डियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट का। इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि देश की राजधानी दिल्ली में रोगियों की क्या स्थिति है। खासकर उन रोगियों की जो कैंसर से पीड़ित हैं। इस लंबी रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे दिल्ली में देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स में देश के विभिन्न भागों से खासकर बिहार, उत्तरप्रदेश और झारखंड से लोग आते हैं। इण्डियन एक्सप्रेस के संवाददाता ने इस तरह के अनेक रोगियों और उनके साथ आए उनके रिश्तेदारों से बातचीत की।
रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में कैंसर के रोगी (cancer patients in delhi) होने के बाद भी कैसे फुटपाथ पर अपने इलाज का इंतज़ार करते रहते हैं। इस तरह के रोगी बताते हैं कि जब गर्मी की दोपहरी में वे इन फुटपाथों पर बैठे रहते हैं तो ऐसा लगता है कि वे गरम पानी के ऊपर बैठे हुए हैं। फुटपाथ इतने गरम होते हैं कि उसकी गर्मी सहना बहुत मुश्किल हो जाता है।
इसी तरह ठंड की रात और भारी बरसात के बीच में इन लोगों को अपनी जिंदगी बितानी पड़ती है। वे सब इतने गरीब होते हैं कि उनके लिए दिल्ली में कोई जगह किराये पर लेकर रह सकना मुश्किल होता है।
संवाददाता लिखते हैं कि यह दृश्य सिर्फ अकेली दिल्ली का नहीं है देश के अनेक बड़े शहरों में भी इसी तरह की स्थिति है। संवाददाता चंद्रभान नाम के व्यक्ति से मिलते हैं। वे उत्तर प्रदेश से आए हुए हैं। उनके साथ 35 वर्ष के वीरपाल सिंह भी हैं, वे भी वहीं से आए हुए हैं। उनके साथ तीन बड़े झोले हैं जिनमें कपड़े रखे हुए हैं और कुछ सामान भी है। उनके
एम्स के बड़े अधिकारी डॉ. मदन कहते हैं कि उनके अस्पताल में कम से कम 20 हजार रोगी रोज़ आते हैं। इनमें बहुसंख्यक कैंसर पीड़ित होते हैं। अस्पताल में सिर्फ लगभग 3500 बिस्तर हैं। कभी-कभी तो एक रोगी को 3 साल के बाद आने का समय दिया जाता है।
एक और रोगी कहते हैं कि भारत में गरीब होना सबसे बुरी सज़ा है। गरीब को तो कोई रोग लगना ही नहीं चाहिए। क्योंकि एक बार वह किसी रोग और खासकर कैंसर से पीड़ित हो जाता है तो उसकी एक ही प्रार्थना रहती है कि है ईश्वर मुझे उठा ले। एक और कैंसर के रोगी बताते हैं कि हम 7 दिन में एक बार नहा पाते हैं और उसके लिए और अपने कपड़े धोने के लिए हमें कीमत चुकानी पड़ती है। कभी-कभी यह कीमत 50 रूपए होती है। जिस दिन हम नहाते हैं और नहाने के लिए 50 रूपए दे देते हैं उस दिन हम भोजन नहीं करते क्योंकि खाने के लिए हमारे पास पैसे नहीं बचते। पीने का पानी भी हम लोगों को टैंकर से दिया जाता है, जो कि पूरा अशुद्ध होता है। ऐसा पानी कम से कम कैंसर के रोगी को नहीं देना चाहिए। फिर ये टैंकर भी कभी-कभी नहीं आता है तो हम बड़ी मुश्किल से आसपास के घरों से पानी उपलब्ध कर पाते हैं। हमारी एक और मुश्किल है कि हम किसी काम से थोड़े समय के लिए फुटपाथ की वह जगह छोड़ कर जाते हैं जहां हम रहते हैं तो लौटकर पाते हैं कि उस हिस्से पर किसी और ने कब्जा कर लिया है। ऐसी हालत में हमें रात बैठे-बैठे गुजारनी पड़ती है। आप कल्पना कर सकते हैं कि कैसे कैंसर का पेशेंट पूरी रात बैठे-बैठे गुजारता है। हम पर कभी चोर लुटेरे भी हमला करते हैं। एक महिला बताती है कि एक चोर मेरे पति का मोबाइल चुरा कर ले गया। जब हमने पुलिस वालों से इसकी शिकायत की तो पुलिस का कहना था कि तुम फुटपाथ पर सोते ही क्यों हो।
अंजना देवी इस रिपोर्टर को बताती हैं कि मैं 2 महीनों से इंतजार कर रही हूँ कि अस्पताल में मेरा नंबर लगेगा। रोज जाती हूँ पर खाली हाथ वापिस आती हूँ। अंततः मेरा ऑपरेशन हो पाया है। मैं थायराईड कैंसर से पीड़ित हूँ। परंतु दवाईयों के अभाव में रोग से निवारण भी नहीं पा रहे हैं। हमें बताया गया कि एम्स अस्पताल के पास 3 धर्मशालाएँ हैं परंतु वे हमेशा भरी रहती हैं। तीनों धर्मशालाओं के साथ कुछ गेस्टहाउस भी हैं। इनका किराया 20 रूपए से लेकर 300 रूपए तक है। जब हमारे लिए खाना भी दूभर है और दवाईयां तो दूभर हैं ही।
रिपोर्टर की मुलाकात एक माँ से होती है जिसका 12 साल का बच्चा है। उसे इतनी जोर से बुखार आता है कि उसके पूरे शरीर में बार-बार गीला कपड़े लगाना पड़ता है। कपड़े को भिगोने के लिए पानी की उपलब्धता भी बड़ी मुश्किल से हो पाती है।
रिपोर्टर की मुलाकात रामविलास राम नामक व्यक्ति से होती है। वे बताते हैं कि उनके बच्चे को ट्यूमर निकल गया है। हमने पहले उसका पटना में इलाज करवाया। वहां उसका ऑपरेशन भी हो गया परंतु दो महीनों के बाद वह फिर उसी रोग से पीड़ित हो गया है। फिर हम उसे लेकर दिल्ली आए हैं। इन रोगियों में कई ऐसे भी हैं जो रात में दिल्ली के मेट्रो की सीढ़ियों पर रात गुजारते हैं क्योंकि रात में ये सीढ़ियाँ ठंडी रहती हैं और रात में मेट्रो भी नहीं चलती हैं। हमें अपने राज्यों में, शहरों में, गाँवों में इलाज उपलब्ध नहीं रहता है इसलिए हमें दिल्ली आना पड़ता है और अपने मरीजों के साथ हम लगभग भिखारी से भी बदतर जीवन बिताते हैं।
If you are poor, death embraces you early