इस साल (2021) 1 मई को नौवें सिख गुरु तेग बहादुर की 400वीं जयंती (400th Birth Anniversary of Ninth Sikh Guru Tegh Bahadur ) मनाई गई. सिख पंथ को सशक्त बनाने में गुरूजी का महत्वपूर्ण योगदान था. उन्होंने अपने सिद्धांतों की खातिर अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए थे.
मुस्लिम मौलानाओं और हिन्दू पुरोहितों की कट्टरता के कारण हिन्दू और इस्लाम धर्मों का मानवीय पहलू कमजोर हो गया था. इसी के चलते गुरु नानक ने मानवतावाद और समानता पर आधारित सिख धर्म की स्थापना की. हिंदुत्व और इस्लाम के विपरीत, इंसानों की बराबरी का विचार गुरू नानक की प्रेरणा का स्रोत था और उन्होंने मुख्यतः उसी पर जोर दिया.
उन्हें इस्लाम का एकेश्वरवाद और हिन्दू धर्म का कर्मवाद पसंद था. इस्लाम की बारीकियों को समझने के लिए वे मक्का गए और हिंदुत्व की गूढ़ताओं का अध्ययन करने के लिए काशी. यही कारण था कि उनके द्वारा स्थापित धर्म, आम लोगों को बहुत पसंद आया और अपने आध्यात्मिक और नैतिक उत्थान के लिए लोग उनकी ओर खिंचते चले गए.
उन्होंने मुस्लिम सूफियों, मुख्यतः शेख फरीद और हिन्दू भक्ति संत कबीर व उन जैसे अन्य संतों की शिक्षाओं पर जोर दिया. उन्होंने रस्मों-रिवाजों से ज्यादा महत्व मनुष्यों के मेलमिलाप को दिया और दोनों धर्मों के पुरोहित वर्ग द्वारा लादे गए कठोर नियम-कायदों का विरोध किया. समाज में व्याप्त अस्पृश्यता और ऊँचनीच को समाप्त करने के लिए सिख समुदाय द्वारा शुरू की गई लंगर (सामुदायिक भोजन)
सिख धर्म की शिक्षाओं के मूल में है नैतिकता और समुदाय के प्रति प्रेम. सिख धर्म जाति और धर्म की सीमाओं को नहीं मानता.
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की नींव सूफी संत मियां मीर ने रखी थी. यह संकीर्ण धार्मिक सीमाओं को लांघने का प्रतीक था. हिन्दू धर्म और इस्लाम उस क्षेत्र के प्रमुख धर्म थे और संत गुरू नानक ने स्वयं कहा था, "ना मैं हिन्दू ना मैं मुसलमान".
इन दिनों कुछ लोग यह दावा कर रहे हैं कि सिख धर्म, 'क्रूर' मुसलमानों से हिन्दुओं की रक्षा करने के लिए गठित हिन्दू धर्म की शाखा है.
यह कहा जा रहा है कि सिख धर्म मुख्यतः मुसलमानों की चुनौती से मुकाबला करने के लिए अस्तित्व में आया था. इसमें कोई संदेह नहीं कि कुछ सिख गुरूओं को मुगल शासकों, विशेषकर औरंगजेब, के हाथों क्रूर व्यवहार का शिकार होना पड़ा. परंतु यह सिख धर्म के इतिहास का एक हिस्सा मात्र है.
मुख्य बात यह है कि सिख धर्म का उदय एक समावेशी और समतावादी पंथ के रूप में हुआ था. बाद में सिख समुदाय ने स्वयं को सत्ता के केन्द्र के रूप में संगठित और विकसित किया. मुस्लिम शासकों और सिख गुरूओं के बीच टकराव सत्ता संघर्ष का हिस्सा था और इसे इस्लाम और सिख धर्म के बीच टकराव के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.
गुरू अर्जुनदेव और जहांगीर के बीच कटुता इसलिए हुई क्योंकि गुरू ने विद्रोही शहजादे खुसरो को अपना आशीर्वाद दिया था. कुछ अत्यंत मामूली घटनाओं ने भी इस टकराव को बढ़ाया. इनमें शामिल था बादशाह के शिकार के दौरान उनके सबसे पसंदीदा बाज का गुरू के शिविर में पहुंच जाना. यह दिलचस्प है कि सिख गुरूओं और मुगल बादशाहों के बीच एक लड़ाई में सिख सेना का नेतृत्व पेंदा खान नाम के एक पठान ने किया था.
सिख गुरूओं का पहाड़ों के हिन्दू राजाओं से भी टकराव हुआ. इनमें बिलासपुर के राजा शामिल थे. सिक्खों के एक राजनैतिक सत्ता के रूप में उदय से ये राजा खुश नहीं थे.
इस बात के भी सुबूत हैं कि औरंगजेब और सिख गुरूओं के परस्पर रिश्ते केवल टकराव पर आधारित नहीं थे. औरंगजेब ने गुरू हरराय के बेटे रामकिशन को देहरादून में जागीर दी थी. औरंगजेब और सिख गुरूओं के बीच टकराव की कुछ घटनाओं को इस रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है मानो सभी मुगल बादशाह सिक्खों के खिलाफ थे.
यह प्रचार किया जा रहा है कि सन 1671 में इफ्तिकार खान के कश्मीर के मुगल गवर्नर के पद पर नियुक्ति के बाद से वहां हिन्दुओं का दमन शुरू हुआ. इफ्तिकार खान से पहले सैफ खान कश्मीर के गवर्नर थे और उनका मुख्य सलाहकार एक हिन्दू था.
नारायण कौल द्वारा 1710 में लिखे गए कश्मीर के इतिहास में हिन्दुओं को प्रताड़ित किए जाने की कोई चर्चा नहीं है. इसमें कोई संदेह नहीं कि औरंगजेब के आदेश पर गुरू तेग बहादुर को दिया गया मुत्युदंड क्रूर और अनावश्यक था. इसी के नतीजे में गुरू गोविन्द सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की. अधिकांश युद्धों में धर्म केन्द्रीय तत्व नहीं था यह इससे साफ है कि कई पहाड़ी राजाओं की संयुक्त सेना ने आनंदपुर साहब में गुरू पर आक्रमण किया था.
औरंगजेब ने दक्कन से लाहौर के मुगल गवर्नर को पत्र लिखकर गुरू गोविन्द सिंह से समझौता करने का निर्देश दिया था. गुरू के पत्र के जवाब में औरंगजेब ने मुलाकात के लिए उन्हें दक्कन आने का निमंत्रण दिया. गुरू दक्कन के लिए निकल भी गए परंतु रास्ते में उन्हें पता लगा कि औरंगजेब की मौत हो गई है.
सिख धर्म मूलतः एक समतावादी धार्मिक आंदोलन था, आगे चल कर जिसका राजनीतिकरण एवं सैन्यीकरण हो गया. सिख धर्म सबाल्टर्न समूहों की महत्वाकांक्षाओं से उपजा था. इन महत्वाकांक्षाओं को सिख गुरूओं ने जगाया. सिख धर्म ने पुरोहितवादी तत्वों के सामाजिक वर्चस्व को चुनौती दी और समानता के मूल्यों को बढ़ावा दिया. उसने तत्समय के सभी धर्मों की अच्छी शिक्षाओं से स्वयं को समृद्ध किया और संकीर्ण सीमाओं से ऊपर उठकर मानवता का झंडा बुलंद किया.
यह प्रचार कि औरंगजेब भारत को दारूल इस्लाम बनाना चाहते थे, तर्कसंगत नहीं लगता. औरंगजेब के दरबार में हिन्दू अधिकारियों की संख्या, उनके पूर्व के बादशाहों की तुलना में 33 प्रतिशत अधिक थी. औरंगजेब के राजपूत सिपहसालारों में राजा जय सिंह और जसवंत सिंह शामिल थे. इसके साथ ही, यह भी तथ्य है कि औरंगजेब को अफगान कबीलों से लड़ने में काफी ऊर्जा और समय व्यय करना पड़ा. गुरू तेग बहादुर और अन्य सिख गुरू मानवतावाद के हामी थे और हमारे सम्मान के हकदार हैं.
राम पुनियानी
(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)
(लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)