हल्द्वानी : हममें से अधिकतर लोग चेहरे, जबड़े और नाक के आसपास की जगह पर हल्के से लेकर गंभीर दर्द का अनुभव करते हैं, लेकिन जानकारी में कमी के कारण हम इसे सामान्य समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। यह दर्द माथा, गाल और निचले जबड़े में फैली ट्रिगेमिनल नर्व की शाखाओं में गड़बड़ी के कारण होता है, जो आमतौर पर चेहरे के एक तरफ सीमित रहता है।
किसी भी उम्र में होने वाली यह समस्या आमतौर पर 50 से अधिक उम्र के लोगों में ज्यादा होती है।
गुरुग्राम स्थित आर्टमिस हॉस्पिटल के अग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेज़ के न्यूरोसर्जरी निदेशक, डॉक्टर आदित्य गुप्ता (Dr. Aditya Gupta, Neurosurgery Director, Advance Institute of Neurosciences at Artemis Hospital) ने बताया कि,
“ट्रिगेमिनल नर्व चेहरे के भावों और संवेदनशीलता के लिए जिम्मेदार होती है। इस नर्व की 3 शाखाएं मस्तिष्क के बाएं और 3 शाखाएं दाएं ओर मौजूद होती हैं। जब इस ट्रिगेमिनल नर्व की शाखाओं में गड़बड़ी होती है, तो हम फेशियल पेन का अनुभव करते हैं। इस गंभीर दर्द में कई बार चुभन और इलेक्ट्रिक शॉक जैसा महसूस हो सकता है, जो भविष्य में मस्तिष्क की गंभीर समस्या का कारण बन सकता है। इसलिए इसे नजरअंदाज करने की गलती बिल्कुल नहीं करनी चाहिए। आमतौर पर, इसमें गाल और दांत में दर्द के साथ सिरदर्द, गर्दन दर्द और कंधों में दर्द होता है। इस अवस्था को ‘माइग्रेन मिमिक’ के नाम से बुलाते हैं क्योंकि इसके और
अधिकतर मरीजों के अनुसार, उन्हें बिना किसी कारण अचानक ही दर्द का अनुभव होता है। कुछ मरीजों का यह भी कहना है कि उन्हें इस दर्द का अनुभव कार एक्सीडेंट, मुंह पर चोट या मोच लगने या डेंटल सर्जरी के बाद हुआ। इन मामलों में यह साफ जाहिर होता है कि समस्या पहले से विकसित हो रही थी लेकिन इसके लक्षण डेंटल प्रक्रिया के साथ दिखना शुरू हुए।
डॉक्टर आदित्य गुप्ता ने आगे बताया कि,
“ट्रिगेमिनल न्यूरेल्जिया का निदान सामान्यतौर पर मरीज द्वारा बताए गए लक्षणों के अनुसार किया जाता है। समस्या की शुरुआत में मरीज को मेडिकेशन दिया जाता है। यदि उचित मेडिकेशन के बाद भी इस समस्या से राहत नहीं मिलती है तो डॉक्टर सर्जरी की सलाह देते हैं। साइबरनाइफ एक मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया है, जो ट्रिगेमिनल न्यूरेल्जिया के मरीजों के लिए एक वरदान साबित हुई है। इस एडवांस प्रक्रिया में एक छोटे से चीरे से ही काम बन जाता है और खर्च भी कम लगता है। इस रोबोटिक सिस्टम के इस्तेमाल के साथ, स्वस्थ कोशिकाओं को बिना नुकसान पहुंचाए सफल इलाज संभव है।"
डॉक्टर गुप्ता ने आगे बताया कि,
“साइबरनाइफ एम6 रेडिएशन की जगह को बराबर तरीके से देख और बदल सकता है, जिससे रेडिएशन की किरणें सीधा समस्या वाली जगह पर असर करती हैं। यह सिंगल सेशन आधे घंटे तक चलता है, जिसके बाद मरीज को अस्पताल से जल्द ही डिस्चार्ज कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित है, जिसमें दर्द न के बराबर होता है और सर्जरी के बाद की मुश्किलें भी कम हो जाती हैं। लगभग 80% मामलों में मरीज सिंगल ट्रीटमेंट के बाद ही ठीक हो जाते हैं और 2 महीनों के अंदर सामान्य दिनचर्या शुरु कर पाते हैं। वहीं लगभग 10% मरीजों को सर्जरी के तुरंत बाद ही दर्द से राहत मिल जाती है।”
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