Hastakshep.com-देश-181 वुमन हेल्पलाइन-181-vumn-helplaain-Asha Jyoti Women's Helpline 181-asha-jyoti-womens-helpline-181-COVID-19-covid-19-आशा ज्योति वूमेन हेल्पलाइन 181-aashaa-jyoti-vuumen-helplaain-181-कोविड-19-kovidd-19-ठेका मजदूर कानून-tthekaa-mjduur-kaanuun

181 वुमन हेल्पलाइन में कार्मिकों की मांगों पर वर्कर्स फ्रंट ने अपर श्रमायुक्त लखनऊ को दिया पत्रक

लखनऊ 24 जून 2020. उत्तर प्रदेश सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा सन 2015 में शुरू की गई आशा ज्योति वूमेन हेल्पलाइन 181 (Asha Jyoti Women's Helpline 181) में काम करने वाले 351, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं, उन्हें आज सरकार ने बेसहारा कर दिया है. उन महिलाओं को और कर्मचारियों को पिछले एक साल से वेतन का भुगतान नहीं किया गया और कोविड-19 (COVID-19) के समय जब बिना संसाधन और सरकारी सुविधाओं के उन्होंने महिलाओं के लिए काम किया उसके एवज में 5 जून को उन्हें काम से हटाने का नोटिस सिकंदराबाद, आंध्र प्रदेश की सेवा प्रदाता कंपनी जीवीके द्वारा दे दिया गया है. इस संबंध में आज वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर के नेतृत्व में आशा ज्योति महिला हेल्पलाइन में काम करने वाली महिलाओं ने अपर श्रमायुक्त लखनऊ को पत्रक दिया.

पत्रक में मांग की गई कि सेवा प्रदाता कंपनी की मनमर्ज़ीपूर्ण और विधि के विरुद्ध की गई छंटनी की कार्रवाई पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाए और एक साल से बकाए वेतन का तत्काल भुगतान किया जाए.

गौरतलब हो कि यह वूमेन हेल्पलाइन के द्वारा विधवा, पति त्यागता, कम उम्र की बच्चियों की शादी के विरुद्ध, बलात्कार पीड़ित और अन्य रूप से उत्पीड़ित की गई महिलाओं की सहायता के लिए पूर्ववर्ती सरकार ने आशा ज्योति वूमेन हेल्पलाइन का गठन किया था और 181 मोबाइल नंबर के जरिए पूरे प्रदेश में ऐसी महिलाओं की मदद की जाती थी. इसके लिए सरकार ने सिकंदराबाद की जीवीके रिसर्च कंपनी के साथ समझौता किया था और समझौता में यह तय किया था यह काम 5 साल तक चलेगा और कार्य का अग्रिम भुगतान सरकार द्वारा किया जाएगा. लेकिन जब से उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तब से इन महिलाओं को

आमतौर पर वेतन भुगतान में दिक्कत आने लगी और हद यह हो गई कि पिछले एक साल से तो भुगतान ही रोक दिया गया है. सेवा प्रदाता कंपनी का कहना है कि यदि सरकार द्वारा उसे भुगतान नहीं किया गया तो ऐसी स्थिति में वह कैसे भुगतान कर पाएगी.

इस संबंध में अपर श्रमायुक्त को वर्कर फ्रंट द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया के ठेका मजदूर कानून और समयबद्ध वेतन भुगतान अधिनियम के तहत मुख्य नियोजक भी वेतन भुगतान के लिजवाबदेह हैं इसलिए निदेशक, महिला एवं बाल विकास को भी पत्र भेजकर वेतन भुगतान सुनिश्चित किया जाए. पत्रक में यह भी कहा गया कि कोरोना के संकटकालीन दौर में जब प्रधानमंत्री जी और मुख्यमंत्री जी द्वारा बार-बार यह कहा जा रहा है कि किसी को भी सेवा से पृथक नहीं किया जाएगा और इस संबंध में श्रम विभाग द्वारा भी आदेश दिया गया है. तब ऐसी स्थिति में लॉकडाउन के दौरान सेवा प्रदाता कंपनी द्वारा अपने कार्मिकों को काम से हटाने का आदेश देना विधि के विरुद्ध, मनमर्जी पूर्ण तो है ही साथ ही आपराधिक कृत्य है. इसलिए महामारी अधिनियम के तहत इस कंपनी के खिलाफ विधिक कार्यवाही कराएं जाना भी न्यायोचित होगा. प्रतिनिधि मंडल की बातों को सुनने के बाद अपर श्रमायुक्त ने तत्काल सेवा नियोजन कंपनी और निदेशक महिला विकास महिला एवं बाल विकास को नोटिस जारी करके जुलाई में वार्ता के लिए आदेशित किया है. वार्ता में रूचि, दिव्या, मीनू, सीमा, दिप्ती आदि लोग रहे.

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