राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच तनाव की खबर (news of tension between the governor and the state government) कोई नई नहीं है। ऐसे कई मामले पहले भी सामने आ चुके हैं जब दोनों के बीच टकराव की स्थिति बन गई हो। कई बार ये मामले सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच चुके हैं। और अब एक बार फिर राज्यपालों की भूमिका सवालों के घेरे में नज़र आ रही है। और इस बार ये सवाल सुप्रीम कोर्ट की एक मौजूदा जज ने उठाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बी वी नागरत्ना (Supreme Court Judge Justice BV Nagarathna) ने राज्यपालों की भूमिका पर गहरी नाराज़गी (Deep resentment over the role of governors) जताई है। उन्होंने राज्यपालों को राजनीति से उठकर काम करने की नसीहत भी दे डाली।
सुप्रीम कोर्ट की जज की ये टिप्पणी काफी अहम है, और कहीं न कहीं अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या राज्यपाल राजनीतिक दलों की कठपुतली बन चुके हैं? आखिर क्यों सुप्रीम कोर्ट की जज ने इतनी बड़ी बात कही।इसी पर DB Live के लिए आराधना की स्पेशल रिपोर्ट :
राज्यपाल और राज्य सरकारों के बीच की खटपट ने अक्सर ही सुर्खियां बटोरी हैं। दोनों के बीच शिकायतों का दौर लगा ही रहता है। कभी राज्यपाल प्रदेश की सरकार की आलोचना करते दिखाई देते हैं, तो कभी प्रदेश की सरकार राज्यपाल के खिलाफ बयान देती हुई। अब ये सिलसिले भी काफी तीखे हो चले हैं। इस बीच राज्यपालों के फैसलों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी कई मुद्दे उठाए गए हैं।
जस्टिस नागरत्ना अपने अहम फैसलों के कारण जानी जाती हैं। ये उस बेंच में भी शामिल थी जिसने बिलकिस बानो केस में दोषियों को गुजरात हाई कोर्ट से मिली छूट को ख़ारिज कर दिया था। और अब राज्यपालों की कार्यशैली को लेकर जस्टिस नागरत्ना का बड़ा बयान (Justice Nagarathna's big statement on the working style of governors) सामने आया है। राज्यपालों की भूमिका को लेकर उन्होंने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
जस्टिस नागरत्ना ने तीखे अंदाज में कहा कि राज्यपाल वहां भूमिका निभा रहे हैं, जहां उन्हें नहीं निभाना चाहिए। लेकिन जब उन्हें एक्टिव होकर अपनी भूमिका को निभाना चाहिए, तब वो ऐसा नहीं कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में राज्यपालों के खिलाफ मामले भारत में राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति की एक दुखद कहानी है।
जस्टिस नागरत्ना बेंगलुरु में एनएलएसआईयू पैक्ट कॉन्फ्रेंस में बोल रही थीं। इस दौरान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में राज्यपालों के खिलाफ मामलों को दुखद बताया।
राज्यपालों की निष्पक्षता पर बात करते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि राज्यपाल से कुछ कार्य किए जाने की अपेक्षा की जाती है। हम अपने संविधान में राज्यपाल को शामिल करना चाहते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि अगर राज्यपाल वास्तव में अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत हैं और वह अच्छी तरह से काम करते हैं तो यह संस्था, आपस में विरोधी समूहों के बीच किसी तरह की समझ और सामंजस्य लाएगी। यह केवल इसी उद्देश्य के लिए प्रस्तावित है। शासन का विचार राज्यपाल को पार्टी की राजनीति, गुटों से ऊपर रखना है और उसे पार्टी के मामलों के अधीन नहीं करना है।
जस्टिस नागरत्ना ने साफ़ तौर पर प्रशासन में राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि राज्यपाल की नियुक्ति केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समझ बढ़ाने के उद्देश्य से की गई है...न कि किसी एक पार्टी की विचारधारा का समर्थन करने के लिए। उन्होंने संकेतों में केंद्र की सत्ता में काबिज़ दल के राज्यपाल के ज़रिए राज्य में हस्तक्षेप पर नाराज़गी जताई है। और इस बात पर भी ज़ोर दिया कि राज्य के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विषय महत्वहीन नहीं हैं और न ही राज्यों को अक्षम या अधीनस्थ माना जाना चाहिए।
जस्टिस नागरत्ना का बयान ऐसे वक़्त पर आया है जब राज्यपालों पर राज्य सरकारों के साथ भेदभाव करने के आरोप तेज़ होते हुए नज़र आ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में राज्यपाल के इस रवैये के खिलाफ केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की तरफ से याचिकाएं दाखिल की गई हैं।
डीएमके विधायक पोनमुडी प्रकरण
तमिलनाडु में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच तनाव का विषय रहा पार्टी नेता को मंत्रिपद की शपथ दिलाने में आनाकानी।
दरअसल अवैध प्रॉपर्टी मामले में दोषी पाए जाने पर मद्रास हाई कोर्ट ने तत्कालीन तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री और DMK विधायक पोनमुडी को सजा सुनाई थी, जिस कारण उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। जिसके बाद पोनमुडी को दोबारा राज्य मंत्रिमंडल में शामिल करने की तैयारी थी। लेकिन राज्यपाल आरएन रवि ने इंकार कर दिया, जिस पर नाराज़गी जताते हुए सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने राज्यपाल के आचरण पर सवाल उठा दिए। उन्होंने राज्यपाल को कोर्ट की अवहेलना करने की बात कहते हुए पूछा कि राज्यपाल कैसे कह सकते हैं कि DMK नेता पोनमुडी का राज्य मंत्रिमंडल में दोबारा शामिल होना संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ होगा।
सीजेआई ने आगे ये भी कहा कि हम इसे अदालत में जोर से नहीं कहना चाहते थे, लेकिन हम मजबूर हैं।
वहीं केरल में तो लम्बे वक़्त से सरकार बनाम राज्यपाल चल रहा है। केरल सरकार ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और राज्यपाल मोहम्मद आरिफ खान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उन्होंने आरोप लगाया है कि राज्य विधानसभा से पारित चार विधेयकों को बगैर किसी कारण के मंजूरी नहीं दी जा रही है। बता दें कि इससे पहले भी राज्य सरकार ने राज्यपाल पर विधानसभा से पारित कई विधेयकों को मंजूरी नहीं देने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और अदालत ने राज्यपाल के कार्यालय को नोटिस जारी किया था। और अब सरकार ने आरोप लगाया है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्यपाल ने एक विधेयक तो पारित कर दिया था लेकिन बाकि विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया.. इनमें अब तक केवल 4 को मंज़ूरी मिली है।
राज्य और राज्यपालों के बीच का टकराव यहीं नहीं रुक रहा। पश्चिम बंगाल में भी ऐसी ही स्थिति नज़र आई। पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने भी राज्यपाल द्वारा आठ विधेयकों पर स्वीकृति न देने के खिलाफ सर्वोच्च अदालत का रुख किया है। ममता सरकार ने अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका में तर्क दिया कि राज्यपाल द्वारा बिना कोई कारण बताए विधेयकों पर स्वीकृति न देना संविधान के अनुच्छेद 200 के प्रावधानों के विपरीत है। और उन्होंने सीजेआई की बेंच के सामने मामले में सुनवाई का अनुरोध किया है, जिसपर सीजेआई ने भी विचार करने पर सहमति जताई है...
बता दें कि अनुच्छेद 200 में कहा गया है कि "जब कोई विधेयक किसी राज्य की विधान सभा से पारित कर दिया गया हो, राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों से पारित कर दिया गया हो, तो उसे राज्यपाल के सामने प्रस्तुत किया जाएगा और राज्यपाल या तो उस विधेयक पर अनुमति देगा या उस पर अनुमति रोक लेगा या वह विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखता है।"
अब अगर ताज़ा उदहारण दिल्ली का लें तो राजधानी में उप-राज्यपाल और सरकार के बीच के मतभेद तो जगज़ाहिर हैं। जबसे केंद्र सरकार ने उपराज्यपाल की शक्तियां बढ़ाई हैं.. तबसे ही दोनों पक्षों में ज़ुबानी जंग छिड़ी हुई है। हाल ही में ओल्ड राजेंद्रनगर में राउ'S आईएएस कोचिंग के बेसमेंट में जलभराव से तीन छात्रों की जान चली गई। इस घटना ने देश भर के युवाओं को उनके घरवालों को झकझोर के रख दिया। एक तरफ छात्र सडकों पर प्रदर्शन कर रहे हैं, अपनी सुरक्षा की मांग कर रहे हैं...इन छात्रों के लिए न्याय की आवाज़ उठा रहे हैं... तो दूसरी तरफ आप सरकार और उप-राज्यपाल के बीच ज़ुबानी जंग छिड़ गई। आप सरकार का आरोप है कि दिल्ली सरकार के पास ज़िम्मेदारियां तो हैं लेकिन पावर नहीं है। वहीं उप-राज्यपाल वी के सक्सेना सरकार की खामियां निकालते नज़र आए। दोनों इस घटना के लिए एक दूसरे को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं।
ये मुद्दा संसद में भी उठाया गया... यहां तक कि आप सरकार ने तो उपराज्यपाल का इस्तीफा तक मांग दिया। आप सरकार के समर्थन में शिवसेना UBT सांसद संजय राउत भी दिखे... उन्होंने भी उप-राज्यपाल को दी गई असीम शक्तियों की आलोचना करते हुए दिल्ली सरकार के अधिकारों को सीमित करना गलत बताया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो ये उठ रहा है कि ऐसे मुद्दे पर जब ध्यान बचाव कार्य पर होना चाहिए तो राज्यपाल सरकार पर आरोप मढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं।
वहीं पंजाब में ये टकराव इस्तीफे तक नज़र आया...जहां राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने मुख्यमंत्री भगवंत मान को अपने इस्तीफे का कारण बताया है तो सीएम मान ने भी सभी आरोपों को ख़ारिज कर दिया। और अब तो सुप्रीम कोर्ट के जज ने भी राज्यपाल के रवैये पर सवाल उठाए हैं।
SC की जज ने राज्यपाल की भूमिका पर जताई नाराज़गी
Supreme Court judge raised questions on the role of the Governor, said- 'Work above politics and party'!