चुनाव के मौसम में भाजपा और कांग्रेस के बीच बहस चल रही है कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार किसका है? आजकल नरेंद्र मोदी ही भाजपा हैं। वे पूर्व-प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयानों का हवाला देकर कहते हैं कि कांग्रेस देश के सारे संसाधनों को मुसलमानों को देना चाहती है। यहां तक कि हिंदू महिलाओं के मंगल-सूत्र भी! कांग्रेस इस आरोप को एक सिरे से नकार रही है। उसका कहना है कि न मनमोहन सिंह ने ऐसा कुछ कहा था, न कांग्रेस ने कभी यह कहा है। दोनों बड़े दलों के बीच चल रही इस बहस को एक भूल दिए डॉक्युमेंट, जस्टिस राजेंद्र सच्चर कमेटी की रिपोर्ट, की रोशनी में देखा जा सकता है।
मनमोहन सिंह के जिन दो बयानों की चर्चा है, उनमें पहला दिसंबर 2006 का है, और दूसरा अप्रैल 2009 का है। यानि ये दोनों बयान सच्चर कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद के हैं। देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय की सामाजिक-आर्थिक-शैक्षिक स्थिति की वास्तविकता का पता लगाने के लिए प्रधानमंत्री की 7 सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति का गठन जस्टिस राजेंद्र सच्चर की अध्यक्षता में 5 मार्च 2005 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किया गया था। समिति ने निर्धारित समय में काम पूरा करके 403 पृष्ठों की रिपोर्ट नवंबर 2006 में सरकार को सौंप दी थी। सरकार ने रिपोर्ट को 30 दिसंबर 2006 को संसद के पटल पर रख दिया था।
रिपोर्ट केंद्र और राज्य सरकारों के विविध स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी केंद्र सरकारों के शासन में अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों को नजरअंदाज किया गया है। रिपोर्ट ने आजादी के बाद से भारत में मुसलमानों की लगातार बढ़ती आर्थिक असमानता और सामाजिक असुरक्षा और अलगाव की ओर पहली बार ध्यान आकर्षित किया। आधिकारिक आंकड़ों के आधार पर यह
इस रिपोर्ट को पूरे भारत में मुस्लिम समुदाय की सच्ची तस्वीर दिखाने वाला दर्पण बताया गया। रिपोर्ट से आजादी के समय से चला आ रहा 'मुस्लिम तुष्टिकरण' का मिथक एक झटके में धराशायी हो गया। जाहिर है, रिपोर्ट के निष्कर्ष और सिफारिशें राजनीतिक, सामाजिक और बौद्धिक हलकों में तीखी बहस का विषय बन गए। रिपोर्ट के एक निष्कर्ष कि देश में मुसलमानों की स्थिति दलितों से खराब है, ने काफी लोगों को चौंकाया था। और भी, मुसलमानों की सबसे बुरी हालत पश्चिम बंगाल में है, जहां लंबे समय तक सीपीएम नीत वाम मोर्चा सरकार का शासन रहा। रिपोर्ट के निष्कर्षों, सिफ़ारिशों और कार्यप्रणाली के बारे में कुछ असहमति की आवाज़ें भी थीं। लेकिन वे तकनीकी ढंग की थीं। अधिकांश बुद्धिजीवियों और नेताओं ने रिपोर्ट को सराहा। भाजपा ने रिपोर्ट का पुरजोर विरोध किया; और तभी तत्काल उसने यह आरोप लगा दिया था कि कांग्रेस देश के सभी संसाधनों को मुसलमानों को देना चाहती है।
यह भी ध्यान दिया जा सकता है कि सभी धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के बीच घोषणापत्रों में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट की सिफ़ारिशों को लागू करने का वादा करने की होड़ मच गई थी। लेकिन नरेंद्र मोदी के बहुसंख्यावाद के हथियार के सामने नतमस्तक हो, कांग्रेस समेत सभी दलों ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का नाम तक लेना बंद कर दिया। यहां तक कि 2019 के लोकसभा चुनाव में एक भी राजनीतिक दल के घोषणापत्र में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का उल्लेख नहीं था। न ही शायद इस बार है। मौजूदा विवाद में भी अभी तक कांग्रेस ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में प्रस्तुत मुसलमानों की दशा का हवाला देकर मनमोहन सिंह के बयान का औचित्य सिद्ध नहीं किया है।
मनमोहन सिंह का पहला बयान स्पष्ट तौर पर समाज के वंचित और कमजोर समूहों – दलित, आदिवासी, पिछड़े, महिलाएं, गरीब मुसलमान और बच्चे – के सशक्तिकरण की जरूरत को लेकर था। भाजपा ने इस समावेशी बयान को संदर्भ से काट कर उसी समय प्रधानमंत्री और कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि वे देश के सभी संसाधनों को मुसलमानों को देने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय से जारी स्पष्टीकरण का भाजपा के विरोध पर कोई असर नहीं हुआ था। दूसरे बयान, जो 2019 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले दिया गया था, में उन्होंने गरीब मुसलमानों को प्राथमिकता देने की बात कही गई थी।
देश के प्रधानमंत्री के नाते डॉ. मनमोहन सिंह का देश के सबसे कमजोर समुदाय की हिमायत करना एक सराहनीय और जरूरी काम था। इसके साथ नई आर्थिक नीतियों के जनक मनमोहन सिंह यह अच्छी तरह समझ रहे होंगे कि देश में आगे चलने वाली निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों का सबसे बुरा प्रभाव पहले से ही वंचित और कमजोर तबकों पर पड़ेगा, जिनमें, सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, गरीब मुसलमान सबसे नीचे हैं। ऐसा ही हुआ है। सच्चर समिति की रिपोर्ट के दस साल होने पर पीयूसीएल, सोशलिस्ट युवजन सभा (एसवाईएस) और खुदाई खिदमतगार ने दिल्ली में एक दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया था. जस्टिस सच्चर खुद उस कार्यक्रम में श्रोता की हैसियत से मौजूद रहे। समिति में सरकार की तरफ से ओएसडी रहे सईद महमूद ज़फर ने विस्तार से बताया कि 10 साल बीतने पर भी रपट की सिफारिशों पर नगण्य अमल हुआ है। इधर प्रधानमंत्री महोदय हैं जो बहुसंख्यकों को भड़का रहे हैं कि कांग्रेस जीत गई तो सारे संसाधन मुसलमानों को दे देगी!
मनमोहन सिंह के बयान के पीछे कांग्रेस के पुराने वोट बैंक को फिर से हासिल करने की रणनीति से इनकार नहीं किया जा सकता। यही वह समय है जब राहुल गांधी दलितों को कांग्रेस फोल्ड में लाने के उद्देश्य से उनके घरों में जाकर मिलते थे, और उनके साथ खाना खाते थे। अपने वोट बैंक पर किए जाने वाले उस हमले से नाराज मायावती राहुल गांधी पर तंज कसती थीं। लेकिन नरेंद्र मोदी की भाजपा के शासन में किसी नेता, बुद्धिजीवी अथवा नागरिक का मुसलमानों का नाम लेना ही गुनाह हो जाता है। शायद यही डर है कि मनमोहन सिंह के बयान के पक्ष में न कांग्रेस, न कोई अन्य धर्मनिरपेक्ष कहा जाने वाला राजनीतिक दल और न ही कोई बुद्धिजीवी सच्चर कमेटी की रिपोर्ट और उसमें बताई गई मुस्लिम जीवन की वास्तविकता का जिक्र कर रहा है। एक संवैधानिक राष्ट्र और सभ्य समाज के लिए यह गहरी चिंता की बात है। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट केवल आंकड़े प्रस्तुत नहीं करती, बल्कि यह निर्देश भी देती है कि आधुनिक विश्व में भारत का एक नागरिक समाज के रूप में निर्माण कैसे होना चाहिए।
अंत में, इस पूरी बहस में मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी दोनों से यह वाजिब सवाल पूछा जा सकता है कि जब आप, नवउदारवादी नीतियों के जरिए, देश के संसाधनों, परिसंपत्तियों और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का पहला अधिकार कारपोरेट घरानों को सौंपते जा रहे हैं, तो यह फर्जी बहस किस लिए चला रहे हैं?
प्रेम सिंह
(समाजवादी आंदोलन से जुड़े लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व शिक्षक और भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के पूर्व फ़ेलो हैं।)
National Resources and Muslims: In the Mirror of Sachar Committee Report