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ARTICLE BY DR PUNIYANI IN HINDI - VIRUS OF HATE

समाज के कमज़ोर वर्गों के मानवाधिकारों के उल्लंघन और उनके खिलाफ हिंसा के पीछे अक्सर बेबुनियाद धारणाएं होतीं हैं. भारत में सन 1980 के दशक के बाद हुई कई घटनाओं से मुसलमानों के बारे में गलत धारणाएं (Misconceptions about Muslims) बनीं और उनके प्रति नफरत का भाव (Hate towards Muslims) पैदा हुआ. वैसे तो स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान उभरी सांप्रदायिक राजनीति के चलते  मुसलमानों के बारे में नकारात्मक सोच ने काफी पहले हमारे समाज में जडें जमा ली थी. तब से हालात बिगड़े ही हैं. मुसलमानों के दानवीकरण का कोई मौका हाथ से जाने नहीं दिया जा रहा है. चाहे वह रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद हो या पवित्र गाय का मुद्दा - हर मसले, हर विवाद का इस्तेमाल मुसलमानों के खिलाफ वातावरण बनाने के लिए किया जाता है. कोरोना वायरस के मुद्दे का प्रयोग भी इसी के लिए किया जा रहा है.

इस तरह की राष्ट्रीय आपदा से निपटने के लिए हमें एक होने की ज़रूरत है. परन्तु सांप्रदायिक तत्त्व - जिनमें ‘गोदी मीडिया’ शामिल है - इस त्रासदी के बीच भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं, इनकी भूमिका घोर निंदनीय है.

मीडिया के एक बड़े हिस्से का पूर्वाग्रहपूर्ण रवैया स्पष्ट देखा जा सकता है. ऐसा बताया जा रहा है मानो भारत में कोरोना संक्रमण के प्रसार के लिए दिल्ली के निजामुद्दीन में स्थित तबलीगी जमात (टीजे) का मरकज़ ही ज़िम्मेदार हो.

यह सच है कि तबलीगी जमात ने ऐसी भूलें कीं जिनके कारण यह रोग फैला परन्तु इसी तरह की गलतियां देश के अनेक संगठनों और यहाँ तक कि सरकारों ने भी कीं.

अगर दस दोषियों में से हम केवल किसी एक को निशाना बनाएं तो क्या यह अनुचित नहीं है? क्या इससे ऐसा नहीं लगता कि हम कुछ हासिल करना चाहते हैं, हमारा कोई गुप्त एजेंडा है? बेशक तब्लीगी जमात को

दोषी करार दें परन्तु साथ ही यह भी बताएं कि अन्यों ने भी यही अपराध किया है.

यह जानलेवा बीमारी चीन से शुरू हुई और जल्दी ही उसने अमरीका, इटली, स्पेन, मलेशिया और कई अन्य देशों को अपनी जकड़ में ले लिया. भारत में इस बीमारी से जिस व्यक्ति की सबसे पहले (12 मार्च को) मौत हुई, वह सऊदी अरब से आया था. गायिका कनिका कपूर कोरोना पॉजिटिव होने के बाद बड़ी संख्या में लोगों के संपर्क में आईं. एक सिक्ख धर्मगुरु भी इस रोग से ग्रस्त होने के बाद हजारों लोगों के बीच गए. तब्लीगी जमात का कार्यक्रम बहुत पहले से तय था और इसके लिए भारत सरकार से सभी आवश्यक अनुमतियां लीं गयीं थीं. कार्यक्रम को इसलिए रद्द नहीं किया गया, क्योंकि उस समय ऐसा लग रहा था कि भारत में इस रोग के फैलने का खतरा बहुत कम है.

On 12th of February, Rahul Gandhi tweeted that the Indian government should take it seriously.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 30 जनवरी को कोरोना को वैश्विक आपातकाल घोषित किया. फरवरी की 12 तारीख को राहुल गाँधी ने ट्वीट कर कहा कि भारत सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए. परन्तु उनका मज़ाक बनाया गया.

मरकज़ का कार्यक्रम 13 से 15 मार्च तक था. इसमें भाग लेने आये विदेशियों की हवाईअड्डों पर स्क्रीनिंग भी नहीं की गई. भारत सरकार ने 13 मार्च को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के प्रवक्ता के जरिये यह घोषणा की कि कोविड 19 भारत के लिए आपातकाल नहीं है.

इसके काफी दिन बाद भारत सरकार अपनी खुमारी से जागी और 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का एलान किया गया. इसके बाद, 24 मार्च से राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई. यह लॉकडाउन केवल चार घंटे के नोटिस पर लागू किया गया. तब्लीगी जमात का कार्यक्रम मीडिया की निगाह में तब आया जब इसमें भाग लेने वाले एक व्यक्ति की कश्मीर और चार की तेलंगाना में मौत हो गई. गोदी मीडिया के एंकर तब तक अंताक्षरी खेलने में व्यस्त थे.

इन मौतों की खबर आते ही गोदी मीडिया ने तब्लीगी जमात को निशाना बनाना शुरू कर दिया. सोशल मीडिया में मुसलमानों को इस रोग के फैलने के लिए ज़िम्मेदार बताया जाने लगा. तरह-तरह की अफवाहें फैलाईं गईं जैसे अस्पतालों में तबलीगी माँसाहारी भोजन की मांग कर रहे हैं, लोगों पर थूक रहे हैं और नर्सों के साथ दुर्व्यवहार कर रहे हैं. इसके परिणाम स्वरूप देश में मुसलमानों के खिलाफ नफरत का भाव पैदा होने लगा. हालात यहां तक पहुँच गए कि एक मुस्लिम महिला को प्रसूति के लिए अस्पताल में भर्ती करने से इनकार कर दिया गया, एक युवक की पिटाई लगा दी गई और एक अन्य को आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया गया. कई आवासीय परिसरों में मुसलमानों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया. इसी तरह की अन्य घटनाएं भी हुईं.

मीडिया का एक तबका कोरोना बम और कोरोना जिहाद (Corona Bomb and Corona Jihad) की बातें करना लगा. यहां तक कि सरकारी विज्ञप्तियों में कोरोना पीड़ितों को दो भागों में बांटा जाने लगा - तब्लीगी जमात और अन्य.

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष डॉ ज़फ़रुल इस्लाम खान (Dr. Zafarul Islam Khan, Chairman of Delhi Minorities Commission) ने सरकार को लिखा,

“कोरोना के मरीजों पर आपके द्वारा जारी किये जा रहे बुलेटिनों में ‘मरकज़ मस्जिद’ का अलग कॉलम दर्शाया जा रहा है. इस तरह के मूर्खतापूर्ण वर्गीकरण से हिन्दुत्ववादी शक्तियों और गोदी मीडिया को देश भर में मुसलमानों को बदनाम करने का एक नया हथियार मिल गया है. विभिन्न इलाकों में मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं, उनके सामाजिक बहिष्कार का आव्हान किया जा रहा है और उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के हरेवाली गाँव में एक लड़के को मार-मार कर अधमरा कर दिया गया.”

The United Nations has also appealed not to classify Corona virus patients on religious or racial grounds.

आज स्थिति यह हो गई है कि सरकारों तक को नफरत के सौदागरों और फेक न्यूज़ के उस्तादों से यह अनुरोध करना पड़ रहा है कि वे बाज आयें. आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, केरल और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों ने लोगों का आव्हान किया है कि वे ऐसी बातें न कहें जिनसे समाज विभाजित हो. संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी कोरोना वायरस के मरीजों का धार्मिक या नस्लीय आधार पर वर्गीकरण न करने की अपील की है.

सच तो यह है कि भारत सरकार ने कोरोना का संक्रमण रोकने के लिए कार्यवाही करने में काफी देर की. कोरोना एक वैश्विक महामारी है जो विभिन्न कारणों से फैल रही है. उसके लिए तब्लीगी जमात को दोषी ठहराना और तब्लीगी जमात को सभी मुसलमानों का प्रतीक बना देना न केवल अतार्किक है वरन राष्ट्रीय एकता और मानवता के विरुद्ध भी है.

-राम पुनियानी

(हिंदी रूपांतरणः अमरीश हरदेनिया)

(लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

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