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फासीवाद विरोधी मोर्चा का पहला सेमिनार सफलतापूर्वक संपन्न

उत्तर प्रदेश में कुछ जन संगठनों ने वर्ष 2017 के अंतिम महीनों से एक प्रयास शुरू किया। वह प्रयास था प्रदेश के विभिन्न सामाजिक संगठनों को एक मंच पर लाना और एक संयुक्त मोर्चे का गठन करना। एक ऐसा मोर्चा जो दुनिया भर में एवं भारत में उभरते हुए फासीवाद को सक्रिय टक्कर दे। वह तात्कालिक व दीर्घकालिक प्रकृति का होगा। जो तत्कालिक फासीवादी हमलों पर बयान, जांच रिपोर्ट, प्रदर्शन, धरना व मोर्चा लेने से लेकर फासीवादी व्यवस्था को ध्वस्त कर जनवादी सामाजिक व्यवस्था के निर्माण की जमीन तैयार करेगा। इस बीच विभिन्न संगठनों से बातचीत तथा फासीवाद विरोधी मोर्चा के परिपेक्ष्य पर चर्चा व सुझाव लिया जाता रहा ।

25 मार्च को प्रदेश के 29 संगठनों ने मिलकर एक सेमिनार का आयोजन करने का निर्णय लिया। इस दिन को प्रतीकात्मक रुप से इसलिए चुना गया क्योंकि इसी दिन को देश के क्रांतिकारी पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर में सांप्रदायिक दंगों को रोकने में शहीद हुए थे। आजमगढ़ में हुए इस सेमिनार में लगभग 400 से 500 लोगों ने भाग लिया जिसमें विभिन्न संगठनों ने मजदूर-किसान, महिलाएं, छात्र-नौजवान, बुद्धिजीवी, पत्रकार, शिक्षक, दलित, अल्पसंख्यकों ने भाग लिया।

कार्यक्रम की शुरुआत टीम द्वारा लड़ना है साथी ये तो लंबी लड़ाई है और भारत अपनी महान भूमि इसकी कहानी सुनो रे भाई गीत गाकर हुआ। स्वागत व परिचय व्यक्तव्य रिहाई मंच के मसीहउद्दीन संजरी ने दिया। इसके बाद फ़ासीवाद विरोधी मोर्चा के बुलेटिन अखबार फ़ासीवाद और हर तरह के शोषण के..."विरुद्ध" का विमोचन किया गया।

कार्यक्रम में "फासीवाद की चुनौतियां और हमारे कार्यभार" पर विषय प्रवर्तन रखते हुए कृपाशंकर ने कहा कि

"हमें नहीं भूलना चाहिए कि फासीवाद का वह रूप जो द्वितीय

विश्व युद्ध के समय हिटलर मुसोलिनी द्वारा पूरी दुनिया में पांच करोड़ लोगों को मारा गया था। वह अब फिर से भारत और पूरी दुनिया में आ रहा है। 2008 की मंदी के बाद जो भाजपा कांग्रेस का 1991 के समय विरोध कर रही थी, उन्हीं नीतियों का पुरजोर तरीके से लाई है। इसलिए कोई पार्टी हो फासीवाद के उभार के पीछे मुख्य रूप से पूजीपतियों का आर्थिक संकट है। अब वह कोई भी लोकतांत्रिक अधिकार देने में अक्षम है। भारत में इसका विशिष्ट चरित्र है वह मनुवादी हिंदुत्व फासीवाद है। उन्होंने अपना टारगेट साफ कर दिया है। मजदूरों किसानों के प्रतीक लेनिन की मूर्ति तोड़कर तथा दलितों के प्रतीक पेरियार अंबेडकर की मूर्ति तोड़कर। दुनिया भर में इसका विरोध हो रहा है। अमेरिका में अश्वेतों का, ट्रम्प का विरोध, पूरे यूरोप में मजदूर लड़ रहे हैं। हमारे देश में किसानों पर गोली चली। भीमा कोरेगांव पर हमला हुआ। आंदोलन हो रहे हैं लेकिन इन आंदोलनों के पीछे नेतृत्व एक बड़ी समस्या है। फासीवाद को हराने के लिए उस समय में दो तरह के लोग एकजुट हुए थे। एक लोकतांत्रिक और दूसरे समाजवादी लोग। आज फिर एकजुट होने की जरूरत है।"

सामयिक कारवां पत्रिका के संपादक रविंद्रनाथ राय ने बात रखते हुए कहा कि

"सबसे पहले मैं आयोजकों को धन्यवाद देते हुए कहना चाहता हूं कि साम्राज्यवाद-पूंजीवाद का आर्थिक संकट इतना बढ़ गया है। मजदूर किसानों और मेहनतकस जनता का शोषण इतना बढ़ गया है कि फ़ासीवाद आ रहा है। जो जनसंघर्षों का ध्यान भटकाने के लिए जाति,धर्म और राष्ट्रवाद का प्रयोग कर रहा है। एक मोदी ने कहा मैं देश का चौकीदार हूं तभी देश से सैकड़ों करोड़ रुपया लेकर दूसरा मोदी भाग जाता है। सभी सरकारें पूंजीपतियों के हित में काम कर रही हैं।"

स्ववित्तपोषित वित्तविहीन महाविद्यालय शिक्षक एसोसिएशन से चतुरानन ओझा ने शिक्षा में फासीवाद के रूप को इंगित करते हुए कहा कि

"आज 90 प्रतिशत शिक्षक स्ववित्तपोषित है। जिनको कोई सुरक्षा नहीं प्राप्त है। यहां तक कि न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल रही है। अपनी किसी भी तरह की मांग करने पर प्रबंधन की तरफ से छटनी की तलवार लटकती रहती है। उनका कोई भी कानूनी अधिकार नहीं बचा है। इसलिए हमें गैर जरूरी मुद्दों पर ध्यान नहीं देकर फासीवाद के खिलाफ खड़ा होना चाहिए।"

वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी सूरजपाल ने कहा कि भारत में क्षण प्रतिक्षण मनु का संविधान लागू होता है। और उसका प्रतिकार भी लगातार जारी है। ऐसा नहीं है कि शब्बीरपुर व भीम आर्मी के लोग उसका मुंह तोड़ जवाब नहीं देते हैं। या बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़,उड़ीसा, मध्य प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र में जो दलित आदिवासी तबाह हो रहे हैं उसका जवाब नहीं देते हैं। कैसे लोगों को फांसीवाद नहीं दिखाई दे रहा है। मुझे उम्मीद है कि आने वाले दिनों में फासीवाद,ब्राह्मणवाद सामंतवाद,पूंजीवाद,साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष चलेंगे और हम कामयाब होंगे।"

इसी कड़ी में महाराष्ट्र से चलकर आए पत्रकार हर्ष ठाकुर ने यह देख कर खुशी जाहिर की यहां विभिन्न तरह के लोग इस फांसीवाद विरोध में शामिल हैं। खुशी जाहिर करते हुए कहा कि सबसे महत्वपूर्ण है कि सिर्फ नागरिक स्वतंत्रता नहीं बल्कि सच्ची मजदूरों किसानों के वर्ग संघर्ष के रूप में, जिस तरह से उन लोग ने गुंडों का सेना बनाया है उसी तरह से हमें भी जनता का जन सेना बनाकर संघर्ष करना है। नहीं तो हम फासीवाद से नहीं लड़ सकते हैं। ऐसा नहीं है कि फांसीवाद इटली जर्मनी की तरह ही होगा।

भारत में बहुत संघर्ष भी हो रहा है चाहे वह माओवादी खड़े हैं मुक्ति मोर्चा है अलग-अलग संगठन वालों खड़े हैं। अभी भी हमारे सामने एक रोशनी है फासीवाद से लड़ने के लिए। सच्चे संगठन प्रतिबंध हो गए हैं। जैसा अभी मजदूर संगठन समिति हुआ है। क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं को जेल में भरा गया है। आज हम स्टालिन की तरह संघर्ष के साथ ही जातिवाद से लड़ेंगे, हिंदुत्व से लड़ेंगे। मुझे बहुत खुशी है कि यह हो रहा है और मैं शामिल हूं। संघर्ष आगे बढ़ेगा।"

इसके बाद जन शिक्षा अधिकार मंच के साथी बृजेश यादव ने कहा कि "देश की संसद जिस संविधान का शपथ लेती है। एक ऐसा कानून लाती है जिसे शिक्षा अधिकार कानून कहते हैं। इस देश की संसद ने देश की जनता को 16 वर्ष पहले हरा दिया है। मौलिक अधिकार के नाम पर उसकी व्याख्या में यह है कि जैसा राज्य चाहेगा वैसे शिक्षा प्रदान की जाएगी। जनता को शिक्षा से काटकर अज्ञानता फैलाई जा रही है। जिससे फांसीवाद पनपता है। इसलिए मैं आजमगढ़ में उत्तर प्रदेश की जनता से अपील करता हूं कि जन आंदोलन को तेज करें। क्योंकि लड़ाई के सिवा कोई चारा नहीं है।"

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने सरल और प्रभावी शैली में बात रखते हुए कहा कि "जो लोग सबसे ज्यादा मेहनत करते हैं वह सबसे गरीब हैं। उनकी इज्जत नहीं है। जो सबसे कम मेहनत करते हैं वह सबसे अमीर हैं तथा इज्जतदार लोग हैं। यह अन्याय है और जब तक अन्याय रहेगा तब तक अशांति व संघर्ष रहेगा। इसे पुलिस फौजों द्वारा शांत नहीं किया जा सकता है। उदाहरण स्वरूप एक बच्चे को दो बिस्कुट दीजिए एक को एक बिस्कुट दीजिए तो वह बच्चा फेंक देगा, जमीन पर लेट जाएगा, चिल्लाएगा या छीनेगा। वह बच्चा अन्याय के खिलाफ लड़ रहा है। उस 3 साल के बच्चे को किस माओवादी ने सिखाया है कि लड़ो।

भारतीय समाज के रग रग में अन्याय भरा है। मरे जानवरों को ले जाने वाला नीची जाति का है। लकड़ी का, लोहे का, मिट्टी के बर्तन बनाने, कपड़े बनाने, बाल काटने, कपड़े धोने का काम करने वाले नीची जाति के है। जो भी काम करें वह नीचे जाती है और काम ना करने वाले ऊंची जाति के है। पूंजीवाद की पक्की व्यवस्था की गई है मनुस्मृति में यह लिखकर की शूद्र को संपत्ति रखने का अधिकार नहीं है।

 भारत महान देश है और पाकिस्तान खराब देश है। इस महानता की राजनीति करके भारत की इस शोषणकारी व्यवस्था को बदलने से रोकना चाहते हैं कुछ मुट्ठी भर लोग। ताकि जाति और आर्थिक शोषण को बरकरार रखा जाए। इसलिए जिस देश को हमने देखा ही नहीं उस पाकिस्तान को दुश्मन बनाया जाता है।

भारत में RSS का एक राष्ट्रवाद पैदा हो रहा था। जो इटली के तानाशाह मुसोलिनी से प्रभावित था। मुसोलिनी ने इटली को फर्जी ताकतवर बनाने के नाम पर युद्ध का उन्माद पैदा किया। इसलिए यह जो मजदूर युद्ध का विरोध करते हैं, यह जो बुद्धिजीवी छात्र युद्ध का विरोध करते हैं यह इटली को कमजोर बना रहे हैं। मुसोलिनी ने हजारों ट्रेड यूनियन नेताओं बुद्धिजीवियों छात्रों को फांसी दे दी। राष्ट्रवाद और देशप्रेम में फर्क है। राष्ट्रवाद प्रतीकों की बात करेगा।

ताकतवर राष्ट्र, झंडे, भारत माता, सेना की बात करेगा लेकिन सैनिक की बात नहीं करेगा। यदि कोई सैनिक कहेगा कि दाल पतली मिल रही है तो उस सैनिक को नौकरी से निकाल दिया जाएगा। RSS का मुख्यालय नागपुर में है। नागपुर विदर्भ में है जहां सबसे ज्यादा किसान आत्महत्या कर रहे हैं। आपने कभी सुना है कि मोहन भागवत ने कभी किसानों पर बोला हो, ऐसे सभी छात्रों आदिवासियों की बात किया हो? जबकि देश प्रेम व राष्ट्र का मतलब है हमारे चारों तरफ के छात्र, नौजवान, किसान, मजदूर, आदिवासी लोग, पर्यावरण, पहाड़, नदिया जंगल, यह सारा देश है। इनसे जरूर प्यार करना चाहिए।

जहां मैने काम किया है वहां की बात करते है। हमारे देश की सेनाएं सबसे ज्यादा कहां पर हैं? आदिवासी क्षेत्रों में। क्या करने गई है? वहां जंगल पहाड़ों नदियों आदिवासियों की रक्षा करने? नहीं वहां वह जमीनों, खनिजों, नदियों, पहाड़ों को कब्जा करने गई है। गरीबों के लिए नहीं बल्कि मुट्ठी भर अमीरों के लिए। हमारे देश में एक युद्ध चल रहा है वह कोई आधा अधूरा नहीं बल्कि पूर्ण युद्ध है। जहां सेनाएं, बंदूकें, हवाई जहाज, बम है। इस युद्ध में हत्याएं,बलात्कार होते हैं। जेलें भरी हैं खचाखच। दुनिया में 62 देशों से आदिवासियों का सफाया कर दिया गया है। अमेरिका में छह करोड़ तथा कनाडा न्यूजीलैंड ऑस्ट्रेलिया में आदिवासियों को मार दिया गया। आज भारत में आदिवासियों को मारने पर कैस इनाम दिया जा रहा है। बस्तर में साढे 600 गांव को जला दिया गया है।

मुस्लिम आतंकवाद का हौवा सिर्फ RSS ने नहीं खड़ा किया बल्कि कांग्रेस के राजीव गांधी के समय में ही जब दुनिया में पूंजीवाद आ रहा था अपने विकराल रूप में। तब टाडा, पोटा, मकोका कानून बनाकर के 95% तक मुसलमानों को जेल में डाला गया। जिसमें 98% तक निर्दोष साबित हुए बाद में। यह हौवा कांग्रेस ने खड़ा किया। जिसमें समाजवादी,BSP सारी पार्टियों ने वैसा ही किया। क्योंकि पूंजीवाद आ रहा था और लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा फेल होने लगी थी। सरकारों को समझ में आ गया था कि अब हम नौजवानों को रोजगार, शिक्षा नहीं दे सकेंगे। तब हम राज कैसे करेंगे!

आजादी के बाद कोई मुस्लिम संप्रदायिकता नहीं थी। देश में फर्जी तरीके से यह खड़ा किया गया है। मोदी तो सिर्फ फसल काट रहा है। फांसीवाद केवल एक पार्टी का सवाल नहीं है। अब यह एक पूरा अर्थनीति,समाजनीति,राजनीति का सवाल है।

भाजपा चली जाएगी तो फांसीवाद चला जाएगा ऐसा नहीं है। यह ऐसे ही चलता रहेगा इसलिए इस से लड़ने का कोई दूसरा ही रास्ता है। इसलिए स्त्री पुरुष समानता, आदिवासियों, दलितों, छात्र नौजवानों के रोजगार के लिए मजदूरों किसानों के लिए फांसीवाद को हराने के लिए आप अंबेडकरवादी हो, गांधीवादी हो, मार्क्सवादी हो या बूद्ध, मोहम्मद, महावीर किसी को मानने वाले हो सभी साथ आइये। एक ऐसी दुनिया बनाएं जिसमे युद्ध ना हो, लूट ना हो, अहिंशा हो।"

दूसरे मुख्य वक्ता के रूप में दस्तक पत्रिका के संपादक मानवाधिकार कार्यकर्ता सीमा आजाद ने कहा कि

"फांसीवाद है कि नहीं है? कैसा है? यह जानने के लिए हम इसी रूप में देखते हैं कि पूंजी कहां पर कैसे दमन कर रही है। इसमें दो बातें हैं। एक तो जो दमन का तरीका है उस दमन को लाने वाली कौन सी व्यवस्था है। तब हम देखते हैं कि इस देश की अपनी खास पहले से चली आ रही एक फासिस्ट व्यवस्था है मनुवादी व्यवस्था। उसी को माध्यम बनाकर आ रही है और हमारे देश में मनुवाद फासीवाद को जोर-शोर से अपने कंधों पर हल्ला मचाते हुए लाया है। इसको अगर हम नजरअंदाज कर देंगे तो, जैसा बहुत लोगों ने कहा हम लड़ाई को भटका देंगे लेकिन हम यह कहते हैं कि हमारे देश में उसी मनुवादी फासीवाद के कारण जनवाद की लड़ाई आधी रह गई है।

इसीलिए हम लोग कहते हैं कि हमारे देश में जो क्रांति होगी वह नवजनवादी क्रांति होगी। अभी महिलाओं को, दलितों को, अल्पसंख्यकों को जनवादी अधिकार नहीं मिला है। जब हम वर्गीय ध्रुवीकरण की बात करते हैं तो हम इस जनवाद को कैसे छोड़ सकते हैं।

दूसरी बात है साम्राज्यवाद अपने वाहक के रूप में उन्हीं को चुनने जा रही है। इसलिए जो लोग सोचते हैं कि फांसीवाद को धक्का देने के लिए कांग्रेस को जीता देंगे। क्या आप यह सोचते हैं कि भाजपा 31 प्रतिशत वोट के साथ जनता के बल पर आ गई है? भाजपा पर बहुत सारे कारपोरेट ने इजारेदारी पूंजी निवेश किया है। वह झगड़ा अब खुल्लम-खुल्ला सामने आ रहा है। जब 2 दिन पहले जुकरबर्ग ने Facebook द्वारा ट्रंप का प्रचार किया, की बात सामने आई। आखिर यह जुकरबर्ग होते कौन हैं? यह पूंजी का हिस्सा है। किस में पूंजी लगाकर वोट का ध्रुवीकरण करना है।

आज महिलाओं को सभा में देख कर अच्छा लग रहा है। क्योंकि उन पर फांसीवाद का दमन ज्यादा है। आगे आने वाले दिनों में यह महिलाएं और आगे आएंगी। महिलाओं पर दमन का एक उदाहरण है हादिया का मामला जिसमें एक 24 वर्ष की लड़की अपनी पसंद से हिंदू लड़के से शादी करती है। तो कोर्ट कहती है कि लड़के ने उसे बरगलाया है। आखिर यह किस तरह का जनवाद है। जो उसके ऊपर एनआईए की जांच बैठता है।

दूसरा उदाहरण है बीएचयू की लड़कियों का मामला जहां उनको लाइब्रेरी में पढ़ने का अधिकार नहीं है। 7:00 बजे हॉस्टल के गेट बंद कर दिए जाते हैं। इसको लेकर उन्होंने आंदोलन भी किया और कोर्ट भी गए। सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा कि हम सुरक्षा नहीं दे सकते हैं इसलिए बाहर जाने की इजाजत नहीं है। आखिर यह कैसा जनवाद है? यह खुल्लम-खुल्ला जनवाद का उल्लंघन है कि लड़कियां लाइब्रेरी में नहीं पढ़ सकती हैं। यह हमें दिखा रहा है कि पूंजीवादी जनवाद भी लागू नहीं है।

ये जो साम्राज्यवादी पूंजी का एकाधिकारी रूप है वह केवल पूंजी तक ही सीमित नहीं रहता है। जैसा समाज रहेगा, हमारे समाज में जब वह बात करता है तो वह एक वर्ण की बात करता है, एक ही राष्ट्र रहेगा, आगे बढ़कर एक ही धर्म रहेगा और उसके आगे बढ़कर एक ही जाति रहेगी और उससे भी आगे बढ़कर एक ही जेंडर रहेगा। वह लोगों के जनवाद पर इस तरीके से हमला करता है जो कमजोर है उसको लगातार किनारे करता जाता है। क्योंकि हमारे देश में ब्राह्मणवादी मनुवादी पूंजीवाद है इसलिए यह करना बहोत आसान हो जाता है। माओ ने कहा है कि हजारों फूलों को खिलने दो सैकड़ों विचारों को झिलमिलाने दो। असली लोकतंत्र यह है। यह नहीं की एकाधिकारी सत्ता स्थापित करें और एक राष्ट्र, एक जेंडर, एक धर्म, एक समुदाय, एक वर्ग ही सत्ता में रहेगा और बाकी बाहर हो जाएंगे। इसलिए इस एक एकाधिकारी पूंजी से लड़ने के लिए इसको तोड़ना पड़ेगा। इस लूट और पूंजी के व्यवस्था को छोड़कर इंसान के लिए और इंसान की जरूरतों के आधार पर समाज व्यवस्था का निर्माण करना पड़ेगा। अगर समाजवाद बोलने में किसी को प्रॉब्लम है तो वह कुछ और बोल ले। अगर यह समझदारी नहीं होगी तो हम फांसीवाद को नहीं हरा सकते हैं।

आज का कार्यक्रम इस की पहली सीढ़ी है। इतने सारे लोग, इतने सारे संगठन, इतनी सारी बहसें इस बात की निशानी है कि हम पहले चरण में सफल हुए हैं और हमने यह चुनौती स्वीकार कर लिया है। फासीवाद को टक्कर देने के लिए हम आगे एकजुट है और तैयार हैं।"

उत्तराखंड से आए पान सिंह ने भी शुभकामनाएं दी। इसके बाद डॉ. असीम सत्यदेव, गिरिजेश तिवारी, भीम आर्मी के सागर,इलाहाबाद के छात्रनेता रितेश विद्यार्थी व दिनेश चौधरी,मजदूर किसान एकता मंच के कन्हैया कुमार, रिहाई मंच से सलीम, डॉ. अरविंद समेत विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों व व्यक्तियों ने अपनी बात रखी। साथ ही साथ बीच बीच मे विशम्भर ओझा,बीसीएम के साथियों व अन्य लोगो द्वारा गीत गजल होते रहे।

अध्यक्षीय व्यक्तव्य देते हुए लोक जनवादी मंच के अध्यक्ष डॉ. कन्हैया लाल यादव ने कहा कि "यह कार्यक्रम और फ़ासीवाद विरोधी मोर्चा के गठन का कदम सराहनीय है। और मैं पूरे आज़मगढ़ की तरफ से प्रतिनिधित्व करते हुए कहता हूं कि आज़मगढ़ की जनता हमेसा साथ खड़ी हुई है और खड़ी रहेगी।"

11:00 बजे से शुरू और 5:00 बजे तक चले इस कार्यक्रम में लोग हाल भर जाने के बाद भी खड़े होकर धैर्य पूर्वक सुनते रहे और तालियों के साथ अपना जोश भी प्रदर्शित करते रहे । कार्यक्रम का अंत मे वित्तीय रिपोर्ट प्रस्तुत किया गया। जोरदार नारों के साथ समापन किया गया। कार्यक्रम में कुछ प्रस्ताव लिए गए जो इस प्रकार है:

1.मजदूर किसान व कर्मचारी वर्ग के आजीविका व जनवादी अधिकारों पर राज्य व मनुवादी हिंदुत्व फांसीवाद द्वारा क्रूर हमले का मोर्चा विरोध करेगा।

2.जल-जंगल-जमीन खनिज संपदाओं के अंधाधुंध दोहन के खिलाफ और उसकी रक्षा में संघर्षरत आदिवासी जनता पर फांसीवादी क्रूर हमले का विरोध करेगा।

3.62 विश्वविद्यालयों को निजी करने की साजिश के खिलाफ और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के शिक्षकों व शिक्षार्थियों के विरोध प्रदर्शन पर 23 मार्च के क्रूर दमन का कड़े शब्दों में निंदा किया जाता है।

4.भीम आर्मी के युवा नेता चंद्रशेखर आजाद को जेल में बंद रखने के खिलाफ और उनकी रिहाई के लिए संघर्ष किया जाएगा।

5.बलिया के श्रीनगर में दलितों पर मनुवादी राजपूतों द्वारा हमला, जजौली में रेशमी देवी को राजपूत जाति के सूदखोर द्वारा जलाए जाने के खिलाफ और एक दलित व्यक्ति को गले मे गायचोर की तख्ती लगाकर सर मुड़वाकर बस्ती में घुमाए जाने के खिलाफ प्रस्ताव।

6.लेनिन, पेरियार व डॉक्टर अंबेडकर की मूर्तियों पर हमले के खिलाफ और आजमगढ़ के राजा पट्टी गांव के डॉक्टर अंबेडकर की मूर्ति को क्षतिग्रस्त करने पर स्थानीय नेता रामअवध राम को विरोध के कारण जेल में बंद करने के खिलाफ प्रस्ताव।

7.महिलाओं के जनवादी अधिकारों पर, लव-जिहाद व रोमियो स्क्वायड के नाम पर हमले के खिलाफ प्रस्ताव।

8.मुस्लिमों के मांस कारोबार को ध्वस्त करने व किसानों के पशु व्यवसाय को नाश करने के लिए बूचड़खानों पर प्रतिबंध। जिसके कारण किसानों की खेती पर और शहरों में लोगों के जान माल पर आवारा पशुओं का अनियंत्रित हमला बढ़ गया है। इसके खिलाफ प्रस्ताव।

9.बलिया में 20 मार्च को फूलन सेना के द्वारा जारी आमरण अनशन पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज और 12 लोगों की गिरफ्तारी के खिलाफ प्रस्ताव।

10.कासगंज में तिरंगा यात्रा के नाम पर 26 जनवरी को मुस्लिम बस्ती पर मनुवादी हिंदुत्व शक्तियों के हमले के खिलाफ प्रस्ताव।

11.शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ व उत्तर प्रदेश में 10 से कम संख्या वाले प्राथमिक विद्यालयों को बंद करने के खिलाफ प्रस्ताव।

12.शिक्षा व स्वास्थ्य निशुल्क तथा समान रूप से सबको उपलब्ध कराने के लिए प्रस्ताव।

13.रोजगार को मूलभूत अधिकार बनाने के लिए प्रस्ताव।

(-शैलेश की विज्ञप्ति)

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