राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दोहरा चरित्र

50 years of emergency and the double character of RSS

आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के असली चरित्र को उजागर करता एक दस्तावेजी विश्लेषण। डॉ. सुरेश खैरनार का व्यक्तिगत अनुभव और ऐतिहासिक साक्ष्य।

हालांकि मैंने आपातकाल पर 24 जून को ही लेख लिखा है, जो अंग्रेजी में काउन्टर करंट और हिंदी हस्तक्षेप में देख सकते हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी राजनीतिक इकाई भाजपा जिस तरह से छाती पीट- पीटकर स्यापा कर रहे हैं, उसे देख कर मैं अपना व्यक्तिगत अनुभव बताने के लिए मजबूर हूआ हूँ.

मैंने अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद 1973 में राष्ट्र सेवा दल का पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में विदर्भ में सक्रिय रूप से काम करने की शुरुआत की थी. उसी दौरान एस. एम. जोशीजी ने कहा कि "जयप्रकाश नारायण बिहार आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शामिल होने को लेकर काफी चिंतित हैं. इस के 50लिए उन्होंने राष्ट्र सेवा दल का काम बिहार में होना चाहिए, ऐसा मुझे कहा है और इसलिए तुम्हें और जो कार्यकर्ता हिंदी बोल सकता है, ऐसे कार्यकर्ताओं को जाना है." लेकिन सेवा दल के महाराष्ट्र के संगठनात्मक कार्यों की वजह से एस. एम. जोशी जी के कहने पर तुरंत नहीं जा सके. अंत में जून के 25 तारीख को मैं अमरावती से पटना जाने के लिए निकला. जो मेरी ट्रेन जबलपुर स्टेशन पर 26 जून की सुबह पहुंची, तो लोगों को आपस में फुसफुसाई आवाज में बात करते हुए सूना कि इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की है. और जयप्रकाश नारायण से लेकर सभी विरोधियों को गिरफ्तार कर लिया है. यह सुन कर मैंने जबलपुर स्टेशन पर ट्रेन से अपना सामान उतार लिया. और तुरंत ही भूमिगत होकर आपातकाल के खिलाफ काम में लग गया, जो 1976 के अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में गिरफ्तार होने के पहले तक कर रहा था. उसके बाद जेल में जाने के बाद मैनें देखा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग, जो पहले से ही जेल में बंद थे, वह छपे हुए माफीनामों पर हस्ताक्षर किए जा रहे थे. तो मैंने पूछा यह क्यों कर रहे हो ? तो उन्होंने कहा कि "इंदिरा गांधी आपातकाल कभी भी नहीं हटाएंगी और हम लोग जेल में सड़ना नहीं चाहते, इसलिए एक स्ट्रेटेजी के तहत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख बालासाहब देवरस ने पूना के येरवडा जेल से श्रीमती इंदिरा गांधी को दो बार खत लिखे हैं. जिसमें उन्होंने लिखा है, कि हमारा जयप्रकाश आंदोलन से कोई संबंध नहीं है. और आपके 20 सूत्रीय कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए सभी स्वयं सेवकों को रिहा कर दिया जाए. इसलिए हम लोग यह फॉर्म भरने के बाद अपने हस्ताक्षर कर रहे हैं."

मैंने कहा कि श्रीमती इंदिरा गांधी इन माफीनामों को अपने पास रख लेंगीं और आप लोगो को रिहा भी नहीं करेंगी. तो आप लोगों की विश्वसनीयता जो भी कुछ बची खुची है, वह भी नष्ट हो जाएगी.

तो उन्होंने कहा कि "हमारे सर्वोच्च नेता ने आदेश दिया है, तो हम लोग उसका पालन अवश्य करेंगे, यही हमारे संगठन का अनुशासन होता है. और हम लोग उसका पालन करते हैं."

इन छपे हुए माफीनामों के पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर्वोच्च नेतृत्व ने जेल से छुटकारा पाने के लिए, कितना पत्राचार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तथा आचार्य विनोबा भावे के साथ किया है. यह मैं सिलसिलेवार आगे दे रहा हूँ. बाला साहब देवरस तथा पुणे के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता एवं एडवोकेट वी. एन. भिड़े ने येरवडा जेल से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शंकरराव चव्हाण को पहला पत्र आपातकाल की घोषणा के एक महीने में ही, इस सिलसिले में 15 जुलाई 1975 मे ही लिखा था. और उसके बाद भी उन्होंने शंकरराव चव्हाण को और भी दो बार पत्र लिखे हैं. उसके बाद देवरस ने 22 अगस्त 1975 को पहला पत्र इंदिरा गांधी को लिखा. उसके बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्य संघटक ने शंकरराव चव्हाण को 24 नवंबर 1975 को लिखा. बालासाहब देवरस ने भी शंकरराव चव्हाण को 22 दिसंबर 1975 को लिखा. उसके बाद एडवोकेट भिड़े ने शंकरराव चव्हाण को 24 जनवरी 1976 को और 12 जुली 1976 को दो पत्र लिखे. 16 जुलाई 1976 को बालासाहब देवरस ने इंदिरा गांधी को दूसरे पत्र को लिखा.

इंदिरा गांधी ने बालासाहब देवरस के किसी भी पत्र का जवाब देना तो दूर एक्नॉलेज तक नहीं किया. यह देखकर हताश होकर उन्होंने आचार्य विनोबा भावे को इस में हस्तक्षेप करने के लिए दो पत्र लिखे. छह महीने में कुल मिलाकर दस पत्र लिखे.

सबसे हैरानी की बात बाला साहब देवरस ने इंदिरा गांधी को लिखे 10 नवंबर 1975 के पत्र में उन्हें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 12 जून 1975 के दिन राजनारायण की चुनाव याचिका के संदर्भ में दिए गए फैसले को लेकर श्रीमती इंदिरा ने सर्वोच्च न्यायालय के दरवाजे पर दस्तक देने के बाद (आपातकाल की घोषणा के प्रमुख कारणों मे से एक यह फैसला है. ) सर्वोच्च न्यायालय की पांच जजों की बेंच के फैसले पर उनका हार्दिक अभिनंदन किया है. मैं उसका मूल अंग्रेजी मजमून ही दे रहा हूँ - "Let me congratulate you as five judges of the Supreme Court have declared the validity of your election. The thinking process of the RSS is mainly based on Hindu spiritualism. The name of RSS has been linked with the movement of Jayaprakash Narayan. The name of RSS has been linked with the Bihar and the Gujarat movements again and again and without any cause. The RSS has no connection with these movements. RSS."

साथियो यह पत्र देखने के बाद क्या इस संगठन का सत्यता से कोई संबंध है ? मतलब स्ट्रॅटेजी की आड़ में कैसे- कैसे झूठ बोल कर अपने आप को सही साबित करने की कोशिश करते हैं ? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चाल - चरित्र का कुछ साम्य सावरकर के इंग्लैंड की महारानी को लिखे हपए माफी मांगने वाले पत्रों से काफी मिलता- जुलता है. सावरकर के माफी मांगने वाले पत्रों का मजमून "मुझे रिहा करने के बाद मैं ब्रिटेन के साम्राज्य की मजबूती के लिए मेरे कुछ भटके हुए युवकों को लेकर अपनी सेवा दूंगा", की याद नहीं आ रही ? और उनके भी माफीनामो को एक युद्धनीति थी, यह कहकर छुटकारा पाने की कोशिश करते हैं. और आपातकाल के दौरान लिखे गए दस पत्र भी एक युद्धनीति बोलने वाला संगठन गत सौ सालों से कौन सा चरित्र निर्माण करने का काम कर रहा है ? और आज आपातकाल के पचास वर्ष पूरे होने पर देश भर में संघ भाजपा का चल रहा पाखंड देखने के बाद मुझे यह लेख लिखने के लिए मेरे मित्र डॉ. राम पुनियानी और प्रोफेसर शमसुल इस्लाम भाई ने प्रेरित किया, उन्हें धन्यवाद.

डॉ. सुरेश खैरनार,

26 जून 2025, नागपुर.