नई दिल्ली, 22 जुलाई 2019. अमेरिका के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान- National Institutes of Health (एनआईएच) के शोधकर्ताओं द्वारा एक विश्लेषण में बताया गया है कि प्रसव से पहले उच्च स्तर के वायु प्रदूषण (high levels of air pollution) के संपर्क में आने वाली महिलाओं के पैदा होने वाले शिशुओं (Infants born to women) को नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एनआईसीयू) - newborn intensive care unit (NICU) में भर्ती होने की अधिक आशंका होती है।
प्रदूषण के प्रकार के आधार पर, उन शिशुओं, जिनकी माँओं ने प्रसव से पहले उच्च स्तर के वायु प्रदूषण का सामना नहीं किया था, की तुलना में उन बच्चों जिनकी माँओं ने प्रसव से पहले उच्च स्तर के वायु प्रदूषण को झेला था, एनआईसीयू में प्रवेश की आशंका 4% से बढ़कर लगभग 147% हो गई।
यह अध्ययन एनआईएच के यूनिस कैनेडी श्राइवर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ एंड ह्यूमन डेवलपमेंट में एपिडेमियोलॉजी शाखा के पीएचडी पॉलीन मेंडोला (Pauline Mendola, Ph.D., of the Epidemiology Branch at NIH’s Eunice Kennedy Shriver National Institute of Child Health and Human Development) के नेतृत्व में किया गया। अध्ययन एनल्स ऑफ एपिडेमियोलॉजी (Annals of Epidemiology) में
डॉ. मेंडोला ने कहा है कि,
"अधिकांश प्रकार के वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने से एनआईसीयू में प्रवेश के लिए जोखिम बढ़ सकता है।"
इसके पहले के अध्ययनों में वायु प्रदूषण से गर्भवती महिलाओं में मधुमेह और प्रीक्लेम्पसिया, गर्भावस्था के रक्तचाप विकार के जोखिम बताए गए थे।
पहले के शोधों से यह भी पता चला है कि उच्च स्तर के वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने वाली महिलाओं से पैदा होने वाले शिशुओं पर समय पूर्व जन्म का खतरा बना रहता है और उनकी गर्भाशय में वृद्धि भी सामान्य से कम होती है।
इन पूर्व के अध्ययनों के परिणाम देखते हुए डॉ. मेंडोला के साथी अध्ययनकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि वायु प्रदूषण के चलते शिशुओं के एनआईसीयू में भर्ती करने के खतरे बढ़ सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने कंसोर्टियम ऑन सेफ लेबर के डेटा का विश्लेषण किया, जिसमें वर्ष 2002 से 2008 तक संयुक्त राज्य अमेरिका के 12 नैदानिक स्थलों पर 223,000 से अधिक जन्मे बच्चों की जानकारी संकलित की गई थी।
अध्ययनकर्ताओं ने सामुदायिक मल्टीस्केल एयर क्वालिटी मॉडलिंग प्रणाली, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में पर्यावरण प्रदूषण की सांद्रता का अनुमान लगाती है, से संशोधित डेटा से 27,000 से अधिक एनआईसीयू दाखिलों से रिकॉर्ड को अपने अध्ययन से जोड़ा।
शोधकर्ताओं ने उस क्षेत्र में, जहां प्रसव हुआ वहां तथा प्रसव के एक सप्ताह पहले और प्रसव से एक दिन पहले हवा की गुणवत्ता के आंकड़ों का मिलान किया। फिर उन्होंने प्रदूषण के स्तर से जुड़े एनआईसीयू भर्ती के जोखिम की पहचान करने के लिए प्रसव के दो सप्ताह पहले और प्रसव के दो सप्ताह बाद के समय अंतराल की तुलना वायु गुणवत्ता के आंकड़ों से की।
शोधकर्ताओं ने 2.5 माइक्रोन व्यास (PM2.5) से कम पार्टिकुलेट मैटर (प्रदूषण कणों) की उच्च सांद्रता से जुड़े एनआईसीयू भर्ती की बाधाओं की भी जांच की। इस प्रकार के कण विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न होते हैं, जैसे डीजल और गैसोलीन इंजन, बिजली संयंत्र, लैंडफिल, सीवेज सुविधाएं और औद्योगिक प्रक्रियाएं।
अधध्ययन में बेहद चौंकाने वाले नतीजे सामने आए। हवा में कार्बनिक यौगिकों के उच्च सांद्रता के संपर्क में आने से एनआईसीयू भर्ती के जोखिम में 147% की वृद्धि देखी गई। मौलिक कार्बन और अमोनियम आयनों के चलते क्रमशः (38% और 39%) जोखिम में समान वृद्धि देखी गई, जबकि नाइट्रेट यौगिकों के संपर्क में एनआईसीयू भर्ती के 16% अधिक जोखिम पाया गया।
ट्रैफिक से संबंधित प्रदूषकों के संपर्क में आने से प्रसव से पहले सप्ताह की तुलना में शिशु के एनआईसीयू में प्रवेश की आशंका और प्रसव के दिन की तुलना में काफी बढ़ जाती है: जो क्रमशः लगभग 4% और 3%, प्रति मिलियन है।
शोधकर्ता यह नहीं जान पाए कि वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से एनआईसीयू के प्रवेश की आशंका क्यों बढ़ सकती है। हालांकि, वे यह बताते हैं कि प्रदूषणकारी तत्व सूजन को बढ़ाते हैं, जिससे विशेष रूप से नाल में, खराब रक्त वाहिकाएं विकसित होती हैं, जो विकासशील भ्रूण को ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति करती है।
स्वतंत्र पत्रकार व पर्यावरणविद् डॉ. सीमा जावेद कहती हैं कि
“एशियाई देशों जैसे भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्री लंका आदि में आम जनता में खराब गुणवत्ता वाली हवा से दीर्घकाल में स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बारे में समझ बहुत सीमित है। सोशल मीडिया पर वायु प्रदूषण को लेकर डाली जाने वाली ज्यादातर टिप्पणियों और समाचारों में आमतौर पर तुरंत घटित हुई अल्पकालिक घटनाओं तथा प्रतिक्रियाओं का जिक्र होता है।“
सीमा जावेद कहती हैं कि
“लोग वायु प्रदूषण के तीव्र लक्षणों, जैसे कि सांस लेने में दिक्कत और आंखों में जलन आदि की शिकायत तो करते हैं, मगर वे प्रदूषित हवा में बार—बार सांस लेने के कारण होने वाली जटिल बीमारियों यानी क्रानिक रोगों और जीवन भर उनके दुष्प्रभाव झेलने के बारे में अनजान हैं। जबकि यह सेहत के लिये ज्यादा गम्भीर खतरे वाली बात है। स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोग भी इसके दुष्प्रभावों के बारे में धीरे धीरे अब अवगत हो रहे हैं और दिन-ब-दिन नए शोध से सच सामने आ रहा है। इसके असर को अब लोग सिगरेट के धुएं से तुलना करने लगे हैं। आमतौर पर वाहनों से निकलने वाले धुएं जैसे कम उल्लेखनीय स्रोत के बारे में ज्यादा बात की जाती है, जबकि ज्यादा बड़े स्रोतों, जैसे कि बिजली उत्पादन इकाइयों और कचरा जलाये जाने से निकलने वाले धुएं के बारे में अधिक बात नहीं होती।“
अमलेन्दु उपाध्याय