Hastakshep.com-आपकी नज़र-Babri Masjid-babri-masjid-Construction of Ram temple in Ayodhya-construction-of-ram-temple-in-ayodhya-Ram Janmabhoomi and Buddhist Antiquities-ram-janmabhoomi-and-buddhist-antiquities-अयोध्या में राममंदिर का निर्माण-ayodhyaa-men-raammndir-kaa-nirmaann-बाबरी मस्जिद-baabrii-msjid-मंदिर वहीं बनाएंगे-mndir-vhiin-bnaaenge-रामजन्मभूमि और बौद्ध पुरावशेष-raamjnmbhuumi-aur-bauddh-puraavshess-राष्ट्रवाद-raassttrvaad

ARTICLE BY DR RAM PUNIYANI IN HINDI - BUDDHIST REMAINS IN AYODHYA

Babri Masjid, Ram Janmabhoomi and Buddhist Antiquities

इस समय देश में तालाबंदी है. कारखाने बंद हैं, निर्माण कार्य बंद हैं और व्यापार-व्यवसाय बंद हैं. परन्तु अयोध्या में राममंदिर का निर्माण (Construction of Ram temple in Ayodhya) चल रहा है. इसकी राह उच्चतम न्यायालय ने प्रशस्त की थी. अदालत के इस निर्णय पर समुचित बहस नहीं हुई क्योंकि ‘मुस्लिम पक्ष’ ने पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि फैसला चाहे जो हो, वह उसे स्वीकार करेगा. ‘हिन्दू पक्ष’, जिसमें आरएसएस और उसकी संतानें शामिल हैं, का पुराना नारा था ‘मंदिर वहीं बनाएंगे. उच्चतम न्यायालय ने विवादित भूमि के स्वामित्व के मुद्दे पर विस्तार से विचार नहीं किया. इससे पहले, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हिन्दुओं की इस ‘आस्था’ को प्रधानता दी थी कि भगवान राम का जन्म ठीक उसी स्थान पर हुआ था जहाँ बाबरी मस्जिद स्थित थी और उसने भूमि को तीन भागों में बाँट दिया था. पहले इस ज़मीन पर सुन्नी वक्फ बोर्ड का कानूनी कब्ज़ा था. हिन्दू राष्ट्रवादियों के लिए और अच्छी खबर यह थी कि सरकार ने राम मंदिर के निर्माण का काम अपने हाथों में ले लिया.

भाजपा के अमित शाह ने कहा कि अयोध्या में राम का विशाल और भव्य मंदिर बनाया जायेगा, जिसका शिखर आसमान से बातें करेगा. मंदिर के निर्माण का काम 11 मई को शुरू हुआ और वहां अभी ज़मीन का समतलीकरण किया जा रहा है.

विहिप के प्रवक्ता विनोद बंसल के अनुसार, समतलीकरण के दौरान कई तरह के अवशेष मिल रहे हैं जिनमें “पुरातात्विक महत्व के अवशेष जैसे पत्थर के बने फूल, कलश, आमलक, दोरजांब इत्यादि शामिल हैं. इनके अतिरिक्त सात ब्लैक टचस्टोन के स्तंभ, आठ लाल सैंडस्टोन के स्तंभ, पांच फीट आकार का एक शिवलिंग और देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियाँ भी मिलीं हैं.”

उनके इस बयान पर दो तरह

की प्रतिक्रियाएं सामने आईं हैं. कुछ लोगों ने वामपंथी इतिहासविदों, विशेषकर रोमिला थापर और इरफ़ान हबीब, पर देश को भ्रमित करने और बाबरी मस्जिद का विवाद खड़ा करने का आरोप लगाया है.

के.के. मोहम्मद नामक एक पुरातत्ववेत्ता ने दावा किया कि जो अवशेष मिले हैं, वे किसी मंदिर का भाग थे. ट्विटर पर थापर और इरफ़ान हबीब जैसे लब्धप्रतिष्ठित और प्रतिभाशाली इतिहासविदों पर जम कर भड़ास निकाली गई और मुस्लिम शासकों को मंदिरों का विध्वंसक बताया गया.

परन्तु इस मामले में जो दूसरी प्रतिक्रिया सामने आई है वह हिन्दू राष्ट्रवादियों के लिए चिंता का विषय हो सकती है. अवशेषों के चित्र देखने के बाद बौद्धों के एक बड़े तबके ने दावा किया है कि जिसे शिवलिंग बताया जा रहा है दरअसल वह एक बौद्ध स्तम्भ का हिस्सा है और अवशेषों पर जो नक्काशी है वह अजंता और एलोरा की कलाकृतियों की नक्काशी से मेल खाती है. इस सिलसिले में अयोध्या मामले में निर्णय को भी उद्दृत किया जा रहा है.

निर्णय में कहा गया था, “कार्नेजी ने लिखा है कि मस्जिद के निर्माण में जिन स्तंभों का प्रयोग किया गया है वे इन बौद्ध स्तंभों से बहुत मिलते-जुलते हैं, जो उन्होंने बनारस में देखे थे.” इस मुद्दे पर कई बौद्ध समूह आगे आये हैं.

उन्होंने कहा है कि इस मामले में वे न्यायपालिका से हस्तक्षेप की मांग करेंगे. वे यूनेस्को से भी यह अपील कर रहे हैं कि अयोध्या में उसकी निगरानी में उत्खनन करवाया जाना चाहिए. ब्राह्मणवादी कोलाहल में यह तथ्य भुला ही दिया गया है कि अयोध्या का पुराना नाम साकेत था और साकेत, बौद्ध संस्कृति का एक प्रमुख केंद्र था.

आंबेडकर ने अपनी पुस्तक ‘रेवोलुशन एंड काउंटर-रेवोलुशन इन एनशिएन्ट इंडिया’ में लिखा है, “भारत का इतिहास, बुद्ध धर्म और ब्राह्मणवाद के बीच टकराव के इतिहास के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है.”

यह तर्क इस सांप्रदायिक धारणा का खंडन करता है कि भारत में मूलतः हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच टकराव होता रहा है.

आंबेडकर भारत के इतिहास को क्रांति और प्रतिक्रांति के रूप में देखते हैं. वे मानते हैं कि बौद्ध धर्म एक क्रांति था क्योंकि वह समानता और अहिंसा पर आधारित था. उनके अनुसार, मनुस्मृति, आदि शंकराचार्य और पुष्यमित्र शुंग इत्यादि, भारत से बौद्ध धर्म का भौतिक और वैचारिक नामोनिशान मिटाने के अभियान के प्रतीक हैं. इस अभियान को आंबेडकर प्रतिक्रांति कहते हैं. इस प्रतिक्रांति के चलते, हजारों बौद्ध विहारों को नष्ट कर दिया गया और बौद्ध भिक्षुकों को मौत के घाट उतार दिया गया.

सन 1980 के दशक में हिन्दू सांप्रदायिक ताकतों ने एक सतत प्रचार अभियान चलाकर भारत के इतिहास के उस संस्करण को वैधता दिलवाई जो काफी हद तक अंग्रेजों द्वारा फैलाये गए झूठों और अर्धसत्यों पर आधारित था. बाबरी मस्जिद के बारे में ब्रिटिश इतिहासकारों ने लिखा था कि ‘हो सकता है कि वहां मंदिर रहा हो’. हिन्दू राष्ट्रवादियों ने एक कदम और आगे बढ़कर यह घोषणा कर दी कि वहां न केवल मंदिर था वरन वह राम का ही मंदिर था और उसी स्थान पर राम का जन्म हुआ था! तथ्य यह है कि अयोध्या में ऐसे दर्जनों मंदिर हैं जहाँ के पुजारी यह दावा करते हैं कि उनका मंदिर जिस स्थान पर है, वहीं राम जन्मे थे. सच का पता लगाने के पुरातात्विक प्रयास सफल नहीं हुए. पुरातत्ववेत्ता स्पष्टता से और निश्चयपूर्वक कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हैं. यही कारण है कि जहाँ मोहम्मद ने यह दावा किया कि उस स्थान पर मंदिर था वहीं अन्य पुरातत्ववेत्ताओं की अलग राय थी. और इसीलिये उच्चतम न्यायालय ने विवाद के इस पक्ष पर कोई टिपण्णी नहीं की.

क्या हमारी अदालतें और यूनेस्को इतिहास को उस व्यापक परिदृश्य में देखेंगीं जिसकी बात आंबेडकर करते हैं.

एक व्याख्या यह है कि ब्राह्मणवादी प्रतिक्रांति में बौद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल नष्ट कर दिए गए और बाद में मुसलमान शासकों ने इन स्थलों को लूटा जबकि प्रचार यह किया जाता है कि मुस्लिम लुटेरों ने इन स्थलों को नष्ट किया. कई निष्पक्ष और पूर्वाग्रहमुक्त इतिहासकारों ने लिखा है कि मुस्लिम राजाओं ने पवित्र स्थलों को या तो संपत्ति के लिए लूटा या अपने राज्य के विस्तार के लिए. ऐसा भी हो सकता है कि पहले वैचारिक कारणों से बौद्ध स्थलों को नष्ट किया गया और बाद में मुस्लिम राजाओं ने उन स्थलों में जो कुछ बचा-खुचा था, उसे भी लूट लिया. बौद्ध धर्म पर हुए इस हमले को छिपाने से हम उन कारणों का पता नहीं लगा पाएंगे जिनके चलते बौद्ध धर्म अपने जन्मस्थान भारत से गायब हो गया. बौद्ध विरासत भारत और पूरे विश्व के लिए एक अनमोल खज़ाना है और उसे सुरक्षित रखना हम सबका कर्त्तव्य है.

बहरहाल, राम मंदिर के राज्य द्वारा निर्माण से सोमनाथ मंदिर की याद आना स्वाभाविक है. स्वतंत्रता के तुरंत बाद यह मांग उठी कि राज्य को इस मंदिर का पुनर्निर्माण करना चाहिए. महात्मा गाँधी, जो कि एक महान हिन्दू थे, ने कहा कि हिन्दू समुदाय अपना मंदिर बनाने में सक्षम है. राज्य को उसमें नहीं पड़ना चाहिए.

गाँधी के चेले और आधुनिक भारत के निर्माता जवाहरलाल नेहरु, देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा पुनर्निर्मित मंदिर का उद्घाटन किया जाने के खिलाफ थे. आगे चल कर नेहरू ने विशाल उद्योगों, बांधों और शैक्षणिक संस्थानों की नींव रखी और उन्हें आधुनिक भारत के मंदिर बताया. आज हम क्या देख रहे हैं? सरकार मंदिर बना रही है और शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को उस निजी क्षेत्र के हवाले कर दिया गया है, जिसका एकमात्र उद्देश्य धन कमाना है.

राम पुनियानी

(हिंदी रूपांतरणः अमरीश हरदेनिया)

(लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

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