लखनऊ 19 नवम्बर 2021, भारी जनदबाब में प्रधानमंत्री मोदी को तीनों काले कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करनी पड़ी है। यह किसान और आम जनता के आंदोलन की जीत है इसने एक बार फिर जनता की प्रभुता को देश में स्थापित किया है। लेकिन मोदी सरकार द्वारा तीनों कानूनों को खत्म करने से ही काम नहीं चलेगा। मोदी सरकार को किसान आंदोलन की कारपोरेटपरस्त नीतियों को बदलने, सी 2 प्लस के आधार पर एमएसपी पर कानून बनाने, विद्युत संशोधन अधिनियम 2021 की वापसी, पराली जलाने सम्बंधी कानून को रद्द करने, लखीमपुर नरसंहार के दोषी केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी की बर्खास्तगी और गिरफ्तारी और आंदोलन के दौरान लगाए सभी मुकदमों की वापसी जैसी मांगों पर किसानों के साथ वार्ता कर उन्हें हल करना चाहिए।
आइपीएफ के प्रस्ताव की जानकारी देते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. आर. दारापुरी ने बताया कि जो मोदी औरा पिछले लम्बे समय से खड़ा किया गया था उसका पराभव शुरू हो गया है। न सिर्फ किसान बल्कि नौजवानों, मेहनतकश वर्ग और आम आदमी में गुस्सा बढ़ रहा है। दरअसल मोदी सरकार लगातार जनता से अलगाव में जा रही है। उसकी तानाशाही पूर्ण जन विरोधी नीतियों के खिलाफ जनाक्रोश बढ़ रहा है। न सिर्फ 2022 के विधानसभा चुनावों में बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी इसका खामियाजा आरएसएस-भाजपा को उठाना पड़ता और देश में तानाशाही थोपने के उसके प्रोजेक्ट को धक्का लगता। इसलिए भले ही मोदी ने जनभावनाओं के खिलाफ जाने के कारण कार्यनीतिक रूप से तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने का फैसला लिया हो लेकिन वह अभी भी कारपोरेटपरस्त रास्ते को छोड़ने के
प्रस्ताव में कहा गया कि लोकतंत्र आरएसएस और भाजपा के शब्दकोश में है ही नहीं। वह लगातार तानाशाही थोपने के लिए जनता के बीच विभाजन कराने और युद्धोन्माद भड़काने में लगी रहती है। जनांदोलन की भाषा उसे समझ नहीं आती। लेकिन किसान आंदोलन ने उसे सबक दिया है। उसे जनांदोलन के दबाब में कानून वापस लेने पड़े है।