Hastakshep.com-लाइफ़ स्टाइल-अंतर्राष्ट्रीय नशा निषेध दिवस-International Day against Drug Abuse and Illicit Trafficking in Hindi

World Drug Day -Theme, Significance And Facts : अंतर्राष्ट्रीय नशा निषेध दिवस (26 जून) पर विशेष आलेख

बच्चों में नशे की बढ़ती लत चिंता का कारण है

आज के मौजूदा समय में बड़ी संख्या में बड़ों के साथ साथ बच्चे भी नशा करने लगे हैं. नशे की यह लत इतनी तेजी से बढ़ रही है कि माता-पिता को भी अपने बच्चों को इससे दूर रखने में मुश्किलें आ रही हैं. बड़ों की तरह अब बच्चे भी सभी प्रकार के नशे का सहारा ले रहे हैं. उन्हें यह मालूम नहीं है कि इसकी वजह से वह किस दलदल में फंसते जा रहे हैं? इस बढ़ते नशे की लत के कारण बच्चों की न केवल सेहत बल्कि उनके करियर पर भी बहुत बुरा असर पड़ रहा है. इसी नशीले पदार्थों के बढ़ते सेवन को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 1987 में 'अंतर्राष्ट्रीय नशा निषेध दिवस' (International Day against Drug Abuse and Illicit Trafficking in Hindi) की शुरुआत की गई. जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों को नशा और इससे होने वाले दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक करना है. 26 जून 1989 को पहली बार दुनिया भर में मनाया गया. उसके बाद हर वर्ष किसी न किसी थीम को लेकर इस दिवस पर लोगों में नशे के विरुद्ध जागरूकता फैलाने का कार्य जाता है.

अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस 2024 की थीम

इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय नशा निषेध दिवस का थीम (Theme of International Day Against Drug Abuse 2024) "साक्ष्य स्पष्ट है: रोकथाम में निवेश करें" (“The evidence is clear: invest in prevention”) है. इस थीम का मुख्य उद्देश्य साक्ष्य से आगे बढ़कर इसके रोकथाम पर विशेष जोर देना है. यह रोकथाम केवल नशा से संबंधित ही नहीं है बल्कि नई पीढ़ी तक इसकी पहुंच को रोकना और उन्हें इसके विरुद्ध जागरूक बनाना भी है.

भारत में
कितने बच्चे नशीले पदार्थों के आदी हैं?

दिसंबर 2022 में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में इस बात की जानकारी दी थी कि देश में 10 से 17 साल की उम्र के 1.58 करोड़ बच्चे नशीले पदार्थों के आदी हैं. ये बच्चे और किशोर अल्कोहल, अफीम, कोकीन, भांग सहित कई तरह के नशीले पदार्थों का सेवन कर रहे हैं. यह आंकड़ा न केवल चौंकाता है बल्कि यह हम सभी के लिए चिंता का विषय भी है. इस सामाजिक बुराई से केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर का सीमावर्ती जिला पुंछ भी अछूता नहीं है. यहां भी कुछ बच्चे नशा करते हुए पकड़े जा चुके हैं.

हाल ही में जम्मू के बहु फोर्ट इलाके में तीन नाबालिग बच्चे नशे की हालत में पकड़े गए थे. जब पांचवी कक्षा का विद्यार्थी संतोष कुमार (बदला हुआ नाम) अपने दो दोस्तों के साथ शाम को खेलने के लिए निकला और घर वापस नहीं आया. उसकी मां आंचल देवी (बदला हुआ नाम) पूरी रात अपने बच्चों को ढूंढती रही, इस दौरान उन्हें पता चला कि पड़ोस में रहने वाले दो घरों के बच्चे भी गायब हैं. तब तीनों परिवार के सदस्यों ने इन बच्चों को रात भर ढूंढने की पूरी कोशिश की, परंतु बच्चे नहीं मिले. जिसके बाद परिजनों ने पुलिस में मामला दर्ज करवाया. पुलिस ने छानबीन के दौरान उन तीनों में से एक नाबालिग को बरामद किया. जिसने पूछताछ में बताया बाकि कि दूसरे दोनों नाबालिक कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर जंगल में नशे करके बेसुध पड़े हुए हैं. जिसके बाद पुलिस ने उन्हें जंगल से बेहोशी की हालत में बरामद किया और उनका मेडिकल चेकअप करवाया गया. जहां जांच के दौरान उन्होंने खुद ड्रग्स लेने की बात स्वीकार की. पुलिस के अनुसार इन नाबालिग में से एक परिवार के साथ मिलकर फेरी लगाने का काम करता है. जहां कमाए पैसों से उन्होंने नशे का सामान ख़रीदा था.

जम्मू-कश्मीर में नशे का कारोबार

जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की अधिवक्ता सैय्यदा रुखसार कौसर (Syeda Rukhsar Kausar, Advocate, Jammu and Kashmir High Court) कहती हैं कि नशे का कारोबार पुंछ के ग्रामीण इलाकों में तेज़ी से फैलता जा रहा है. अभी तक इसमें युवा ही लिप्त पाए जाते थे, लेकिन अब यह बुराई बच्चों में भी फैल रही है. इसके लिए घर से लेकर स्कूल तक बच्चों की विशेष काउंसलिंग करने की ज़रूरत है. उनके व्यवहार पर नज़र रखने और उनके साथ दोस्ताना व्यवहार करने की आवश्यकता है. वह कहती हैं कि बच्चों में नशे की तेज़ी से बढ़ती लत के पीछे कई कारण हैं. एक ओर जहां उनका शैक्षणिक विकास नहीं हो रहा है तो कई बार पारिवारिक झगड़ों के कारण भी बच्चे ड्रग्स के आदी होने लगते हैं.

रुखसार के अनुसार यहां के स्कूलों में अक्सर लंबी छुट्टियां होती हैं. वहीं ट्यूशन सेंटर भी नाममात्र के हैं जिससे कि बच्चों को बिज़ी रखना मुश्किल रहता है. ऐसे में बच्चे खाली समय का दुरुपयोग करते हुए कई बार घर से बाहर खेलने के नाम पर नशा करने निकल जाते हैं.

 रुखसार बताती हैं कि वह मूल रूप से पुंछ के मेंढर स्थित छत्राल गांव की रहने वाली हैं. इस गाँव में भी नशा जैसी बुराई ने अपना पांव पसार लिया है. दरअसल बच्चे सर्द ऋतु में होने वाली लंबी छुट्टी के कारण पठन-पाठन से बिल्कुल दूर हो जाते हैं. शिक्षा से यही दूरी उन्हें नशे का आदी बना देती है. इसके अतिरिक्त कई बार घर में होने वाले आपसी कलह और बड़ों का उन्हें हर बात के लिए डांटना भी बच्चों को घर और समाज से दूर नशे के करीब धकेल रहा है. वह कहती हैं कि इन ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को यदि इससे बचाना है तो उन्हें शैक्षणिक गतिविधियों में व्यस्त रखने की बहुत अधिक ज़रूरत है. इसके लिए अभिभावकों को जागरूक और सतर्क रहने की आवश्यकता है. 

कैसे पता करें बच्चे नशे की लत के शिकार हो गए हैं?कैसे जानें आपके बच्चे को तो नहीं लग गई है ड्रग्स की लत?

बच्चे नशे की लत के शिकार हो गए हैं, इसका माता-पिता कैसे पता करें? इस प्रश्न पर पुंछ के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता 65 वर्षीय सुखचैन लाल कहते हैं कि यदि बच्चे के स्वभाव में परिवर्तन आ रहा है, वह अत्यधिक उत्तेजित और आक्रामक व्यवहार कर रहा है, अकारण ही पॉकेट मनी ज़्यादा मांगने लगा है और पढ़ाई में बिल्कुल ही ध्यान नहीं दे रहा है तो माता-पिता को इसे नज़रअंदाज़ न करते हुए सतर्क हो जाना चाहिए. उन्हें बच्चे के साथ सख्ती की जगह दोस्ताना व्यवहार करनी चाहिए. वह कहते हैं कि कई बार घर का माहौल और अभिभावकों की सख्ती भी बच्चों को उनसे दूर नशे की तरफ धकेल देता है.

धीरे धीरे यह बच्चे नशा की पूर्ति के लिए अपराध के रास्ते पर भी चल पड़ते हैं जो न केवल उनके परिवार बल्कि समाज के लिए भी घातक सिद्ध होगा. वह कहते हैं कि इस बुराई से निपटने के लिए सरकार की ओर से नशा मुक्ति केंद्र के साथ साथ पुनर्वास केंद्र भी खोले गए हैं. लेकिन यह उस वक्त तक सफल नहीं हो सकता है जब तक समाज भी प्रमुखता से अपनी भागीदारी नहीं निभाता है.

हरीश कुमार

पुंछ, जम्मू

(चरखा फीचर)

 

इस वर्ष का विश्व ड्रग दिवस निम्नलिखित का आह्वान करता है:
  • जागरूकता बढ़ाएँ: साक्ष्य-आधारित रोकथाम रणनीतियों की प्रभावशीलता और लागत-प्रभावशीलता की समझ बढ़ाएँ, नशीली दवाओं के उपयोग के नुकसान को कम करने पर उनके प्रभाव पर ज़ोर दें।
  • निवेश के लिए वकालत करें: सरकारों, नीति निर्माताओं और कानून प्रवर्तन पेशेवरों द्वारा रोकथाम के प्रयासों में अधिक निवेश को प्रोत्साहित करें, प्रारंभिक हस्तक्षेप और रोकथाम के दीर्घकालिक लाभों पर प्रकाश डालें।
  • समुदायों को सशक्त बनाएँ: साक्ष्य-आधारित रोकथाम पहलों को लागू करने, नशीली दवाओं के उपयोग के खिलाफ़ लचीलापन बढ़ाने और समुदाय-नेतृत्व वाले समाधानों को बढ़ावा देने के लिए समुदायों को उपकरण और संसाधनों से लैस करें।
  • संवाद और सहयोग को सुविधाजनक बनाएँ: साक्ष्य-आधारित रोकथाम प्रथाओं और नीतियों को बढ़ाने के लिए हितधारकों के बीच संवाद और सहयोग को बढ़ावा दें, ज्ञान साझा करने और नवाचार के लिए एक सहायक वातावरण को बढ़ावा दें।
  • साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण को बढ़ावा दें: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण की वकालत करें, यह सुनिश्चित करें कि नशीली दवाओं की नीतियाँ वैज्ञानिक अनुसंधान पर आधारित हों और सर्वोत्तम प्रथाओं से सूचित हों।
  • समुदायों को शामिल करें: प्रभावी नशीली दवाओं की रोकथाम कार्यक्रमों को डिजाइन करने और लागू करने में सामुदायिक जुड़ाव और भागीदारी के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाएँ, रोकथाम के प्रयासों का स्वामित्व लेने के लिए समुदायों को सशक्त बनाएँ।
  • युवाओं को सशक्त बनाना : युवाओं को अपने समुदायों में परिवर्तन के एजेंट बनने के लिए ज्ञान, कौशल और संसाधन प्रदान करना, नशीली दवाओं की रोकथाम की पहल की वकालत करना और बातचीत में उनकी आवाज़ को बुलंद करना। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना: नशीली दवाओं की तस्करी और संगठित अपराध से निपटने के लिए साक्ष्य-आधारित रणनीतियों को विकसित करने और लागू करने के लिए सरकारों, संगठनों और समुदायों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सहभागिता को बढ़ावा देना, नशीली दवाओं की समस्या की वैश्विक प्रकृति और समन्वित कार्रवाई की आवश्यकता को पहचानना।

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