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सुधार के बावजूद दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर चिंताजनक, दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में शुमार

Air pollution is far deadlier than the coronavirus: new data ranks health threat in cities from worst to best

नई दिल्ली, 25 फरवरी: दुनिया की 90% आबादी प्रदूषित हवा में सांस ले रही है, ऐसे में अब वायु प्रदूषण नियंत्रण केवल पर्यावरण का मसला नहीं रहा बल्कि ये मानवाधिकार का गंभीर मुद्दा बन गया है.

दुनिया भर के एयर क्वालिटी मॉनीटरिंग स्टेशनों से एक्यूएयर द्वारा आंकड़े इकट्ठा कर तैयार की गई वैश्विक वायु गुणवत्ता रिपोर्ट, 2019 में दुनिया के तमाम शहरों में साल 2019 में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 की स्थिति में बदलाव का खुलासा हुआ है.

दक्षिणी एशिया के संदर्भ में देखें, तो पीएम 2.5 के मामले में भारतीय शहर इस बार भी फ़ेहरिस्त में शीर्ष पायदान पर बने हुए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत के 21 शहर शामिल हैं. ग़ाज़ियाबाद दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है. छठे  नंबर पर नोएडा, सातवें नंबर पर गुरुग्राम और नौवें नंबर पर ग्रेटर नोएडा है. वहीं देश की राजधानी दिल्ली पांचवें पायदान पर है.

दुनिया के प्रदूषित देशों की सूची में भारत पांचवें स्थान पर है. यहां के वायुमंडल में प्रति क्यूबिक मीटर 58.1 माइक्रोग्राम पीएम 2.5 मौजूद है. सबसे प्रदूषित मुल्क बांग्लादेश है. दूसरे पायदान पर पाकिस्तान, तीसरे नंबर पर मंगोलिया और चौथे स्थान पर अफग़ानिस्तान है.

हालांकि, रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि भारत के शहरों में  पिछले साल की तुलना में प्रदूषण में सुधार हुआ है. लेकिन, ये सुधार पीएम 2.5 कम करने के विश्व स्वास्थ्य संगठन के सालाना लक्ष्य से बहुत कम है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हर साल पीएम 2.5 में 500% की कमी लाने का लक्ष्य रखा है, लेकिन भारत में वायु प्रदूषण में महज 20 प्रतिशत कमी आई है. रिपोर्ट में

कहा गया है कि 98% शहरों में वायु प्रदूषण में सुधार हो रहा है.

एक्यूएयर के सीईओ फ्रैंक हमेस ने कहा,

"कोरोना वायरस तो अभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है, लेकिन एक  खामोश हत्यारा, यानी वायु प्रदूषण हर साल 70 लाख से अधिक लोगों की जान ले रहा है. दुनिया के एक बड़े हिस्से से एयर क्वालिटी डाटा नहीं मिलने से गंभीर समस्या हो रही है क्योंकि जिसके खतरे का अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता है, उसका प्रबंधन भी नहीं हो सकता. जिन क्षेत्रों का वायु गुणवत्ता आंकड़ा उपलब्ध नहीं होता है, उन्हें वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा ग्रस्त क्षेत्र माना जाता है. इस तरह देखें तो एक बड़ी आबादी खतरे में है. वैश्विक स्तर पर पब्लिक मॉनीटरिंग डाटा मिलने से सरकार और आम जनता को सशक्त करने का अवसर मिलता है ताकि हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए बेहतर नीति लागू की जा सके.”

साल 2019 के वायु गुणवत्ता के आंकड़े साफ तौर पर बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन सीधे तौर पर वायु प्रदूषण बढ़ा सकता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के चलते दावानल व धूल और बालू भरे तूफान ज्यादा आते हैं और उनकी तीव्रता भी अधिक होती है. इसी तरह बहुत सारे क्षेत्रों में पीएम2.5 से प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, मसलन कोयला जैसे जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल.

वैश्विक वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2019 पर प्रतिक्रिया देते हुए ग्रीनपीस इंडिया के सीनियर कैम्पेनर अविनाश चंचल ने कहा,

"दिल्ली में बाईपास रोड, बदरपुर पावर प्लांट्स बंद करने और कल-कारख़ानों में पीएनजी और बीएस VI  तकनीक अपनाने से सालाना औसत के स्तर पर प्रदूषण में गिरावट आई है. साल 2019 में मौसम अनुकूल रहा. इससे भी मदद मिली और  बाजार में आर्थिक सुस्ती की भी एक भूमिका रही. लेकिन, वायु गुणवत्ता की ताज़ा रिपोर्ट से ये संकेत भी मिलता है कि जो भी कदम उठाए गए हैं, वे अपर्याप्त हैं."

“एयरपोकैलिप्स-IV या वैश्विक वायु गुणवत्ता रिपोर्ट जैसी रपटों से पता चलता है कि  घरेलू ईंधन व कृषि अवशेषों को जलाने का चलन घट रहा है, लेकिन जीवाश्म ईंधन से उत्पादित ऊर्जा का इस्तेमाल बहुत ज्यादा हो रहा है. पावर प्लांट्स नियमों की अनदेखी कर रहे हैं और तय समय-सीमा खत्म होने के बाद भी प्रदूषण नियंत्रण के लिए फ़्लू गैस डिसल्फराइजेशन स्थापित नहीं किया है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा ऐसी नहीं हो पाई है कि लोगों की निर्भरता निजी वाहनों पर कम हो जाए. ये तथ्य सार्वजनिक पटल पर उपलब्ध हैं. मीडिया में इस पर ख़बरें बन रही हैं और लोगों को भी मालूम है. अब ज़िम्मेदारी सरकार पर है कि वह प्रदूषण फैलाने वालों की जवाबदेही तय करे," अविनाश चंचल ने कहा.