जस्टिस मार्कंडेय काटजू की लघुकथा में एक गिद्ध के बच्चे की कहानी है, जो इंसान के गोश्त की इच्छा करता है। इसके लिए गिद्ध ने क्या कदम उठाए और इसके परिणाम स्वरूप शहर में फैली लाशों की स्थिति का कारण क्या था, जानिए इस चौंकाने वाली लघुकथा में। जस्टिस काटजू के विचार और उनका दृष्टिकोण (Justice Katju's views and his approach) इस लघुकथा में झलकता है, जो भारतीय समाज और इंसान की मानसिकता पर एक तीखा व्यंग्य प्रस्तुत करता है---
एक बार हिंदुस्तान में एक गिद्ध के बच्चे ने अपने बाप से कहा
"पिताश्री, मुझे इंसान का गोश्त खाना है".
गिद्ध बच्चे के लिए सुअर का गोश्त ले आया .
बच्चे ने कहा "मगर यह तो सुअर का गोश्त है" और यह कह कर खाने से इनकार कर दिया.
तब गिद्ध बच्चे के लिए गाय का गोश्त ले आया.
बच्चे ने कहा, "मगर यह तो गाय का गोश्त है" और यह कहकर खाने से इंकार कर दिया.
तब गिद्ध गया और सुअर के गोश्त को मस्जिद में, और गाय के गोश्त को मंदिर में रातों रात फेंक आया.
अगले दिन इंसानों की लाशें शहर में बिछ गयीं, और गिद्ध के बच्चे ने कई हफ्ते जम के खाया.
उसके बाद उसने अपने बाप से कहा, "पिताश्री, इतनी सारी लाशें इतनी जल्दी कैसे मिल गयीं ?"
गिद्ध ने कहा, "बेटा, यह हिंदुस्तान है, जैसा कि एक मनफिरे जज ने कहा था, यहां 90% लोग पागल होते हैं. "
(जस्टिस काटजू, सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)
Justice Markandey Katju's