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शहरों पर आधारित योजना प्रदूषण से लड़ने के लिए पर्याप्त नहीं है। Planning based on cities is not enough to fight pollution.

प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए अलग-अलग इलाकों पर आधारित योजनाएं लेकर आनी होंगी।

नई दिल्ली, 21 जनवरी 2020 : ग्रीनपीस इंडिया की तरफ से जारी किए गए एयरपोकैलिप्स रिपोर्ट (Airpocalypse report released by Greenpeace India) के चौथे संस्करण में पाया गया है कि 287 में 231 भारतीय शहर जो नेशनल एम्बिएंट एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग प्रोग्राम- National Ambient Air Quality Monitoring Program (एनएएमपी) के तहत आते हैं, की हवा में PM10 का स्तर 60 µg/m3 से अधिक है।

Jharia of Jharkhand has the highest amount of PM10

रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड का झरिया इलाका इस सूची में सबसे ऊपर है। झरिया वह इलाका है जहां PM10 की मात्रा सबसे अधिक पाई गई है। दिल्ली में पिछले 2 सालों में कुछ बेहतर संकेत मिले हैं पर फिर भी यहां PM10 की मात्रा राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक (NAAQS) में दिए गए स्टैंडर्ड से 3.5 गुना और विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक तय की गई मात्रा से 11 गुना ज़्यादा है।

रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, बिहार, के कई ऐसे शहर हैं जहां हवा की गुणवत्ता राष्ट्रीय मानक से कहीं अधिक है लेकिन उन्हें राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Program) में शामिल नहीं किया गया है।

जनवरी 2019 में पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम शुरू किया। इस योजना के तहत इन शहरों में 2017 के मुकाबले 2024 तक प्रदूषण का स्तर 20-30 फीसदी घटाने का लक्ष्य रखा गया था। हालांकि एयरपोकैलिप्स की रिपोर्ट बताती है कि अबतक 122 प्रदूषति शहरों को ही चिन्हित किया गया है जिसमें से अब तक 102 ही वायु कार्यक्रम स्वच्छ हवा क योजना में शामिल हैं। ये 122 शहर 28 राज्यों और 9 केंद्र शासित प्रदेशों में

फैले हुए हैं।

2018 के आंकड़े बताते हैं कि 116 और ऐसे शहर हैं जहां NAAQS द्वारा तय किये गए मानक 60 µg/m3 से वायु प्रदूषण का स्तर बेहद अधिक पाया गया है और जिन्हें प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल करने की जरुरत है।

रिपोर्ट (greenpeace report on air pollution) स्पष्ट बताती है कि मंत्रालय को उन सभी शहरों को NCAP में शामिल करने की जरूरत है जहां प्रदूषण अधिक पाया गया। NCAP में शामिल शहरों में 2024 तक प्रदूषण 20 से 30 फीसदी घटाने का लक्ष्य तो रखा गया है लेकिन इसे लेकर अब तक कोई ऐसा संकेत नहीं मिला कि इन शहरों में प्रदूषण घट रहा है। इस कार्यक्रम में पूर्ण रूप से प्रदूषण को घटाने, अलग-अलग सेक्टर्स से होने वाले उत्सर्जन, डीज़ल और कोयले की खपत से जुड़ा कुछ भी शामिल नहीं किया गया।

इस मुद्दे पर ग्रीनपीस इंडिया के सीनीयर कैंपेनर अविनाश चंचल कहते हैं,

“यह चिंताजनक है कि भारत के 80 फीसदी से ज़्यादा शहरों में PM10 की मात्रा NAAQS की निर्धारित 60 µg/m3 से अधिक है. अगर हमें राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) को सच में एक राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाना है तो हमें इन सभी शहरों को इस कार्यक्रम के तहत लाना होगा।”

उन्होंने ये भी कहा कि इस कार्यक्रम में शहरों में प्रदूषण घटाने के तो मानक तय किए गए हैं पर उनका पूरा ध्यान शहरों पर ही है. जबकि वायु गुणवत्ता नियंत्रण के लिए क्षेत्रीय सहित व्यापक दृष्टिकोण पर अधिक जोर देने की आवश्यकता है।

“हमें एनसीएपी में शामिल शहरों के अध्ययन के लिए न सिर्फ शहरों की सीमा के भीतर मौजूद प्रदूषण के कारकों का अध्ययन करने की जरूरत है बल्कि क्षेत्रीय स्तर पर प्रदूषण के कारकों पर भी चर्चा करने की जरूरत है. महत्वपूर्ण है कि एनसीएपी में प्रदूषण के विभिन्न स्त्रोतों का नियंत्रण लक्ष्य तय किया जाए और उसे एक तय समय में नियंत्रित करने कोशिश की जाए,” अविनाश चंचल ने कहा.

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