Hastakshep.com-समाचार-इजराइल और फिलिस्तीन विवाद में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का आदेश-International Court of Justice's order in Israel-Palestine dispute,

नई दिल्ली, 20 जुलाई 2024. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) द्वारा निर्णय किया गया है कि फ़लस्तीनी क्षेत्र में इसराइल की निरन्तर मौजूदगी “ग़ैर-क़ानूनी है"। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने यह भी कहा है कि यभी देशों की यह ज़िम्मेदारी है कि वह “इसराइली क़ब्ज़े को मान्यता नहीं दें”। इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र समाचार की ख़बर से जानते हैं कि इजराइल और फिलिस्तीन विवाद में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने अपने आदेश में और क्या कहा है-

ICJ ने कहा, फ़लस्तीनी क्षेत्र पर इसराइल का निरन्तर क़ब्ज़ा 'ग़ैर-क़ानूनी'

संयुक्त राष्ट्र के अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय – ICJ ने शुक्रवार को घोषणा की है कि क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र में इसराइल की निरन्तर मौजूदगी “ग़ैर-क़ानूनी है”, और ये कि “सभी देशों की ये ज़िम्मेदारी है कि वो दशकों पुराने “इसराइली क़ब्ज़े को मान्यता नहीं दें”.

द हेग स्थित विश्व न्यायालय ने, यूएन महासभा के अनुरोध पर सुनवाई के बाद यह निर्णय सुनाया है, जिसमें क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र में इसराइल की नीतियों और गतिविधियों के क़ानूनी नतीजों के बारे में न्यायालय की राय मांगी गई थी.

अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय की ये सलाह, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून सम्बन्धी सवालों पर क़ानूनी राय है.

इस तरह का परामर्श, देशों के बीच विवादास्पद मुद्दों पर इस न्यायालय के निर्णयों की तरह क़ानूनी रूप से बाध्य नहीं होता है.

इस तरह का परामर्श यूएन महासभा और सुरक्षा परिषद सहित संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंग, अन्तरराष्ट्रीय मुद्दों पर, इस अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय से मांग सकते हैं.

इस तरह के परामर्श अलबत्ता क़ानूनी रूप से बाध्य नहीं हैं मगर वो, अन्तरराष्ट्रीय नीतियों को आकार देने, नैतिक दबाव बनाने, और देशों द्वारा निजी रूप में एकतरफ़ा तौर पर क़दम उठाने के लिए रास्ता खोल सकते हैं, जिनमें प्रतिबन्ध जैसे क़दम भी शामिल हैं.   

इसराइल की ज़िम्मेदारियाँ

अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय ने अपने परामर्श में निष्कर्ष दिया है कि क़ाबिज़ फ़लस्तीनी

क्षेत्र में इसराइल की निरन्तर मौजूदगी अवैध है और इसराइल की ये ज़िम्मेदारी है कि वो इस ग़ैर-क़ानूनी मौजूदगी को,” जल्द से जल्द” ख़त्म करे.

न्यायालय ने ये भी कहा है कि इसराइल “की ये भी ज़िम्मेदारी है कि वो क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र में नई यहूदी बस्तियाँ बसाना तत्काल बन्द करे और इस तरह की बस्तियों में रहने वाले सभी यहूदी बाशिन्दों को वहाँ से हटाए.”

न्यायालय इस परामर्श में इसराइल से सम्बन्धित तमाम प्राकृतिक और क़ानूनी व्यक्तियों को हुए नुक़सान की भरपाई करने के लिए भी कहा है.

देशों की ज़िम्मेदारियाँ

अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय के परामर्श में आगे कहा गया है कि तमाम देशों की ये ज़िम्मेदारी है कि वो इसराइल की ग़ैर-क़ानूनी मौजूदगी से उत्पन्न स्थिति को क़ानूनी मान्यता नहीं दें.

साथ ही देशों की ये भी ज़िम्मेदारी है कि क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र में, इसराइल की लगातार मौजूदगी से स्थिति को बरक़रार रखने में किसी तरह की सहायता नहीं दें.

अन्तरराष्ट्रीय संगठनों की ज़िम्मेदारी

न्यायालय ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र सहित सभी अन्तरराष्ट्रीय संगठनों की ये ज़िम्मेदारी है कि वो फ़लस्तीनी क्षेत्र में इसराइल की ग़ैर-क़ानूनी मौजूदगी से उत्पन्न स्थिति को क़ानूनी मान्यता नहीं दें.

ICJ ने आगे रेखांकित किया है कि संयुक्त राष्ट्र, विशेष, रूप में महासभा और सुरक्षा परिषद को, “क़ाबिज़ फ़लस्तीनी क्षेत्र में इसराइल की ग़ैर-क़ानूनी मौजूदगी को जल्द से जल्द ख़त्म करने के लिए, सटीक उपायों और आगे की ज़रूरी कार्रवाई पर विचार करे.”

यूएन महासभा का अनुरोध

यूएन महासभा ने दिसम्बर 2022 में एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें ICJ से अन्य बिन्दुओं के अतिरिक्त, यूएन चार्टर के अनुच्छेद 96 और न्यायालय संविदा के अनुच्छेद 65 के तहत उसका परामर्श मांगा था.

न्यायालय के इस परामर्श में, इसराइल द्वारा फ़लस्तीनी क्षेत्र पर लम्बे समय से किए गए क़ब्ज़े, फ़लस्तीनी क्षेत्र में यहूदी बस्तियाँ बसाने और 1967 में फ़लस्तीनी इलाक़ों पर किए गए क़ब्ज़े और फिर उन्हें छीने जाने से उत्पन्न हालात में, फ़लस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का लगातार उल्लंघन किए जाने के क़ानूनी परिणामों का ख़ाका भी पेश किया है.

इसराइल की इन गतिविधियों में ऐसे भेदभावपूर्ण उपाय भी शामिल हैं जिन्होंने, येरूशेलम की आबादी संरचना और दर्ज को प्रभावित किया है.

यूएन महासभा ने इस मुद्दे पर भी परामर्श मांगा था कि इसराइल की ये नीतियाँ और गतिविधियाँ, फ़लस्तीनी क्षेत्र पर उसके क़ब्ज़े के क़ानूनी दर्जे को किस तरह प्रभावित करती हैं और उसके क़ानूनी परिणाम क्या होंगे.

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