भोपाल, 19 जुलाई 2020. (राहुल भाईजी). भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की मध्यप्रदेश इकाई द्वारा "भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के राष्ट्रीयकरण" विषय पर एक वेबिनार (A webinar on the topic "Nationalization of Health Services in India") का आयोजन किया गया। वेबिनार का संयोजन जोशी अधिकारी इंस्टीट्यूट आफ सोशल स्टडीज द्वारा किया गया।
वेबिनार में डॉ अभय शुक्ला (पुणे) राष्ट्रीय सहसंयोजक, जन स्वास्थ्य अभियान, ने अपनी बात रखते हुए कहा कि वर्ष 1986-87 में भारत की सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं निजी क्षेत्र की तुलना में ज्यादा थीं, और 1000 मरीज में 400 मरीज ही निजी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ लेते थे। तब से 2020 तक स्थितियां बिल्कुल विपरीत हो गई हैं। अब बमुश्किल 40 फ़ीसदी लोग सार्वजानिक स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाते हैं और शेष 60 फ़ीसदी को निजी क्षेत्र के अस्पतालों की शरण लेना पड़ती है।
उन्होंने कहा कि भारत में प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर शासन द्वारा खर्च 19 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष किया जाता है जो फिलीपींस, इंडोनेशिया और अफ्रीका जैसे देशों की तुलना में 3 से 4 गुना कम है, वहीं दूसरी ओर समाजवादी देश क्यूबा प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 883 अमेरिकी डॉलर का खर्च अपने नागरिकों के स्वास्थ्य पर करके सबसे ऊंचे स्तर पर है। वर्ष 2019-20 में भारत में रूपये 1765 प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर औसतन खर्च किया जा रहा था, यानि मात्र रूपये 3.50 प्रति व्यक्ति प्रतिदिन का खर्च। उन्होंने कहा कि सरकार ने जैसे-जैसे सरकारी स्वास्थ्य खर्चों में कटौती करने के साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण को नीतिगत बढ़ावा दिया।
उन्होंने कहा कि देश के कुछ राज्य तो सिर्फ निजी स्वास्थ्य
उन्होंने कहा कि निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को दवा, उपकरण और स्वास्थ्य बीमा के माध्यम से देशवासियों को दोनों हाथों से लूटने की आजादी दे दी गई। हाल ही के कोविड महामारी के रोगियों से बड़ी निजी अस्पतालों द्वारा प्रतिदिन का रुपये 1 लाख से 4-5 लाख तक का खर्च वसूला जा रहा है। देश के लगभग सभी प्रदेशों में जिला और विकासखंड स्तर पर मौजूद अस्पताल संसाधन विहीन हैं, पर्याप्त स्टाफ, डॉक्टर्स नहीं हैं, जिससे कोरोना से मरने वालों की संख्या बढ़ रही है। सरकार को निजी क्षेत्रों के अस्पतालों में इलाज की कीमतों पर नियंत्रण के लिए सही तरीका इस्तेमाल करना चाहिए ताकि सभी को जीने के अधिकार से वंचित न किया जा सके। साथ ही सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को सुविधा युक्त बनाने प्रति व्यक्ति का खर्च बढ़ाने चाहिए तो कोरोना महामारी से लड़ा जाना संभव होगा। ताकि उनकी रोजमर्रा की आम स्वास्थ्य से जुड़ी जरूरत पूरी हो सके। इसे मैं राष्ट्रीयकरण नहीं बल्कि सामाजिकीकरण कहना चाहूँगा।
इंडियन डॉक्टर फॉर पीस एंड डेमोक्रेसी- Indian Doctor for Peace and Democracy (आइडीपीडी) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉक्टर अरुण मित्रा (लुधियाना) ने कहा कि स्वास्थ्य और शिक्षा हमारा संवैधानिक अधिकार है जिसे देश प्रत्येक देशवासी को सहजता से उपलब्ध होना चाहिए। देश की सरकार ने आवश्यक स्वास्थ्य सुविधाएं, जन स्वास्थ्य विभाग बनाने के बजाय मुनाफा कमाने वाली कंपनियों को खुली छूट दे रही हैं। सरकार को देश में विकेन्द्रित स्वास्थ्य सेवाएँ सहज रूप से उपलब्ध कराना चाहिए एवं साथ ही निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं का राष्ट्रीयकरण बेहद आवश्यक हो गया है। जैसा कि बैंकों का राष्ट्रीयकरण (Nationalization of banks) किया गया था जो आज भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए जीवनदायिनी बनकर उभरे हैं, उतना ही महत्वपूर्ण देश के नागरिकों का स्वास्थ्य है। समय की आवश्यकता है कि सभी निजी स्वास्थ्य सेवाओं का राष्ट्रीयकरण हो।
उन्होंने बताया कि किस तरह उनके संगठन द्वारा राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं का मुआयना करते हुए पाया गया कि सरकारी नीतियों की खामी के चलते निजी अस्पतालों में एक बहुत बड़े तबके के इलाज ना कर पाने से उन्हें मौत का सामना करना पड़ता है। देश के राजनीतिक दलों द्वारा स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर कोई ध्यान ना देने से देश की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई है।
वेबीनार को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा आयोजित किये जाने पर उन्होंने खुशी जाहिर की और कहा कि यह बहुत अच्छी बात है कि किसी राजनीतिक दल ने स्वाथ्य सेवाओं को राजनीतिक मुद्दे की तरह देखा है। स्वास्थ्य सेवाएँ कैसी हों, यह एक राजनीतिक सवाल है और जैसी राजनीती देश पर शासन करेगी, वैसा ही हाल स्वास्थ्य सेवाओं का होगा। उन्होंने यह भी कहा कि स्वास्थ्य का सवाल केवल अस्पतालों और डॉक्टरों से जुड़ा हुआ नहीं है. इसमें बड़ी भूमिका दवा कंपनियों की भी है। आपको हैरत होगी कि उदारीकरण के दौर में सरकारी क्षेत्र की दवा निर्माण करने वाली कम्पनियाँ बंद कर दी गईं। स्वास्थ्य का सवाल बुनियादी रूप से साफ़ पानी मुहैया करने, उचित सीवेरज व्यवस्था उपलब्ध कराने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने से जुड़ा है। हमें समाज ऐसा बनाना चाहिए जहाँ लोग ावाल तो बीमार पड़ें ही नहीं और अगर किसी वजह से कोई बीमार पड़े तो उसे ये फ़िक्र न हो कि पैसे कहाँ से आएंगे या डॉक्टर सही इलाज कर रहा है या लूट रहा है। इसके लिए हम सरकार से आइडीपीडी की ओर से राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग बनाने की मांग करते आ रहे हैं।
वेबिनार में अपना वक्तव्य रखते हुए उन्होंने कहा कि आज देश की जो स्थिति है उसके पीछे एक वजह राजनीतिक दलों की राजनीतिक इच्छाशक्ति का बेहद कमजोर होना भी है। कोविड महामारी में देश की गरीब जनता, मेहनत करने वाले श्रमिक केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा उपेक्षित हुए हैं। प्रवासी मजदूरों को हजारों किलोमीटर पैदल चलना पड़ा, परंतु रास्ते में स्वास्थ्य केंद्रों के अभाव के चलते कईयों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जिनमें महिलाओं की दुर्गति किसी से छिपी नहीं है। नीति निर्माताओं ने ऐसे हालात में निजी स्वास्थ्य सेवाओं की कोई जवाबदारी तय नहीं की। देश की बहुमत आबादी को सरकार द्वारा प्रदत्त स्वास्थ्य सेवाओं का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। कोरोना से बचाव कराने वाले स्वास्थ्य कर्मी, स्वयं की सुरक्षा सामग्री के अभाव में काम करने को मजबूर किए गए। सफाईकर्मियों को जान जोखिम में डालकर काम करने को मजबूर किया गया, स्वास्थ्य कर्मियों को समय पर उनकी तनख्वाह नहीं मिल पाई जिसके चलते कोरोना मरीज उपेक्षा का शिकार होते रहे, परंतु सरकार उनकी समस्याओं की अनदेखी करती रही है।
वे कहती हैं कि देश में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भयावह है। जिसे एक चेतनशील राजनीति समाधान से बेहतर किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोविड-19 को अपने व्यापारिक उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करने में बिल गेट्स और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, जो दुनिया में वैक्सीन के क्षेत्र में काम करने वाला सबसे बड़ा कॉर्पोरेट है, कोविड की वैक्सीन बनाकर मुनाफे की होड़ में हैं। स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का राष्ट्रीयकरण किये बिना, या जिसे सामाजिकीकरण भी कहा जा सकता है, इन सेवाओं को उन्नत नहीं किया जा सकता लेकिन साथ ही राजनीतिक हल की भी बेहद आवश्यकता है।
कार्यक्रम के संयोजक विनीत तिवारी ने कहा कि बेशक स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सवाल राजनीतिक सवाल हैं इसीलिए हम देख सकते हैं कि जहाँ भी सरकारें जनता के लिए फिक्रमंद हैं, वहाँ कोविड 19 का कहर कम टूटा है। क्यूबा और वेनेज़ुएला जैसे देशों की स्वास्थ्य सुविधाएँ दुनिया में श्रेष्ठ मानी जाती हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि बिल गेट्स और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जब अपने बनाये वैक्सीन का प्रयोग करेगी तब भी गरीब एशियाई और अफ़्रीकी देशों की जनता को ही उनके कहर का शिकार होना पड़ेगा।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत और अमेरिका में एक स्वास्थ्य सम्बन्धी आपदा का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक स्थित्ति को मजबूत करने और आपदा का डर दिखाकर लोगों से विरोध और प्रतिरोध के सभी तरीकों को छीनने में किया जा रहा है।
सभी वक्ताओं का आभार मानते हुए कहा कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी शिक्षा एवं स्वास्थ्य के सवालों पर सही मायनों में एक ऐसा राजनीतिक दल है जो शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के खिलाफ शुरू से ही रहा है और अपना विरोध दर्ज कराया है। यही वजह है कि आज इस वेबिनार का आयोजन किया गया।
मप्र इकाई के पार्टी राज्य सचिव कामरेड अरविंद श्रीवास्तव ने स्वास्थ्य सेवाओं का संज्ञान लेते हुए वक्ताओं के प्रभावशाली वक्तव्य और प्रस्तुति के लिए धन्यवाद दिया और कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं के राष्ट्रीयकरण के मसले पर प्रदेश के अन्य संगठनों से बात करने के बाद आंदोलनात्मक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे और स्वास्थ्यकर्मियों को संगठित करके प्रदेश ही नही बल्कि देश की जनता के सामने इस लड़ाई को मजबूत करने का आव्हान किया जाएगा।
वेबिनार हिंदी में था अतः मध्य प्रदेश के साथ ही दिल्ली, गुजरात, बंगाल, पंजाब एवं अन्य हिंदीभाषी राज्यों के उत्सुक और रुचिवान लोग शरीक हुए और सवाल जवाब का दौर भी हुआ।