मध्यप्रदेश में भाजपा की शराब नीति और धार्मिक नगरी के शिगूफे पर गहरा सवाल उठाते हुए, लोकजतन के संपादक बादल सरोज के इस लेख में बताया गया है कि कैसे सरकार ने शराब दुकानों की संख्या बढ़ा दी और अपनी कथित शराबबंदी नीति से जनता को भ्रमित किया। मध्यप्रदेश की शराब नीति में भ्रष्टाचार और लाभ के कारणों पर प्रकाश डाला गया है। लोकजतन के संपादक बादल सरोज के लेख से जानिए कैसे यह राज्य 'मद्य-प्रदेश' बनता जा रहा है
शिगूफेबाजी, झांसेबाजी और पाखण्ड की कोई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता हो तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी बिना किसी मुश्किल के विश्वविजयी होकर निकलेगी। दिन-दहाड़े, खुलेआम, बिना पलक झपकाए झूठ बोलने में इसे जो सिद्धि हासिल है, वह कमाल ही है। सार्वजनिक रूप से खुद उनके अपने प्रमाणित दस्तावेजी सबूतों के बावजूद वे ठीक उससे उलट, एकदम गलत दावा ठोक सकते हैं और उसे बिना पलक झपकाये बार- बार दोहरा सकते हैं। कथित बड़े मीडिया के पूरी तरह चाकर और चरणचुम्बी हो जाने के बाद तो अब इस कुनबे का हौसला और भी बढ़ गया है; न कोई पूछताछ है, न कहीं समीक्षा है, न किसी के आगे जवाबदेही है। मध्यप्रदेश की भाजपा इस मामले में और भी निराली है : पूर्व मुख्यमन्त्री रहते मन्दसौर के किसानों को गोलियों से भूनने की योग्यता के चलते मोदी मंत्रिमंडल में कृषि और किसान कल्याण मंत्री बने शिवराज सिंह इस विधा के बड़े वाले उस्तादों में से एक थे। उनके बाद दिल्ली से आई पर्ची से निकले मुख्यमन्त्री मोहन यादव अब, इस मामले में उनसे भी आगे निकलने की जी तोड़
महेश्वर में हुई मंत्रीमंडल की बैठक के बाद दिए मुख्यमंत्री के बयान के अलावा कोई आदेश अभी तक जारी नहीं हुआ है, इसलिए इसका मतलब क्या है, यह वे ही जानें, मगर उनके कहे को ही पढ़ें तो अब इन शहरों में भी शराब पीने पर रोक नहीं होगी – बस बिक्री वाली दुकानें भर नहीं होगी। बिना किसी रोकथाम के इन नगरों की सीमा से ज़रा सा बाहर जाकर दारू लाई, पी और पिलाई जा सकती है।
दिखावे की हास्यास्पदता सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है इससे आगे भी है। जैसे इस घोषणा के बाद 3600 शराब दुकानों में से कुल मिलाकर मात्र 47 शराब दुकानें बंद होंगी, लेकिन इसी सांस में 211 नई दुकानें खोले जाने का भी फैसला हुआ है। इन दुकानों को पेसा क़ानून के तहत दिया जाना बताया गया है; मतलब इन्हें आदिवासी बहुल ग्रामीण इलाकों में खोला जाएगा। इसके दूसरे भी असर होंगे, उन्हें फिलहाल छोड़ भी दें तो कुल नतीजा यह है कि बिक्री पर रोक, जिसे एक और पूर्व मुख्यमंत्री उमा जी ने सम्पूर्ण नशाबन्दी की ओर बड़ा कदम बताया है, के बाद प्रदेश में शराब दुकानों की संख्या 164 और बढ़ जाने वाली है। इसके अलावा बिना पानी मिलाये पी जाने वाली रेडी टू ड्रिंक की नई किस्म की शराब (New variety of ready to drink liquor) लाये जाने की घोषणा हुई है, जिसे आने वाले दिनों में परचून की दुकानों से भी बिकवाया जाने लगे तो आश्चर्य नहीं होगा।
शराब पीना अच्छी बात नहीं है, पियक्कड़ होना तो और भी खराब बात है।
मदिरापान सिर्फ शारीरिक सेहत को तो नुकसान पहुंचाता ही है पारिवारिक और सामाजिक स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। मगर इसका समाधान कानूनी शराबबंदी में नहीं ढूँढा जा सकता। इस तरह की नशाबन्दी समस्या कम नहीं करती उसे बढ़ाती है; अवैध शराब, नकली और मिलावटी शराब के धंधे फलते फूलते हैं, लोगों का जीवन भी खतरे में पड़ता है, वे लुटते भी हैं और अपराध अलग से बढ़ते हैं। यही वजह है कि इससे निबटने के सभ्य समाज में दो तरीके होते हैं; एक नागरिको की चेतना और समझ को विकसित करते हुए उन्हें संयम सिखाना, दो मदिरा की कीमत बढ़ाना, उसकी उपलब्धता को नियंत्रित करना। भाजपा ने ठीक इससे उलटा है वाला रास्ता चुना हुआ; यह देश की ऐसी अनोखी सरकार है जो मदिरापान के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करती है। शिवराज सिंह के कार्यकाल में ऐसे अनेक कदम उठाए गए। देसी और अंग्रेजी शराब की दुकानों को मिलाकर कम्पोजिट बनाने के एक ही आदेश से मदिरा दुकानों की संख्या दो गुनी कर दी गयी।
शॉप्स एंड एस्टैब्लिशमेंट एक्ट के अनुसार सभी दुकानें रात 10 बजे बंद हो जानी चाहिएं, मगर शराब दुकानों के लिए यह समय रात 11.30 बजे तक का कर दिया गया। बार, क्लब और होटल्स के रेस्टारेन्ट्स में रात 2 बजे तक शराब परोसे और पिलाए जाने की छूट दे दी गयी। बाकी महंगाई भले बेलगाम रही मगर साल शराब के दामों में 20 प्रतिशत की कमी कर दी गयी और आयकर चुकाने वाले लोगों को अपने घर में ‘महँगी’ शराब की 100 बोतल तक रखने की कानूनी मोहलत दे दी।
इसके अलावा एक और कहर देश की सबसे बड़ी आदिवासी आबादी वाले इस प्रदेश के आदिवासियों पर बरपा हुआ। आबकारी क़ानून आदिवासियों के लिए यह प्रावधान करता है कि वे अनुसूचित जाति के लिए अधिसूचित इलाकों में अपनी वनोपज महुआ से शराब बना सकते हैं। यह क़ानून महुआ की घर में उतरी शराब को 4-5 लिटर प्रति व्यक्ति, 45 लिटर प्रति परिवार तक रखने की अनुमति देता है। विशेष पर्वों, त्यौहारों पर 45 लिटर की अनुमति अलग है। शराब कंपनियों और उनके लाईसेंसी ठेकेदारो की कमाई बढाने के लिए यह प्रावधान व्यवहार में उलटे जा चुके हैं।
कथित शराब जब्ती के मुकदमों में होने वाली गिरफ्तारियों में औसतन तीन चौथाई प्रकरण आदिवासियों और दलितों के खिलाफ होते हैं, एक तिहाई से अधिक जब्ती महुआ से बनी शराब की होती है। अब 47 बंद कर जो 211 नई दुकानें पेसा कानून में खोली जा रही हैं वे देरसबेर आदिवासियों की लूट का जरिया ही बनने वाली हैं।
कारपोरेट रियायती, भ्रष्टाचार हिमायती नीतियों के चलते बाकी सब जगह आमदनी घटने और लगातार कर्ज में डूबते जाने के चलते दिवालिया हुई सरकार के पास आबकारी की कमाई के सिवा कमाई का कोई और आसान जरिया नहीं बचा है, इसलिए शराब पीने पिलाने को आकर्षक बनाया जाता रहा; ठेका लेने वालों के लिए दुकानों की चमचमाती सज्जा अनिवार्य कर दी गयी। यही नीतियाँ मोहन यादव के कार्यकाल में भी जारी रहीं, जारी है।
पिछले 6 वर्षों में शराब से होने वाली आमदनी एक कोरोना लॉकडाउन के वित्तीय वर्ष को छोड़कर लगातार बढ़ी; 2018-19 के साढ़े नौ हजार करोड़ से बढ़कर 2024-25 में साढ़े तेरह हजार करोड़ रुपयों तक पहुँच गयी। पिछली 8 वर्षों में मध्यप्रदेश में शराब की खपत 10 करोड़ बल्क लीटर से दो गुनी होकर लगभग 20 करोड़ बल्क लीटर तक पहुँच गयी। बार बढ़कर 437 हो गए।
नतीजा यह निकला कि मध्यप्रदेश, जिसे संक्षेप में मप्र कहा जाता है भाजपा राज में उस म प्र ने एक साथ दो नए ज्यादा सटीक पर्यायवाची हासिल किये हैं; पहले मृत्यु प्रदेश और अब मद्य-प्रदेश के रूप में इसने पुनर्नामकरण कमाया है। उस मद्य-पदेश के मुख्यमंत्री ‘करें गली में क़त्ल बैठ चौराहे पर रोयें’की भंगिमा बनाए 17 शहरों की 47 दुकानें बंद करवाने के नाम पर जो करना चाहते हैं उसका मदिरापान करने न करने से कोई संबंध नहीं है। यह धर्म की ओट में अपने सारे खोट छुपाने की, खुद को ज्यादा बड़ा और पक्का हिन्दुत्ववादी बताने की ऐसी चतुराई है जिसे इस कुनबे के नेता आजमाते रहते हैं।
चलते चलते
धार्मिक नगरियों में शराब दुकानें बंद करने के बाद की इस घोषणा के साथ पहला रोचक असमंजस उसी शहर – उज्जैन - में हुआ जिससे मुख्यमंत्री मोहन यादव जीत कर आते हैं। इसे शिव के महांकाल की नगरी के नाम पर मदिरा दूकान विहीन कर दिया गया है। यहीं शिव के ही दूसरे रूप कालभैरव का भी स्थान है जो काल के स्वामी होने के साथ अपने क्रोध और उग्रता के लिए भी जाने जाते हैं ..... और वे सिर्फ मदिरा का ही भोग ग्रहण करते हैं !! अब उनका क्या होगा ?? काल भैरव के पास किस मुंह से जायेंगे मोहन ??
बादल सरोज
सम्पादक लोकजतन, संयुक्त सचिव अखिल भारतीय किसानसभा