तुम दरिद्र हो,
भूखे हो,
क्यूं रोते हो ?
भाग्य की विडंबना है,
तर्क आगे माना है ।
कारण शोध,
राष्ट्रद्रोह है,
घोर विद्रोह है,
तुम्हारी ये हिम्मत कैसे?,
तुम्हारी ये ज़ुर्रत कैसे?
ज़्यादा बोलोगे,
कुछ लिख दूँगा,
राष्ट्रद्रोही लिख दूंगा,
देशद्रोही लिख दूँगा ।
सूद लिख दूँगा,
म्लेच्छ लिख दूँगा
नक्सल लिख दूँगा,
भुक्खड़ लिख दूँगा।
क्योंकि यह मैं ही हूँ,
जिसे जो चाहे संज्ञा,
जिसकी जैसी चाहे,
व्याख्या करता हूं।
जानते नहीं हो?
मैं सदियों से,
गल्प ही गल्प,
रचता हूँ ।
शब्द भी मेरा है,
और अर्थ भी मेरा है,
यहाँ क्या तेरा है ?
सदियों से शब्दकोष,
मैंने गढ़ा है ।
भाग्य की बिडम्बना है,
तर्क आगे मना है।
पिछले जन्म में,
मैंने तस्करी की थी,
करोड़ों कमाया था,
पूंजी बनाया था।
पिछले जन्म के,
घोर विलासों से,
जो चुका नहीं,
उसे भोगना है
भाग्य की विडंबना है
तर्क आगे मना है।
तुम तो पिछले जन्म में,
दरिद्र थे,
भूखे थे,
नंगे थे,
फटेहाल,
गंदे थे ।
ईश्वर को,
कभी याद करते थे ?
नहीं न,
उसी के फल से,
आज सामना है ।
भाग्य की विडंबना है,
तर्क आगे मना है।
तपेन्द्र प्रसाद