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बढ़ रहे हैं बिना लक्षण वाले दिल के दौरे/ एसिम्टोमैटिक हार्ट अटैक

डॉ. नवीन भामरी

नई दिल्ली, 24 अक्तूबर। “बिना लक्षण वाले दिल के दौरे को चिकित्सकीय शब्दावली में असिम्टोमैटिक हार्ट अटैक (asymptomatic heart attack in Hindi ) कहा जाता है और इसे भारत में सालाना हृदय रोगों और यहां तक कि समयपूर्व मौत के लगभग 45-50 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार पाया गया है। एसएमआई का सामना करने वाले मध्यम आयु वर्ग के लोगों में ऐसी घटनाएं महिलाओं की तुलना में पुरुषों में दोगुना होने की आशंका होती है। वास्तविक दिल के दौरे की तुलना में एसएमआई के लक्षण बहुत हल्के होते हैं, इसलिए इसे मूक हत्यारा कहा गया है। सामान्य दिल के दौरे में छाती में तेज दर्द, बाहों, गर्दन और जबड़े में तेज दर्द, अचानक सांस लेने में परेशानी, पसीना और चक्कर आना, जैसे लक्षण होते हैं जबकि इसके विपरीत एसएमआई के लक्षण बहुत कम होते और हल्के होते हैं और इसलिए इसे लेकर भ्रम हो जाता है और लोग इसे नियमित रूप से होने वाली परेशानी मानकर इसे अक्सर अनदेखा कर देते हैं।”

असिम्टोमैटिक हार्ट अटैक के जोखिम कारक आम दिल के दौरे के समान ही हैं। उसमें शामिल हैं- अधिक उम्र, पारिवारिक इतिहास, धूम्रपान या तंबाकू चबाना, उच्च रक्त चाप,  उच्च कोलेस्ट्रॉल, मधुमेह, वजन संबंधित समस्या, शारीरिक गतिविधि की कमी। मध्य आयु वर्ग के लोगों में बिना लक्षण वाले दिल का दौरा (असिम्प्टोमैटिक हार्ट अटैक)।

अनदेखा न करें हीट स्ट्रोक, अस्थमा या भावनात्मक चोट के लक्षण

medical stethoscope with red paper heart on white surface
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यदि

40 वर्ष से कम उम्र के किसी रोगी को श्वास लेने में परेशानी, छाती में दबाव, ठंडे पसीना आना जैसे लक्षण महसूस होते हैं, जो कि आमतौर पर हीट स्ट्रोक, अस्थमा या भावनात्मक चोट के लक्षण होते हैं, तो इसे कभी अनदेखा नहीं करना चाहिए या गलत नहीं आंकना चाहिए। ऐसे मामले में किसी भी और जटिलताओं से बचने के लिए तत्काल निदान और चिकित्सकीय परामर्श अनिवार्य हो जाता है। अगर रोगी पहले से ही एसएमआई से पीड़ित है तो दिल के दौरे के कारण मृत्यु होने की संभावना दोगुना हो जाती है।

कई अध्ययनों ने अनुमान लगाया है कि अत्यधिक तनाव और जीवनशैली में परिवर्तन के कारण, युवा पीढ़ी एरिथमिक पंपिंग, समयपूर्व हृदय रोगों जैसे कुछ बिना पहचान वाले हृदय रोगों के प्रति अधिक संवेदनशील है, जिसकी परिणिति अक्सर सडन कार्डियेक इवेंट के रूप में होती है।

भारत में हर चार में से एक मौत हल्के लक्षणों की अज्ञानता के कारण

भारत में, अनुमान लगाया गया है कि हर चार मौतों में से एक मौत हल्के लक्षणों की अज्ञानता के कारण होती है और यह पुरुषों और महिलाओं दोनों (35-45 साल के बीच) में मृत्यु दर के प्रमुख कारणों में से एक है। बिना लक्षण वाले (असिम्टोमैटिक) दिल के दौरे के लक्षण आम तौर पर 20 और 30 के दशक के शुरुआती सालों में प्रकट होते हैं जो 40 साल की उम्र के आसपास घातक हो जाता है और इसलिए समय पर इलाज कराने पर ऐसी परिस्थितियों में मदद मिल सकती है।

हार्ट अटैक के अलावा सडन कार्डियक डेथ |Sudden cardiac death, (एससीडी) के कारण

इन दोनों में अंतर है लेकिन ये दोनों हृदय रोग के समान रूप से खतरनाक कारण हैं, जो 40 वर्ष से कम उम्र में ही पुरुषों और महिलाओं दोनों में दिल का दौरा पैदा कर सकते हैं।

कावासाकी रोग क्या है | Kawasaki disease,

यह बचपन के दौरान विकसित होने वाली सबसे दुर्लभ बीमारियों में से एक है, जिसमें धमनियों, नसों और केशिकाओं में सूजन हो जाती है। कुछ समय के बाद, यह बीमारी कोरोनरी धमनी को प्रभावित करती है जो ऑक्सीजन युक्त रक्त को दिल में ले जाती है। शुरुआती चरणों में इसका पता लगाना बहुत मुश्किल है और ज्यादातर मामलों में इसका निदान दिल के दौरे के बाद ही किया जाता है।

हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी

hypertrophic cardiomyopathy

यह एथलीटों सहित युवा लोगों में एससीडी का सबसे आम कारण है और अधिकतर मामलों में यह अनुवांशिक हो सकता है।

क्यों होता है हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी

यह हृदय की मांसपेशियों में आनुवंशिक उत्परिवर्तन के कारण होता है जो कार्डियक मांसपेशियों में वृद्धि करता है जिससे वेंट्रिकल्स की दीवारें मोटी हो जाती हैं। यह रक्त प्रवाह को बाधित करता है क्योंकि वेंट्रिकल्स पूरे शरीर में रक्त पंप करने के लिए उच्च दबाव के साथ काम करता है, जिससे व्यक्ति की शारीरिक गतिविधि कम हो जाती है और उसे अचानक कोलैप्स हो सकता है।

युवा पीढ़ी में भी बढ़ रही हैं दिल से संबंधित ये बीमारियां

मध्यम आयु वर्ग के लोगों (पुरुषों और महिलाओं दोनों) का धूम्रपान करना और शराब पर बढ़ती निर्भरता समय से पहले दिल की समस्याओं के लिए जिम्मेदार है। आराम तलब जीवनशैली, खाने की खराब आदतें और शारीरिक गतिविधि की कमी का मोटापे से संबंध है और इससे दिल की समस्याएं पैदा होती हैं।

बुजुर्ग लोग दिल के दौरे से ज्यादा प्रभावित होते हैं, लेकिन इन दिनों प्रवृत्ति बदल रही है और युवा पीढ़ी में भी दिल से संबंधित ये बीमारियां बढ़ रही हैं। हालांकि अनुवांशिक स्थितियों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, लेकिन जीवनशैली के विकल्पों में बदलाव करने से काफी फायदा हो सकता है।

(डॉ. नवीन भामरी, मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के कार्डियोलॉजी के विभागाध्यक्ष और निदेशक हैं - संप्रेषण)

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