डॉ. सीमा जावेद
एयर क्वॉलिटी को देखते हुये पिछले कुछ दिन से लगातार उत्तर भारत के ज्यादातर हिस्सों में हालात आपातकालीन स्थिति जैसे बनी हुई है। चाहे वह दिल्ली का एनसीआर हिस्सा हो या उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कानपुर, नोएडा जैसे चुनिन्दा शहर या फिर पंजाब, हरियाणा। एक तरफ दम घोंटू हवा में साँस लेने की मजबूरी तो दूसरी तरफ कोरोना बीमारी के उफान का डर यानी कुल मिलकर इधर कुआँ तो उधर खाई।
सब तरफ स्थिति चिन्ताजनक है क्योंकि विशेषज्ञ मान रहे हैं कि वायु प्रदूषण से कोरोना बीमारी और फैल सकती है और इसके केसों में दीवाली के बाद उफान आने की आशंका जताई जा रही है।
प्रकृति में बहुत सारी डोरियां एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं और इनका सीधा जुड़ाव हमारे जीवन और अस्तित्व के साथ है। हर रोज़ वायु प्रदूषण जैसे हत्यारे के कारण अरबों लोग वक़्त से पहले साँस की बिमारियों (दमा, साँस फूलना, अस्थमा, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस, कमज़ोर फेफड़े की वजह से अनेक जान लेवा श्वसन रोगों आदि ) की गिरफ्त में जकड़ कर एक बीमार जीवन जीते हैं और अकाल मौत की गोद में समा जाते हैं। इस
हर साल अक्टूबर-नवंबर में एक वक्त आता है जब उत्तर भारत के शहरों में सांस लेना मुश्किल हो जाता है। इस हफ्ते लगातार दिल्ली, लखनऊ, कानपुर इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (Air quality index) अति हानिकारक (हजार्डस) स्तर पर आ गया है। कुछ दिन पहले लखनऊ देश के तीसरा सबसे प्रदूषित शहर बन गया है पहले स्थान पर हरियाणा का फतेहाबाद शहर है, जहां का एक्यूआई 466 है, वहीं दूसरे नंबर पर यूपी का मुरादाबाद है यहां 457 एक्यूआई रिकॉर्ड किया गया है।
इन दिनों दिल्ली में बीते दिन तो देश की राजधानी, दिल्ली स्मॉग की चादर में इतना ढंक गया था कि लोगों को घर से बाहर निकलते ही कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। गुड़गांव, नोएडा, फरीदाबाद और गाज़ियाबाद में प्रदूषण 500 के सूचकांक तक पहुंच गया।
इस बीच दिल्ली के आसपास के राज्यों में पराली जलाया जाना जारी है। मंगलवार को ही पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत कई इलाकों में कुल 2247 घटनायें दर्ज की गईं और दिल्ली एनसीआर के प्रदूषण में इसका 22% हिस्सा था। बढ़ती नमी और हवा न बहने से हालात और खराब हो गए।
पिछले दो दशकों में भारत में पार्टीकुलेट मैटर (प्रदूषण) में 42 प्रतिशत की तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। भारत की आबादी का एक चौथाई हिस्सा वायु प्रदूषण को झेलने के लिए मजबूर है। आज भारत में 84 प्रतिशत लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं, जो भारत के स्वयं के वायु गुणवत्ता मानकों से अधिक प्रदूषित हैं।
ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान के तहत सरकार ने दिल्ली-एनसीआर के भीतर ट्रकों की आवाजाही से लेकर निर्माण कार्य पर पाबंदी लगा दी है। एयर क्वॉलिटी प्रबंधन आयोग ने लोगों से अपील की है कि वह निजी वाहनों का इस्तेमाल न करें। कमीशन ने प्रदूषित हवा के स्तर को और बिगड़ने से रोकने के लिये पानी के छिड़काव और निर्माण स्थलों पर एंटी स्मॉग गन इस्तेमाल करने की बात कही है
दीपावली से पहले वायु प्रदूषण के ख़तरनाक स्तर को देखते हुये नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पटाखों को बेचने और खरीदने पर पाबंदी लगा दी है। वहीं दूसरी तरफ हरियाणा और कर्नाटक ने आतिशबाज़ी बेचने और जलाने पर पाबंदी के फैसले लेने के बाद यू-टर्न ले लिया है। हरियाणा ने अब दो घंटे आतिशबाज़ी की इजाज़त दी है। यूपी ने एनसीआर क्षेत्र के साथ लखनऊ, कानपुर और आगरा जैसे शहरों में पटाखे जलाने पर रोक लगाई है।
हालाँकि पटाखों पर बैन एक अच्छा कदम है लेकिन साल भर की दिक़्क़त के लिए इस तरह जल्दबाज़ी से उठाया गया कदम हवा की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद नहीं करेगा। असलियत यह है कि फसल अवशेषों और जीवाश्म ईंधन को जलाना वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है। प्रदूषण को कम करने के लिए, हमें स्रोत पर जाने की आवश्यकता है। पटाखे पहले से खराब स्थिति को बदतर बनाते हैं, लेकिन यह समस्या का मुख्य स्रोत नहीं है
कुल मिलाकर हर साल की तरह इस साल भी दीवाली के आस पास फिर से वायु प्रदूषण के मामले में हालात फिर वही ढांक के तीन पात हैं। भले ही नेशनल चलना एयर प्रोग्राम( NCAP) , नेशनल एयर मोनिटरिंग प्रोग्राम(NAMP) और एयर क्वालिटी प्रबंधन आयोग जैसे अनेक नाम इस दिशा में काम करते दिखाई दें। ऐसे में अधिक प्रदूषण से भरे शहरों में रहने वाले लोगों को कोरोना वायरस से अधिक सतर्क रहने की ज़रूरत है।