रांची से विशद कुमार, 11 मार्च 2021. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी (Former Jharkhand Chief Minister and BJP Legislature Party leader Babulal Marandi) द्वारा पिछले दिनों आरएसएस से जुड़ी जनजाति सुरक्षा मंच से कहा गया कि "आदिवासी जन्म से ही हिंदू हैं, और जो यह नहीं मानते हैं, उनके जनजाति का लाभ खत्म हो।"
बाबूलाल के इस बयान पर आदिवासी समाज में काफी प्रतिक्रिया हो रही है। सोशल मीडिया पर आदिवासी समाज का युवा वर्ग बाबूलाल के इस बयान से काफी आक्रोशित हैं वहीं आदिवासी समाज के अगुआ, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक लोग भी काफी आक्रोशित हैं।
अपनी प्रतिक्रिया में जहां बिहार विधानसभा के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय आदिवासी इंडिजिनियस धर्म समन्वय समिति के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य देवेंद्र नाथ चंपिया ने बाबूलाल मरांडी के इस बयान की निंदा की और कहा कि इस प्रकार के बेतुके बयान देकर बाबूलाल आदिवासी समाज को दिग्भर्मित करने का काम कर रहे हैं। वहीं आदिवासी सेंगेल अभियान (ASA) / झारखंड दिशोम पार्टी ( JDP ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने एक प्रेस बयान जारी कर कहा है कि बाबूलाल मरांडी का यह बयान कि "आदिवासी जन्म से हिंदू हैं"। गलत है, भ्रामक है, अपमानजनक है, आदिवासी समाज के लिए खतरे की घंटी है।
उन्होंने आगे कहा कि sc-st अटरोसिटीज एक्ट 1989 (sc st atrocities act 1989 in hindi- THE SCHEDULED CASTES AND THE
उन्होंने आगे कहा कि आदिवासी सेंगेल अभियान और झारखंड दिशोम पार्टी इस मनुवादी षड्यंत्र के खिलाफ राष्ट्रव्यापी विरोध सप्ताह का आह्वान करती है। हम 11 मार्च 2021 से 17 मार्च 2021 तक भाजपा और आर एस एस का पुतला दहन कर विरोध दर्ज करेंगे। बाबूलाल मरांडी के पीछे मोहन भागवत, नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा का हाथ है। बाबूलाल मरांडी के साथ उक्त चारों आदिवासी विरोधियों का पुतला दहन कर राष्ट्रव्यापी विरोध दर्ज किया जाएगा। आशा है बाकी सभी आदिवासी संगठन इसमें सहयोग करेंगे।
उन्होंने कहा कि भारत के आदिवासी आर्य नहीं हैं। वे अनार्य हैं। हिंदू धर्म और संस्कृति आर्यों की देन है, जबकि भारत के आदिवासी आर्यों के पूर्व से भारत में निवास करते रहे हैं। आदिवासी आर्यन नहीं बल्कि द्रविड़ या ऑस्ट्रिक भाषा समूह के लोग हैं। आदिवासियों की भाषा- संस्कृति, इतिहास आर्यों ( हिंदू ) से भिन्न है। आदिवासी मूर्ति पूजक नहीं, प्रकृति पूजक है। आदिवासी के पूजा पद्धति, सोच संस्कार, पर्व त्यौहार आदि सभी प्रकृति से जुड़े हुए हैं। आदिवासी प्रकृति को ही अपना पालनहार मानते हैं। आदिवासी प्रकृति का दोहन नहीं, पूजा करते हैं। आदिवासियों के बीच ऊंच-नीच और वर्ण व्यवस्था नहीं है। दहेज प्रथा भी नहीं है। आदिवासियों का जन्म, शादी विवाह, श्राद्ध, पर्व त्यौहार आदि हिंदू विधि, रीति- रिवाज से नहीं। बल्कि बिल्कुल आदिवासी विधि व्यवस्था से आदि काल से चला आ रहा है। आदिवासियों के बीच स्वर्ग-नरक की परिकल्पना नहीं है। वे अपने मृत पूर्वजों की आत्मा को अपने बीच रखते-पाते हैं। आदिवासी अभी भी हिन्दू कानून के अधीन नहीं हैं।
पूर्व सांसद ने कहा कि आदिवासी भारत के असली मूलवासी या इंडीजीनस पीपुल हैं, जबकि बाकी आर्यन बाहर से पधारे हैं। सिंधु घाटी सभ्यता को नष्ट करते हुए अनार्यों पर हमला कर भारत पर कब्जा जमाया है। अब आरएसएस आदिवासियों को वनवासी, वनमानुष बनाने पर उतारू है। ASA और JDP झारखंड, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, असम में संगठित रूप से कार्यरत है। अतः इस मुद्दे पर सर्वत्र आरएसएस / बीजेपी का विरोध सप्ताह दर्ज करेगी। ताकि भारत के जनमानस को पता चले कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं न थे।
भारत में 2021 का वर्ष जनगणना का वर्ष है। हम भारत के अधिकांश आदिवासी अब तक प्रकृति पूजक हैं। अतः सरना धर्म या अन्य विभिन्न नामों से अपनी धार्मिक अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी और एकता को बचाए रखने के लिए कटिबद्ध है। अपनी धार्मिक पहचान के साथ जनगणना में शामिल होना हमारा अधिकार है। मगर बीजेपी/ आरएसएस हमारे मौलिक अधिकार (फंडामेंटल राइट), मानवीय अधिकार (ह्यूमन राइट्स) और आदिवासी अधिकार ( इंडिजेनस पीपल राइट्स - यूएन ) को दरकिनार कर जबरन हमें हिंदू बनाने पर उतारू है। जबकि झारखंड सरकार और बंगाल सरकार ने आदिवासियों की धार्मिक मांग- सरना धर्म कोड का अनुशंसा कर दिया है। परंतु भाजपा और आर एस एस ने अब तक इस मामले पर चुप्पी साधकर आदिवासी विरोधी, सरना धर्म विरोधी होने का प्रणाम प्रस्तुत कर दिया है। जो भारत के लगभग 15 करोड़ आदिवासियों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। लगता है BJP / RSS बाकि बचे दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़ों को जबरन अपना गुलाम बनाकर छोड़ेगी।