ज्योतिष और धर्मग्रन्थ की जरूरत नहीं है। हम देश को 50 साल से अमेरिका बना रहे थे। अमेरिका बनने पर क्या होता है, अपढ़ अधपढ, कुपढ लोग नहीं समझेंगे। गरीब और मेहनतकश बहुजन पैदल सेना की समझ से भी बाहर की चीज है इतिहास, भूगोल, विज्ञान और अर्थ शास्त्र की यह कवायद।
बहरहाल अमेरिका का इंद्रप्रस्थ माया और इनका सभ्यता की लाशों पर खड़ी है। सिंधु सभ्यता से भले हिंदु, हिंदुस्तान हो गए, भारत विभाजन के बाद भव्य धर्मस्थलों की हिंसा और नफरत के जहरीले वर्तमान के बदले मृत है भारत का इतिहास, भूगोल, दर्शन, लोक। मृत है मातृभाषा और अर्थव्यवस्था। बाजार में घर फूंकने की दंगाई भीड़ को अतीत और वर्तमान से कोई लेना देना नहीं होता।
भूगोल और इतिहास, विज्ञान और ज्ञान परम्परा की परवाह नहीं है तो मदहोश उपभोक्ताओं की ज़िन्दगी सिर्फ साकी और जाम है। दिलोदिमाग कांच की किरचों की तरह बिखर गया है। राजनीति में होलटाइमर हैं, फिर भी राजनीति समझते नहीं है। जोड़ घटाव कर लिए कैलकुलेटर की जगह हर हाथ नें मोबाइल है। सूचना और ज्ञान के लिए इंटरनेट मोबाइल है।
तर्क बुद्धि और विवेक हैं भी तो सम्वेदनाएँ मृत हैं।
फिरभी अमेरिका के ताजा हालात से अपने भविष्य को बांच सकें तो बांच लीजिए।
डॉ पार्थ बनर्जी ने न्यूयार्क से लिखा है
"U.S. Stocks Have Their Best Month Since 1987." - NYT, April 30. Oh yes, BTW, we also have 30 million Americans unemployed. We have 60,000 dead, and one million infected. But hey...sh*t happens, right? Now, if you ask me how is it possible that so many innocent people are
लॉक डाउन लम्बा चलेगा। कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा। इसीलिए मजदूरों और प्रवासियों को निकालने की कवायद। सेना प्रमुखों की बैठक बहुत खास है। बैंड और रोशनी के बहाने सेना को कानून व्यवस्था सम्भालने के लिए तैयार रखा जा रहा है।
मजदूर दिवस की रस्म अदायगी हो गयी।
मजदूरों की रोज़ी रोटी का कोई इंतजाम नहीं हुआ।
घर लौटने के बाद खिलाने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं।
शहरों से बेदखल करोड़ों लोग खाएंगे क्या?
अर्थ व्यवस्था खोलने की कोई दिशा नहीं है।
संक्रमितों की पहचान नहीं है।
न जांच है और न गम्भीर बीमारियों का इलाज।
डॉक्टरों और नर्सों और पुलिस के भरोसे आपदा कानून धारा 188 के दम पर कोरोना को खत्म कर देंगे तो क्यों सेना के तीनों प्रमुखों की बैठक बुलाई गई?
रेल और परिवहन को खोले बगैर ग्रीन जोन में क्या बनाएंगे, क्या बेचेंगे?
औद्योगिक इकाइयों के लिये कच्चा माल किधर से आएगा, किधर से किसको तैयार माल की खपत होगी?
बाजार खुलेगा तो शराब जरूर खरीदेंगे लोग, नशे की मजबूरी में परिजनों को मौत की नींद सुलाना आम है।
जनधन खाता और एकमुश्त खैरात पूंजीपतियों को दी जा रही नकदी, कर्जमाफी, टैक्स हॉलिडे, या लगातार दिया जा रहा पैकेज नहीं है कि जरूरी चीजों के लिए मर खप रहे लोग गैर जरूरी चीजें खरीदने के लिए उमड़ पड़े।
मंडी का आलम यह कि एक गाड़ी बिक नहीं रही। टाटा, बजाज, अशोका लेलैंड, महेंद्र सब आक्सीजन पर या वेंटिलेशन में हैं।
पानी से सस्ता तेल की कीमत न घटाकर और ऐसे ही कुछ खास कदम उठाकर खजाना और शेयर बाजार के इस्तेमाल, बैंक, पीएफ, एलआईसी, जैसे सार्वजनिक संस्थाओं को चूना लगाकर। कर्मचारियों की छंटनी, नई श्रम संहिता और मनु संहिता से संविधान और कानून को तक पर रखकर खास चहेते दोवालिया हो गए एकाधिकार करपोटेट को बचाने की कवायद हो रही है।
कृषि उत्पादन पहले से संकट में हैं और गांव और किसान का कत्लेआम हो रहा है।
चालीस करोड़ मजदूरों की दिहाड़ी छीन गयी।
सरकारी कर्मचारी अब संविदा पर हैं।
जिनका वेतन काटा जा रहा है। इंक्रीमेंट रोकी जा रहा है।
डॉक्टर और पुलिस पर धारा 188 के तहत जुल्म, कोरोना से लड़ने के हथियार मांगने पर कार्रवाई। वेतन, इंक्रीमेंट में कटौती, विधर्म नहीं, उम्र और बीमारी का लिहस्ज नहीं। टीए डीए नहीं।
दिसम्बर से पहले वैक्सीन नहीं आ रहा।
वैक्सीन संक्रमण न हो इसलिए, प्लाज्मा का इलाज भी संदिग्ध।
ग्रीन जोन को ग्रीन जोन से कैसे जोड़ेंगे?
हर जिले, हर राज्य की सीमा अब बाघा बार्डर है। दुश्मन फेस की तरह सीमा सील।
ट्रेन नहीं, बस नहीं। ओला और उबेर से गांव के लोग कहां जाएंगे?
अमेजन से सामान कैसे मंगाएंगे? पैसा कौन देगा? डिलीवरी कैसे होगी?
तब्लीगी पर आरोप है कोरोना फैलाने का।
अब नांदेड़ के मामले में क्या कहेंगे?
गाहे बगाहे गैर मुस्लिम धर्म स्थलों और उत्सवों पर जमा भीड़ पर क्या कहेंगे?
आज सवेरे एक मछलीवाला कह रहा था कि मुसलमान नहीं होते तो कोरोना न फैलता।
क्या अमेरिका के खिलाफ भी पाकिस्तान और मुसलमानों की साजिश है।
तब देशों में क्या सारे मुसलमान खुदकशी कर रहे हैं?
बांग्लादेश, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, तुर्की, मलेशिया और अफ्रीकी देशों में?
क्या चीन में, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया, इंग्लैंड, फ्रांस। स्पेन, इटली, जापान और ऐसे तमाम देशों में मुसलमान ही कोरोना फैला रहे हैं?
तमाम तरह के फ्लू, मलेरिया, प्लेग, चेचक, हैजा के पीछे भी मुसलमान और पाकिस्तान हैं?
तो दुनिया भर में हिन्दू तो सिर्फ भारत में हैं, इस पर भी मुसलमानों की कारस्तानी से क्यों मर रहे हैं मुसलमान, अश्वेत, गरीब और मेहनतकश लोग?
बंगाल और चीन की भुखमरी के लिए मुसलमान जिम्मरदार थे?
1919 में पाकिस्तान या बांग्लादेश नहीं बने थे तो क्यों दुनिया भर में 6 करोड़ और अकेले भारत में एक करोड़ लोग मारे गये थे?
आम लोगों की क्या कहें, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री सन्यासी योगी आदित्यनाथ आरोप लगा रहे हैं कि मुसलमान जान बूझकर कोरोना फैला रहे हैं।
नफरत और घृणा के इस राजकाज का नाम हिंदुत्व है।
पहाड़ों में ग्रीन जोन खूब हैं। रोज़ी रोटी का इंतज़ाम हो न हो, शराब का इंतज़ाम कर दिया। चीन में अफीम दिया जाता था। भारत के महान लोग चीन को अफीम भेजकर मालामाल हुए। इस दौर में वे आवाज़ें खामोश हैं जो कहती थी, नशा नहीं रोज़गार दो।
पहाड़ हो या मैदान, शिक्षा, चिकित्सा, रोजी, रोटी किसी को नहीं चाहिए, सबको नशा चाहिए।
नशा के कारोबारी हमारे जनप्रतिनिधि हैं।
हमारा यह शराब लोकतंत्र हमारी संस्कृति और पहचान को खूब मजबूत कर रही है। मजबूत हो रही पितृसत्ता जिसके तहत स्त्री शूद्र, बिकाऊ उपभोक्ता सामग्री है और बच्चे गुलाम।
यही मनुस्मृति है।
पहाड़ की जनता आर्य नहीं है लेकिन पहाड़ मनुस्मृति का सबसे मजबूत उपनिवेश है और पूंजी का ऐशगाह और आखेट क्षेत्र, जिसे देवभूमि कहते हैं।
बधाई की सुरापान के स्वर्ग में हम कलिकाल के देव देवी हैं। पृथ्वी और मनुष्यता बचे या नहीं, हमारा देवत्व सूरा की तरह अजर अमर है।
टीवी के अलावा सूचना और जनमत का कोई माध्यम बचा नहीं है। तकनीक ने ज्ञान विज्ञान,विवेक, बुद्धि, सामान्य ज्ञान और अंतश्चेतना, मनुष्यता, सभ्यता, इतिहास, विचारधारा, मातृभाषा, साहित्य, कला, धर्म संस्कृति की हत्या कर दी है।
हर तरफ नफरत और हिंसा की फसल लहलहा रही है।
फ़िज़ा जहरीली हो गयी है।
दिलों में मुहब्बत है नहीं।
दिमाग बेइंतहा हवस से बेकाबू है।
क्या हम किसी सभ्य समाज में हैं,?
क्या हमारा कोई देश है?
नागरिकों को नफरत और हिंसा, दुष्प्रचार का शिकार बनाने वाली यह कौन सी देशभक्ति है?
क्या भगवा रंग के अलावा सारे रंग फौजी बूटों और संगीन से मिटा दिए जाएंगे?
क्या चाँद, सूरज, अंतरिक्ष,समुंदर, नदियां, पहाड़, रोशनी, हिम शीत ग्रीष्म वसन्त सब हिन्दू मुसलमान है?
उत्तराखण्ड से सटे बरेली, रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मेरठ, गाज़ियाबाद, नोएडा और पूरी दिल्ली रेड ज़ोन है। ग्रेन ज़ोन वाले उत्तराखण्ड के हिस्से में अर्थव्यवस्था खोलने का मतलब रेडजोने के बाघा बॉर्डर में कैद बेरोज़गार लोगों के लिए शराब की दुकानें खोलने के सिवाय और क्या है?
देश का विकास महानगरों और राजधानियों तक सीमित हैं। किस्म -किस्म के नेता बुद्धिजीवी परजीवी चूहों के सारे सुरक्षित बिल वहीं हैं तो रोज़ी रोटी भी वहीं कैद हैं। वे सारे के सारे रेड जोन हैं।
बाकी पूरा देश भी ग्रीन ज़ोन हो जाये तो अर्थव्यबस्था किस सुरंग में खुलेगी?
मजदूर दिवस मनाने वाले कामरेडों से सवाल है कि मजदूर आंदोलन और मजदूरों किसानों के हक़ हक़ूक़ के खात्मे के बाद यह रस्म अदायगी जरूरी थी, थाली ताली दिया रोशनी फूल और बन बाज़ की तरह?
पलाश विश्वास
बसंतीपुर
दिनेशपुर
कार्यकारी संपादक प्रेरणा अंशु,