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Among the backward castes, attraction towards Buddhist Dhamma increased.

उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जातियों में भी अब बुद्ध धम्म के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है. बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा 1956 में नागपुर में ऐतिहासिक दीक्षा का सबसे ज्यादा प्रभाव महाराष्ट्र में म्हारों और उसके बाहर उत्तर प्रदेश में जाटवों में दिखाई दिया और बुध धम्म उनके जीवन का हिस्सा बन गया. लोगों ने ब्राह्मणवादी परम्पराओं को छोड़ कर नयी परम्पराओं की नीव डाली. परिवार के सदस्यों के मरणोपरांत मृत्युभोज देना लोगों ने बंद कर दिया. शादी विवाह में भी पुरोहितों को पूछकर विवाह और अन्य सामाजिक संस्कारों को लोगों ने अपने तरीके से करना शुरू कर दिया. विवाह पद्धति बिलकुल बुद्धिस्ट तरीको से होने लगी और फ़िज़ूल खर्ची बंद हो गयी. महाराष्ट्र ने एक बहुत बड़ा सांस्कृतिक परिवर्तन देखा जिसमें बुद्ध के मार्ग का बहुत बड़ा हाथ है.

बाबा साहेब की धम्म क्रांति (Baba Saheb's Dhamma Revolution) ने महाराष्ट्र में उनके अनुयायियों को शिक्षा, व्यापार, संस्कृति, कला, साहित्य आदि में सबसे आगे पहुंचा दिया.

बसपा सरकार बनने के बाद यूपी के गांव-गांव पहुंचा अंबेडकरवाद

१९९० में बसपा के उदय के बाद और फिर १९९२ में उत्तर प्रदेश में सरकार बनने के बाद उत्तर प्रदेश में आंबेडकरवाद गांव-गांव तक पहुंच गया.

ऐसा नहीं था कि अम्बेडकरवाद यहाँ पहले से नहीं था, लेकिन बसपा के आन्दोलन के बाद यह सरकारी कर्मचारियों तक सीमित नहीं रहा अपितु खेत खलिहानों तक पहुंच गया. अब शादियों, विवाहों, मुहूर्तों में बाबा साहेब, ज्योति बा फुले, सावित्री माई, रमाई, छत्रपति शाहूजी महाराज की तस्वीरें पंडालों

में दिखने लगीं. अब शादी विवाहों के मुहूर्त बदल गए और एक नए लगन ने जन्म लिया जिसे आंबेडकर लगन कहते हैं. यहां भी मृत्युंभोज कम हो गए और ऐसे सभी काम 'मिशन' के कार्यकर्ता या बुद्धिस्ट धम्म गुरु या बामसेफ के मिशन से जुड़े लोग करने लगे, लेकिन ये सब मात्र चमार समाज में ज्यादा चला क्योंकि दूसरी जातिया अभी भी वर्णवादी व्यवस्था के झमेले में फंसी पड़ी हैं. उनमें बाबा साहेब का नाम लेने का प्रचलन तो शुरू हुआ लेकिन उनकी सांस्कृतिक विरासत को वह अभी भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है, क्योंकि परम्पराओं को तोड़ना आसान नहीं है और उसके विरुद्ध लम्बी लड़ाई और जनमत तैयार करना पड़ता है. फिलहाल इन जातियों के नेता अभी बुद्धिज्म की विरासत (Legacy of Buddhism) को राजनैतिक रूप से लाभदायक नहीं मानते क्योंकि उसके लिए मेहनत करनी पड़ती है और आज के 'फास्टफूड' के दौर में किसी के पास समुदायों में जाकर लग कर काम करने की फुर्सत नहीं.

अब भाजपा के शासन काल में जहां वर्णवादी ताकतें बहुत जबर्स्दस्त तरीके से बहुजनों की सांस्कृतिक विरासत को हथियाने में लगी हैं और अपने हितों के अनुसार उनका नैरेटिव बनाने में लगी हैं और इस कार्य में उन्हें उनकी पार्टियों में मौजूद दलित पिछड़े नेता ही मदद करते हैं.

अभी उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव मौर्या ने कुशीनगर आगमन के दौरान ये कह दिया कि राम के पुत्र कुश के नाम पर ही कुशीनगर का नाम पडा. ये बेहद शर्मनाक है और यहाँ मौजूद सभी लोगों में इस बात से काफी रोष है.

स्वयं मौर्या और कुशवाहा समुदायों के लोग अब इसके खिलाफ हैं, क्योंकि यह समुदाय अब सम्राट अशोक और चन्द्रगुप्त मौर्या से अपनी विरासत को जोड़ के देखता है. पूर्वांचल में ये समुदाय अब बुद्ध की तरफ रुख कर रहा है और दलितों की भांति ही बाबा साहेब आंबेडकर और बहुजन समाज के अन्य महापुरुषों की विचारधारा को अपना रहा है.

आज देवरिया जनपद के मल्वाबर बनरही गाँव में कुशवाहा समुदाय के युवाओं ने मिलकर एक बुद्ध विहार का निर्माण करवाया है और विहार के समीप ही अशोक स्तम्भ भी बनवाया है.

महत्वपूर्ण बात यह है कि अशोक स्तम्भ के बनवाने में गाँव के मुसहर समुदाय ने भी अपना योगदान दिया है. समुदाय ने आज गाँव के लोगों की बड़ी भागीदारी के बीच कुशीनगर के बौद्ध धम्म गुरु भंते डॉ नन्द रतन थेरो ने बौध परम्पराओं के अनुसार तथागत बुद्ध की प्रतिमा का लोकार्पण किया और वहां मौजूद लोगों को त्रिशरण और पंचशील ग्रहण करवाया.

इस क्षेत्र के लिए इस बुद्ध विहार का बहुत बड़ा मतलब है क्योंकि यही पर हर वर्ष शहीद मेला भी आयोजित होता है. उन्होंने मंदिर से जुड़े हुए अशोक स्तम्भ का भी अनावरण किया.

बाद में एक जन सभा में वक्ताओं ने लोगों से धम्म के मार्ग पर चलने की अपील की.

भारत की पहचान विश्व में तथागत बुद्ध से होती है. | In the world, India is identified with the Tathagata Buddha.

रविन्द्र कुशवाहा ने कहा कि धम्म का मार्ग किसी के विरुद्ध नहीं है और ये भारत की पहचान है. विश्व में भारत की पहचान तथागत बुद्ध से होती है.

डी पी बौद्ध ने लोगों को त्रिशरण और पंचशील का मतलब समझाया.

सामजिक कार्यकर्ता हरिकेश कुशवाहा ने बताया कि स्थानीय युवा इस बात से बेहद खुश हैं कि यहाँ बुद्ध विहार बना है. इसकी प्रेरणा हमें प्रेरणा केंद्र से मिली क्योंकि भगवान् बुद्ध, बाबा साहेब, ज्योति बा फुले और सावित्री माई फुले और अन्य महापुरुषों के बारे इस क्षेत्र में अलख जगाने का कार्य प्रेरणा केंद्र के जरिये ही हुआ.

आज देश को युद्ध की नहीं बुद्ध की जरुरत है

सभा को संबोधित करते हुए प्रेरणा केंद्र के संस्थापक विद्या भूषण रावत ने कहा कि उन्हें इस क्षेत्र में पहला बुद्ध विहार देख अतीव प्रसन्नता हो रही है और ये एक ऐतिहासिक क्षण है क्योंकि आज देश को युद्ध की नहीं बुद्ध की जरुरत है और समाज के विकास के लिए बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा सुझाया गया धम्म का मार्ग सबसे जरूरी है.

उन्होंने कहा कि बहुजन समाज की ऐतिहासिक धरोहरों को उनसे छुपाया गया है और आज हमें जरुरत है कि इन्हें दोबारा से क्लेम किया जाए.

उन्होंने कहा कि धम्म का मार्ग हमारा मूल रास्ता है और ये हमारी पीढ़ियों को नयी राह दिखाएगा जो लोग अंध विश्वास, जड़ता, जातिवाद और कूपमंडूकता के दल दल में फंसे हुए हैं. जब बुद्ध के दर्शन की और पूरी दुनिया देख रही है तो भारत जैसे देश में जहां से बुद्ध आये, उन्हें कैसे भूल सकता है. आज बुद्ध का सम्यक दर्शन ही भारत को एक मजबूत राष्ट्र बना सकता है जहां एकता, बराबरी और भाईचारा हो.

प्रेरणा केंद्र की संयोजक सुश्री संगीता कुशवाहा भी मानती हैं कि यह एक बेहद ऐतिहासिक घटना है क्योंकि अभी तक पिछड़ी जातियों के समक्ष संस्कृति का संकट था. दलितों ने बुद्ध धर्म अपनाया और उनमें बदलाव आया. अब पिछड़ी जातियों को भी ये कार्य करने की जरुरत है. उनका ये भी कहना है कि इन सभी कार्यक्रमों में अभी भी महिलाओं की भागीदारी बेहद कम और मात्र श्रोताओं के रूप में ही है और इसलिए अब आवश्यकता है कि महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाया जाए, ताकि महिलाएं उसमें जोर-शोर से हिस्सा लें और धम्म का मार्ग आगे बढ़ें.

डाक्टर नन्द रतन थेरो ने इसी दौरान मल्वाबर गाँव स्थित प्रेरणा केंद्र का भ्रमण भी किया और यहाँ शंकर नारायण पुस्तकालय में पुस्तकों को देखा और केंद्र की गतिविधियों के विषय में बातचीत भी की. उन्होंने इस बात पर ख़ुशी जाहिर की कि इस केंद्र के जरिये समाज के सबसे हासिये के लोगों तक पहुंचा जा रहा है और यहाँ बहुजन समाज के महापुरुषों की पुस्तकें पुस्तकालय में रखी गयी हैं ताकि लोगों का ज्ञान वर्धन हो.

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