वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी सिंह की X पर टिप्पणी में, नरेंद्र मोदी और संघ के इतिहास पर गहराई से प्रकाश डाला गया है। इसमें बताया गया है कि कैसे मोदी और संघ के स्वयंसेवकों को कीव में उस 'अधनंगे फ़क़ीर' के सामने सिर झुकाना पड़ा, जिसे संघ ने पहले 'वध' कर मिठाई बाँटी थी। यह लेख संघ की कोशिशों की समीक्षा करता है जो इस फ़क़ीर के चरित्र को बदनाम करने और उनके 'वध' को न्यायसंगत ठहराने की रही है। साथ ही, यह दर्शाता है कि कैसे दुनिया के लिए गांधी का विचार अब भी अमिट है, जबकि संघ के प्रयासों के बावजूद मोदी और संघ को गांधी के प्रभाव से मुक्त नहीं किया जा सकता… पढ़ते हैं शीतल पी सिंह की टिप्पणी-
“उक्रेन की राजधानी कीव में भी संघ के स्वयंसेवक नरेंद्र मोदी जी को उसी अधनंगे फ़क़ीर के सामने सिर नवाना पड़ा जिसका ‘वध’ करके एक समय संघ ने अपनी शाखाओं में मिठाई बाँटी थीं और पकड़े न जाएं इसलिए हत्यारे से रिश्ता नकार दिया था!
हालाँकि संघी तब से आज तक क़रीब छिहत्तर सतहत्तर बरस से उस फ़क़ीर के किरदार को मारने की अनवरत कोशिश कर रहे हैं और उनकी हत्या के ऐतिहासिक अपराध के निशान मिटाने की भी। इस क़वायद में उन्होंने उस फ़क़ीर को चरित्रहीन तक साबित करने की कोशिश की है और उनके ‘वध’ को ज़रूरी साबित करने के लिए कोई कसर बाक़ी नहीं रक्खी है। किताबें लिखवाईं, नाटक लिखे/ किये, अल्पज्ञात संगठन, नेता और कथित विद्वान खड़े किये जो उनके हत्यारे और उसके अपराध को महिमामंडित करें। और तो और अब सावरकर को उनके बरक्स खड़ा करने की असंभावना को संभावना में बदलने का अनवरत
लेकिन इस सारी क़वायद से वे भारत के जातिवाद की सड़ी गली व्यवस्था के लाभार्थियों की आज़ादी के कई दशकों बाद स्वतंत्र भारत में जन्मी पीढ़ी के एक हिस्से को तो बरगलाने में सफल रहे पर दुनिया का क्या करें ?
घर से निकलते ही - कुछ दूर चलते ही हर कदम पर उसी अधनंगे फ़क़ीर के सामने झुकना पड़ता है, हालाँकि खुद आपके अनुसार उन्हें दुनिया ने तब जाना जब उन पर फ़िल्म बनी ! जबकि आपकी लाख कोशिश के बावजूद दुनिया सावरकर, गोलवरकर, मुखर्जी और दीनदयाल को नहीं जानती, नहीं मानती। वह उसी को जानती समझती है जिसे आइंस्टाइन समझने की कोशिश करते रहे और जिसे चार्ली चैपलिन जानना चाहते थे, जिसे मार्टिन लूथर किंग ने आत्मसात् किया और जिसे नेलसन मंडेला ने काल कोठरी में बार-बार याद किया! जिसे दुनिया की हर यूनिवर्सिटी पढ़ती है और लगभग हर देश ने जिसे किसी न किसी सड़क, गली, चौराहे या विश्वविद्यालय में अपने से जोड़ लिया है!
आप चुनाव में किसी को बार-बार लगातार हरा कर विजेता के दर्प में डूब सकते हो प्रधानमंत्री मोदीजी पर गांधी नाम का जो विचार है न, चाहते हुए भी उसका ‘वध’ नहीं कर सकते!”
उक्रेन की राजधानी कीव में भी संघ के स्वयंसेवक नरेंद्र मोदी जी को उसी अधनंगे फ़क़ीर के सामने सिर नवाना पड़ा जिसका ‘वध’ करके एक समय संघ ने अपनी शाखाओं में मिठाई बाँटी थीं और पकड़े न जांय इसलिए हत्यारे से रिश्ता नकार दिया था!
हालाँकि संघी तब से आज तक क़रीब छिहत्तर सतहत्तर बरस से उस… pic.twitter.com/HYcZzI2mzK
RSS volunteer Narendra Modi had to bow his head in front of a half-naked beggar