संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने विश्व सुनामी जागरुकता दिवस (World Tsunami Awareness Day 5 November) पर समय पूर्व चेतावनी प्रणाली की अहमियत पर जोर दिया। यह प्रणाली सुनामी से जानमाल की हानि को रोकने में बेहद कारगर साबित हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र समाचार की इस खबर से जानिए कि सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदा सुनामी क्या है और जानिए कैसे चेतावनी प्रणाली और तटीय समुदायों में जागरूकता से जीवनरक्षा के प्रयासों को मजबूती मिलती है।
जलवायु और पर्यावरण
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने मंगलवार, 5 नवम्बर, को ‘विश्व सुनामी जागरुकता दिवस’ के अवसर पर ध्यान दिलाया है कि ज़िन्दगियों की रक्षा करने व आर्थिक नुक़सान को टालने में समय पूर्व चेतावनी प्रणाली की अहम भूमिका है. उन्होंने देशों की सरकारों और तटीय समुदायों में साझेदारों से आग्रह किया है कि चेतावनी मिलने के बाद तुरन्त सुरक्षित जगह की ओर जाने के लिए स्थानीय आबादी को जागरूक बनाया जाना भी ज़रूरी है.
महासचिव गुटेरेस ने इस दिवस पर जारी अपने सन्देश में कहा कि हिन्द महासागर में, दिसम्बर 2004 में विनाशकारी सुनामी आए लगभग 20 वर्ष हो चुके हैं. इसे हालिया इतिहास की सबसे जानलेवा आपदाओं में गिना जाता है, जिसमें सवा दो लाख से अधिक लोगों ने अपनी जान गँवाई थी.
उन्होंने ध्यान दिलाया कि विश्व भर में 70 करोड़ लोगों पर अब भी सुनामी
यह संयुक्त राष्ट्र की एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसके ज़रिये वर्ष 2027 तक, सभी व्यक्तियों को समय रहते जीवनरक्षक ऐलर्ट के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा गया है.
सुनामी से तात्पर्य उन शक्तिशाली, उफनती लहरों से हैं, जोकि अक्सर जलराशि के भीतर भूकम्प आने, ज्वालामुखी में विस्फोट या फिर भूस्खलन के बाद उत्पन्न होती हैं और बड़े इलाक़े को अपनी चपेट में ले लेती हैं.
वैसे तो सुनामी आने की घटनाएँ यदा-कदा ही होती हैं, मगर आपदा जोखिम में कमी लाने के लिए यूएन कार्यालय (UNDRR) के अनुसार, ये पृथ्वी पर सबसे जानलेवा ख़तरों में है.
पिछले 100 वर्षों में, 58 बार सुनामी आने की घटनाएँ हुई हैं, जिनमें दो लाख 60 हज़ार से अधिक लोगों की जान गई है. साथ ही, 280 अरब डॉलर की आर्थिक हानि भी हुई है.
अन्तर-सरकारी महासागर विज्ञान आयोग (IOC) के अनुसार, सुनामी लहरें उठने के बाद मिनटों के भीतर लम्बी दूरी तय करके तटों पर पहुँच सकती हैं और उनकी रफ़्तार 800 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है.
समय पूर्व चेतावनी प्रणालियों के ज़रिये, विश्व भर में आपदाओं में मृतक संख्या और आर्थिक नुक़सान में कमी लाने में मदद मिली है.
महासचिव ने समय पूर्व चेतावनी प्रणाली को वर्ष 2022 में पेश करते हुए कहा था कि मानव-जनित जलवायु परिवर्तन से चरम मौसम व जलवायु परिस्थितियाँ बढ़ रही हैं. इस पृष्ठभूमि में, समय पूर्व चेतावनी व्यवस्था कोई विलास उपाय नहीं है बल्कि ज़िन्दगियाँ बचाने के लिए एक किफ़ायती ज़रिया है.
आपदा का पूर्वानुमान लगाने और उसकी निगरानी के लिए टैक्नॉलॉजी में प्रगति हुई है, लेकिन अब भी चुनौतियाँ बरक़रार हैं. संयुक्त राष्ट्र का आकलन दर्शाता है कि फ़िलहाल केवल 50 फ़ीसदी देशों में ही पर्याप्त स्तर पर बहु-जोखिमों के प्रति सचेत करने वाली व्यवस्था है.
विकासशील देशों में हालात ज़्यादा ख़राब हैं, जहाँ जलवायु-सम्बन्धी आपदाओं की वजह से, दुनिया के अन्य हिस्सों की तुलना में 15 गुना अधिक मौतें होती हैं.
सामुदायिक क्षमता का निर्माण
26 दिसम्बर 2004 को हिन्द महासागर में सुनामी लहरों से इंडोनेशिया, थाईलैंड, भारत, श्रीलंका समेत अन्य देशों में भीषण तबाही हुई थी, जिसके बाद आपदाओं से निपटने की तैयारियों के लिए वैश्विक सहयोग को मज़बूती मिली.
इससे एक ऐसी चेतावनी व्यवस्था की नींव तैयार की गई, जोकि अब 27 देशों के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय है.
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि चेतावनी व्यवस्था तभी कारगर साबित होती हैं जब समुदायों को यह पता हो कि ऐलर्ट मिलने के बाद क्या क़दम उठाने हैं.
इस क्रम में, महासचिव गुटेरेस ने ज़िन्दगियाँ बचाने के लिए शिक्षा की अहमियत को रेखांकित किया है, जिसमें बच्चों और युवजन को साथ लेकर चलना ज़रूरी होगा.
उन्होंने देशों की सरकारों और तटीय समुदायों में साझेदारों से आग्रह किया है कि चेतावनी मिलने के बाद तुरन्त सुरक्षित जगह की ओर जाने के लिए स्थानीय आबादी को जागरूक बनाया जाना होगा.