अच्छे दिन : दुनिया के 15 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में, चौकीदार काम पर है
hastakshep
Created Date:April 08, 2019, 06:30 PM
वायु प्रदूषण के मामले में 14 टॉप शहरों की एक पड़ताल
भारत में लोकसभा चुनाव2019(Lok Sabha Elections 2019) की सरगर्मियां धीरे—धीरे बढ़ रही हैं। भारत के आम चुनाव अपने आप में दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक कवायद हैं। हम एक और ऐतिहासिक चुनाव के साक्षी बनने जा रहे हैं। इसी बीच, देश में पहले से ही प्रदूषण(Pollution) की मार सहन कर रहे पर्यावरण की हालत और भी खराब हो गयी है और भारत के कई शहरों में लोग अब भी दुनिया की सबसे प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं।
इसमें कोई शक नहीं है कि वर्तमान में वायु प्रदूषण(air pollution) एक बहुत बड़ा खतरा बन गया है। अब हम इसे ज्यादा वक्त तक नजरअंदाज नहीं कर सकते। इससे निपटने के लिये आज ही कदम उठाने की सख्त जरूरत है। देश की 99 प्रतिशत से ज्यादा आबादी ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन तो दूर, भारतीय मानकों तक के हिसाब से बदतर हो चुकी है। दुनिया के 15 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में ही हैं।
जाहिर है, हम स्वास्थ्य से जुड़ी आपदा की तरफ बढ़ रहे हैं।
इसके मद्देनजर, नयी दिल्ली स्थित क्लाइमेट ट्रेंड्स(Climate trends) एक रिपोर्ट /तथ्यपरक दस्तावेज जारी कर रहा है जो 16वीं लोकसभा के कार्यकाल के दौरान सांसदों द्वारा वायु प्रदूषण से निपटने के लिये उठाये गये विभिन्न कदमों की पड़ताल पर आधारित है। इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा घोषित सबसे प्रदूषित 14 शहरों के जनप्रतिनिधियों की गतिविधियां शामिल है।
क्लाइमेट ट्रेंड्स की रिपोर्ट के मुख्य अंश
यह रिपोर्ट विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2018 में दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में
शामिल 14 भारतीय नगरों में राजनीतिक नेतृत्व, नागरिकों के नजरियों और हितधारकों के उठाये गये कदमों का विश्लेषण पेश करती है।
कानपुर (पहला स्थान) : कल का मैनचेस्टर, आज का सबसे प्रदूषित
Kanpur (1st place): Yesterday's Manchester, the most polluted today
जहां राज्य सरकार और कानपुर प्रशासन ने वायु प्रदूषण की समस्या को हाल में गम्भीरता से लेते हुए उससे निपटने के लिये कुछ कदम उठाये हैं, वहीं क्षेत्रीय सांसद इस मसले पर खामोश ही रहे और संसद तथा अपने निर्वाचन क्षेत्र में इस विषय पर कोई कदम नहीं उठाया।
कानपुर में वायु प्रदूषण का स्तर सुरक्षित मानकों से तीन-चार गुना ज्यादा है। इसके सीधे दुष्प्रभाव से गुजर रहे स्थानीय नागरिक और हितधारक वायु प्रदूषण के कारण सेहत पर पड़ने वाले बुरे असर पर चिंता जाहिर करते हुए आवाज उठा रहे हैं।
फरीदाबाद (दूसरा स्थान) : एनसीआर में सर्वश्रेष्ठ लेकिन जीवन की गुणवत्ता के मामले में सबसे खराब
Faridabad (2nd place): Best in NCR but worst in terms of quality of life
इस औद्योगिक शहर में खतरे की घंटी तो अर्से से बज रही है। यहां हर तरह के प्रदूषणकारी स्रोत मौजूद हैं, जिनसे सर्दियों और गर्मियों दोनों में ही प्रदूषण का स्तर काफी ऊंचा रहता है। हालांकि राज्य सरकार का नजरिया इससे अलग है।
हालांकि राज्य सरकार दिल्ली पर आरोप मढ़ती है और वह प्रदूषण के मसले पर पल्ला झाड़ लेती है। साथ ही वह जनभावनाओं के विपरीत अरावली को खनन तथा ढांचागत विकास के लिये खोलना चाहती है। मगर राज्य सरकार और सांसद ने हवा की खराब होती गुणवत्ता की समस्या से निपटने में मदद के लिये परिवहन ढांचे के सिलसिले में काम किया है।
वाराणसी (तीसरा स्थान) : कालजयी शहर बना दमघोंटू
वाराणसी की हवा उत्तर प्रदेश के किसी अन्य शहर की हवा से कहीं ज्यादा तेजी से खराब हो रही है। शहर में हो रहा निर्माण कार्य इसका मुख्य कारण है। डॉक्टरों तथा स्थानीय नागरिकों ने इस बात की पुष्टि की है कि पिछले कुछ वर्षों में यहां एलर्जी और सांस संबंधी बीमारियों के मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है। इसके अलावा वाराणसी में एक भी दिन ऐसा नहीं गुजर रहा है जब हवा की गुणवत्ता अच्छी हो।
हालांकि राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन ने बनारस की हवा की गुणवत्ता ठीक करने के लिए कुछ कदम उठाए हैं मगर स्थानीय सांसद ने इस प्राचीन शहर के सौंदर्यीकरण और इसके मूलभूत ढांचे के विकास पर ही जोर दिया और शहर तथा क्षेत्रीय स्तर पर हवा को खराब करने वाले प्रमुख कारणों का पूरी तरह से समाधान नहीं किया।
गया (चौथा स्थान) : शहर को अपने बाशिंदों के लिए स्मार्ट बनाने की जरूरत
Gaya (fourth place): The city needs to make smart for its inhabitants
वायु प्रदूषण से निपटने के लिए मुख्य रूप से फाल्गु नदी से निकलने वाले बालू पर ध्यान दिया जाता है लेकिन प्रदूषण का असली दोषी तो कहीं और है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड प्रदूषण के स्रोतों को लेकर अपना अध्ययन करता है मगर इस समस्या के कारण होने वाली असमय मौतों के मुख्य कारणों पर उसकी कार्रवाई काफी धीमी है, लिहाजा अनुसंधान और सिविल सोसायटी संगठनों ने अपने द्वारा किए गए तथा अन्वेषण की रिपोर्ट राज्य सरकार को पेश की है।
गया के सांसद का डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट पर दिया गया बयान यह जाहिर करता है कि इस मुद्दे पर उनकी गम्भीरता का स्तर क्या है। राज्य सरकार ने प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के आधार पर डब्ल्यूएचओ की रैंकिंग को नकार दिया है, लेकिन सच्चाई यह है कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े नाकाफी निगरानी पर आधारित है। हालांकि यह सुखद बात है कि प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने प्रदूषण के सेहत पर पड़ने वाले असर को समझना शुरू कर दिया है।
पटना (पांचवा स्थान) : सर्वाधिक प्रदूषित, बिहार में सबसे कम रहने योग्य शहर
वाहनों से निकलने वाला धुआं और ईट भट्ठों से होने वाला उत्सर्जन काफी बढ़ गया है और राज्य सरकार ने इसे देखते हुए मसले के हल के लिए निर्देश जारी करना शुरू किया है।
पटना साहब से सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र के बजाय दिल्ली की 'स्मॉग पॉलिटिक्स' में ज्यादा सक्रिय नजर आए।
दिल्ली (छठा स्थान) : ऐतिहासिक शहर, सांस लेना दूभर
दिल्ली की 70% आबादी बाहर के लोगों की है। यह शहर भूलने की आदत के साथ बिना रुके बिना थके काम करता है। इस दौरान वह साफ हवा में सांस लेने के अधिकार को भी भूल चुका है। इस मुद्दे पर सरकार की कार्यवाही की प्रभावहीनता हाल के वर्षों में स्थानीय नागरिकों द्वारा इस मुद्दे को लेकर अदालतों की परिक्रमा और सड़कों पर प्रदर्शन के तौर पर जाहिर हुई है।
सात सांसदों और 70 विधायकों वाले इस शहर की सरकार का संस्थागत तंत्र वायु प्रदूषण के मुद्दे पर कितना सक्रिय है इस बात का पता उपलब्ध सबूतों से चल जाता है। यह शहर फौरी राहत मिलने के बजाय निर्वाचित प्रतिनिधियों और उनकी एजेंसियों की आपराधिक लापरवाही और काहिली का शिकार है। प्रदूषण की अति गंभीर समस्या से दो-चार होने के बावजूद यहां मौखिक, सीमित और अल्पकालीन प्रभाव वाले समाधानों को लागू किया जा रहा है।
लखनऊ (सातवां स्थान) : नवाबों के शहर से मुस्कराहट छीन ली प्रदूषण ने
एक वैश्विक अध्ययन में यह पाया गया है कि वायु प्रदूषण के कारण होने वाली असमय मौतों के मामले में उत्तर मपाप्रदेश भारत में दूसरे स्थान पर है। सरकार के पास प्रदूषणकारी तत्वों और उनके कारण होने वाली बीमारियों के बीच संबंधों से जुड़े ठोस आंकड़े न होने की वजह से नवाबों का शहर लखनऊ अपने लिए वह काम नहीं कर पा रहा है जो उसे साफ हवा वाले शहर के रूप में फिर से स्थापित कर सके। प्रदेश के बाकी अत्यंत प्रदूषित शहरों का भी यही हाल है। राज्य सरकार ने प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल पर जोर देने के सिवा और कोई खास कदम नहीं उठाया है।
इस मुद्दे पर लखनऊ के सांसद जहां खामोश रहे, वहीं केंद्र सरकार ने वायु प्रदूषण के कारण होने वाली असमय मौतों से संबंधित वैश्विक रिपोर्ट को ही नकार दिया। हालांकि लखनऊ के डॉक्टरों ने खुद आगे आकर रचनात्मक कार्यों तथा सूचनाओं के आदान-प्रदान के जरिए वायु प्रदूषण के खिलाफ अभियान में लोगों को जोड़ने का काम शुरू किया है।
आगरा (आठवां स्थान) : प्रदूषण का पुराना इतिहास
करीब 23 साल पहले ताजमहल की सुरक्षा के मद्देनजर उसके आसपास की प्रदूषणकारी औद्योगिक इकाइयों को हटाने के बावजूद आगरा भारत के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में बना हुआ है। ऐसा इसलिए है क्योंकि पार्टिकुलेट मैटर और अन्य प्रदूषण कारी गैसों के स्रोतों में इजाफा हुआ है।
आगरा शहर तथा राज्य प्रशासन जहां शहर में नगर में प्रदूषण कारी तत्व औद्योगिक इकाइयों और कूड़ा जलाने की गतिविधियों पर सख्त कार्रवाई करते रहे वहीं यहां के सांसद मुख्यतः प्रदूषण के मामले को संसद में ही उठाते रहे।
मुजफ्फरपुर (नौवां स्थान) : प्रदूषण के जंजाल में फंसी लीची की धरती
कृषि उत्पादों में कीटनाशकों के असर के साथ साथ वायु प्रदूषण मुजफ्फरपुर के बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य के लिए खतरा बनता जा रहा है। निर्माण कार्य और इंधन जलने से निकलने वाले प्रदूषण कारी तत्व तथा हवा के साथ दूसरे राज्यों से आने वाला प्रदूषण इसके प्रमुख कारण है।
स्थानीय प्रशासन में पर्याप्त क्षमता निर्माण के बगैर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा स्वच्छ हवा के लिए बनाई गई कार्य योजना के परिणाम बहुत सीमित होंगे। राज्य में ईट भट्ठा मालिकों और इलेक्ट्रिक वाहनों के कारोबारियों की बहुतायत है। मुजफ्फरपुर के सांसद स्थानीय स्तर पर प्रदूषण की समस्या का समाधान देते नजर नहीं आए। हालांकि उन्होंने वायु प्रदूषण के कारण शहर की ऐतिहासिक इमारतों पर पड़ने वाले असर से संबंधित सवाल संसद में जरूर उठाए।
श्रीनगर (10वां स्थान) :दुनिया का दसवां सबसे प्रदूषित शहर
श्रीनगर के लोगों ने बेतरतीब और प्रबंधन रहित नगरीयकरण (कचरा और प्रदूषण) के दुष्प्रभावों को समझना शुरू कर दिया है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए जाने के बावजूद श्रीनगर का डब्ल्यूएचओ की रैंकिंग में नाम आना अनेक लोगों के लिए चौकाने का विषय रहा। स्थानीय स्तर पर विशेषज्ञों ने वायु प्रदूषण के मुद्दे को मान्यता देना शुरू कर दिया है। शासन तंत्र प्रदूषण तथा सेहत पर पड़ने वाले उसके प्रभाव को कम करने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाया है ।
राज्य सरकार और निर्वाचित सांसद अभी तक प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की जरूरत का जिक्र करते रहे हैं। हालांकि उन्होंने शहर में वायु प्रदूषण के मुख्य कारणों , जैसे कि घरों में कोयले और लकड़ी को जलाने जैसे प्रमुख कारणों के समाधान के लिए स्थानीय विशेषज्ञों को नहीं जोड़ा है।
गुरुग्राम (11वां स्थान) :शहर जो अभी बन सकता है कोपनहेगन
ऊंची आय वाले इस शहर में जिंदगी आसान नहीं है और यहां अनेक मुद्दों का समाधान किया जाना बाकी है। गुरुग्राम की हवा की गुणवत्ता खराब होने के बावजूद इसे भारत सरकार के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम एनसीएपी में शामिल नहीं किया गया है और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पिछले कई सालों से इस शहर में वायु प्रदूषण के स्तर की निगरानी नहीं की है। शहर में वायु प्रदूषण के स्तरों पर चौबीसों घंटे नजर रखने के लिए निगरानी केंद्र की स्थापना भी पिछले साल ही हुई है।
हालांकि गुरुग्राम में रहने वाले बच्चों में प्रदूषण कारी तत्व का स्तर काफी ऊंचा पाया गया है लेकिन यहां राज्य सरकार की नीति और क्षेत्रीय सांसद की गतिविधियां केवल सड़क निर्माण और मेट्रो रेल परियोजना पर ही केंद्रित रहीं।
जयपुर (12 वां स्थान) :सेहत भी गुलाबी करने की ख्वाहिश
गुलाबी शहर जयपुर में वाहनों की भारी तादाद, बड़ी संख्या में निर्माण कार्य और भारी मात्रा में कूड़ा जलाए जाने की वजह से प्रदूषण के स्तर में सुरक्षित मानकों के मुकाबले 3 गुना बढ़ोतरी पाई गई है। इसकी वजह से बच्चों में सांस संबंधी बीमारियों तथा अन्य रोगों के मामले काफी बढ़ गए हैं ।
हालांकि राज्य सरकार और क्षेत्रीय सांसद ने वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए सौर ऊर्जा पर ही सबसे ज्यादा ध्यान दिया है। वहीं वाहनों से निकलने वाले धुएं के रूप में तात्कालिक समस्या के समाधान के लिए शहर के नागरिकों और उद्यमियों ने कुछ पहल शुरू की हैं।
पटियाला (13वां स्थान) : एक अवाक शहर
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड प्रदूषण की स्रोतों की पहचान करता है। हालांकि वह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पटियाला को सबसे प्रदूषित शहरों की श्रेणी में शामिल किए जाने को लेकर अवाक है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा वायु की गुणवत्ता की लगातार निगरानी से मिलने वाली जानकारी इस बात की ओर इशारा करती हैं कि इस शहर में वाहनों से निकलने वाले धुए, पराली जलाये जाने तथा कारखानों से निकलने वाले प्रदूषणकारी तत्व शहर की हवा को खराब कर रहे हैं।
जहां पटियाला के सांसद अपने कार्यकाल में ज्यादातर वक्त तक प्रदूषण के मुद्दे पर कुछ नहीं बोले, वहीं राज्य सरकार, केंद्र तथा दिल्ली सरकारों से पराली जलाए जाने की समस्या से निपटने के लिए जरूरी मशीनरी हासिल करने में लगी रही।
जोधपुर (14वां स्थान) :मुसीबत के ढेर पर इत्मीनान से बैठा शहर
अक्सर बालू के तूफान से दो-चार रहने वाले इस शहर में प्रदूषण के अतिरिक्त स्रोत भी प्रमुख कारक बनकर उभरे हैं। हालांकि शहर में वायु की गुणवत्ता पर निगरानी रखने वाले तंत्र की अपर्याप्तता की वजह से राज्य सरकार द्वारा इस मुद्दे को तरजीही दर्जा नहीं मिल सका।