बहुत से लोगों ने मुझसे राजनीति में आने और चुनाव लड़ने के लिए कहा है।
लेकिन भारत में चुनाव लड़ने के लिए भारी धनराशि की आवश्यकता होती है (कुछ लोग कहते हैं कि एक लोकसभा सीट के लिए 10 करोड़ रुपये से अधिक, यानी 100 मिलियन रुपये खर्च होते हैं), जो मेरे पास नहीं है।
हिंदू, जो भारत की 80% आबादी हैं, मुझे वोट नहीं देंगे क्योंकि मैंने कई बार कहा है कि बीफ ( गोमांस ) खाने में कुछ भी गलत नहीं है, और मैं खुद इसे खाता हूँ (जहां इसकी कानूनी रूप से अनुमति है, जैसे केरल और गोवा में या विदेशों में)। लगभग पूरी दुनिया बीफ खाती है। क्या वे सभी दुष्ट लोग हैं, जबकि केवल हम हिंदू ही 'साधु-संत' हैं?
मैंने यह भी कहा है कि जो लोग गाय को 'गौमाता' कहते हैं, उनके सिर में 'गोबर' भरा हुआ है, क्योंकि एक जानवर इंसान की माँ कैसे हो सकती है ? कुछ लोग कहते हैं कि गाय 'गौमाता' है क्योंकि वह हमें दूध देती है। लेकिन मनुष्य बकरी, भैंस, ऊंट, याक, हिरण आदि का दूध भी पीते हैं। क्या इन सभी जानवरों की पूजा की जानी चाहिए, और उन्हें हमारी माँ माना जाना चाहिए? मैं गाय को दूसरे जानवरों, जैसे घोड़े या कुत्ते से भिन्न नहीं मानता।
मुसलमान, जो भारत की 15% आबादी हैं, मुझे वोट नहीं देंगे क्योंकि मैंने कई बार कहा है कि शरिया, बुर्का, मदरसे और मौलाना को प्रतिबंधित कर देना चाहिए, क्योंकि ये सामंती प्रथाएँ और संस्थाएँ हैं, जिन्हें भारत के विकास के लिए दबाना आवश्यक है, जैसा महान मुस्तफा कमाल ने
इससे केवल सिख, ईसाई, पारसी, जैन आदि ही बचते हैं, और हो सकता है वे भी मुझे वोट न दें, यह जानते हुए कि मैं नास्तिक हूँ।
लेकिन अगर मैं अचानक जातिवादी या सांप्रदायिक बन जाऊँ, और जाति या धार्मिक घृणा को भड़काने लगूँ, तो मुझे बहुत सारे वोट मिल सकते हैं, क्योंकि 80-90% भारतीय जातिवादी/ सांप्रदायिक हैं, जिनके सिर में 'गोबर' भरा है, और तब शायद मैं चुनाव भी जीत सकता हूँ।
इसलिए चुनाव जीतने का एकमात्र तरीका यही है कि मैं जातिवादी या सांप्रदायिक और भ्रष्ट बन जाऊँ, यानी एक बदमाश और धूर्त इंसान, लेकिन मैं अफसोस करता हूँ कि मेरी अंतरात्मा यहाँ एक सीमा खींच देती है।
(लेखक जस्टिस काटजू भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं। ये उनके निजी विचार हैं)