शुरुआती दौर में कई लोगों में एवैस्कुलर नेक्रोसिस के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। लेकिन जब स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो जाती है, तब वजन उठाने पर जोड़ों में दर्द होने लगता है और अंतत: स्थिति इतनी ज्यादा बिगड़ जाती है कि लेटे रहने पर भी जोड़ों में दर्द होता रहता है। इस बीमारी में दर्द मध्यम दर्ज का या बहुत तेज होता है और यह धीरे-धीरे बढ़ता जाता है।
एवैस्कुलर नेकरोसिस (Avascular necrosis in Hindi) हड्डियों की एक ऐसी स्थिति है जिसमें बोन टिश्यू (bone tissue) यानी हड्डियों के ऊतक मरने लगते हैं। इस तरह की स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब इन ऊतकों तक पर्याप्त मात्रा में रक्त नहीं पहुंच पाता है। इसे ऑस्टियोनेक्रोसिस (Osteonecrosis) भी कहा जाता है।
मुबंई स्थित पी.डी.हिंदुजा नेशनल अस्पताल के हेड, आर्थोपेडिक्स डॉ. संजय अग्रवाला (Dr. Sanjay Agarwala, Head of Orthopedics, PD Hinduja National Hospital, Mumbai) का कहना है कि कूल्हे के एवैस्कुलर नेकरोसिस (avascular necrosis of the hip) होने पर पेड़ू, जांघ और नितंब में दर्द होता है। कूल्हे के अलावा इस बीमारी से कंधे, घुटने, हाथ और पैर के भी प्रभावित होने की संभावना बनी रहती है। इनमें से किसी तरह के लक्षण दिखाई देने और जोड़ों में लगातार दर्द बने रहने पर तुरंत डॉक्टर से दिखाने की जरूरत होती है।
जोड़ों या हड्डियों में चोट लगना (joint or bone injury)
जोड़ें में किसी भी तरह का चोट या परेशानी जैसे जोड़ों का खुल जाना, की वजह से उसके नजदीक की रक्त नलिकाएं क्षतिग्रस्त हो सकती हैं।
रक्त नलिकाओं में वसा का जमाव (fat deposition in blood vessels)
कई बार रक्त नलिकाओं में वसा का जमाव हो जाता है, जिससे ये नलिकाएं संकरी हो जाती हैं। इस वजह से हड्डियों तक रक्त नहीं पहुंच पाता है, जिससे उन्हें पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता है।
बीमारी
सिकल सेल एनीमिया (sickle cell anaemia) और गौचर्स डिजीज जैसी चिकित्सकीय स्थिति उत्पन्न होने पर भी हड्डियों तक पर्याप्त मात्रा में रक्त नहीं पहुंच पाता है। इन सबके अलावा कुछ ऐसे अनजाने कारण भी होते हैं, जिनकी वजह से यह बीमारी लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लेती है।
एवैस्कुलर नेकरोसिस की जटिलता
डा. संजय अग्रवाला का कहना है कि एवैस्कुलर नेकरोसिस का उपचार (Treatment of avascular necrosis) नहीं कराने पर समय बीतने के साथ मरीज की स्थिति बदतर होती जाती है और एक समय ऐसा आता है जब हड्डी कमजोर होकर घिसने लग जाती है। इतना ही नहीं, इस बीमारी के कारण हड्डियों का चिकनापन भी खत्म होने लगता है, जिससे भविष्य में मरीज गंभीर रूप से गठिया से पीडि़त हो सकता है।
डॉ. संजय अग्रवाला का कहना है कि मरीज के लिए कौन सा उपचार सही रहेगा यह इस बात पर निर्भर करता है, कि हड्डियों को कितना नुकसान पहुंचा है। एवैस्कुलर नेक्रोसिस के इलाज के लिए पहले मेडिकेशन व थेरेपी का ही सहारा लिया जाता है और जरूरत पड़ने पर सर्जरी की जाती है।
एवैस्कुलर नेकरोसिस के लिए मेडिकेशन व थेरेपी
एवैस्कुलर नेकरोसिस के शुरुआती दौर में इसके लक्षणों को समाप्त करने के लिए दवाइयां और थेरेपी का सहारा लिया जाता है। इसके तहत एक मरीज को दर्द कम करने, रक्त नलिका के अवरोध को दूर करने की दवाइयां दी जाती हैं। इसे साथ ही मरीज की क्षतिग्रस्त हड्डियों पर पड़ने वाले भार व दबाव को कम करने की कोशिश की जाती है। साथ ही फिजियोथेरेपिस्ट की सहायता से कुछ व्यायाम करने की भी सलाह दी जाती है, ताकि जोड़ों की अकड़न दूर हो। इसके अलावा, हड्डियों को मजबूती प्रदान करने के लिए एली डीटोनेट थेरेपी का सहारा लिया जाता है, ताकि उसे खत्म होने से बचाया जा सके।
एवैस्कुलर नेक्रोसिस के लिए सर्जरी
इस बीमारी के बहुत ज्यादा गंभीर हो जाने पर डॉक्टर जोड़ों की सर्जरी करते हैं। सर्जरी के तहत हड्डियों के क्षतिग्रस्त भाग को हटाकर उसकी जगह मरीज के शरीर के किसी दूसरे भाग हड्डी को लेकर क्षतिग्रस्त हड्डियों की जगह प्रत्यारोपित किया जाता है। हड्डियों के ज्यादा क्षतिग्रस्त होने की स्थिति में ज्वाइंट रिप्लेसमेंट का सहारा भी लिया जाता है।
एवैस्कुलर नेक्रोसिस से बचाव (prevention of avascular necrosis)
सीमित मात्रा में अल्कोहन का सेवन करें।
कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम रखें।
अगर आप नियमित रूप से स्टेरॉयड का सेवन करते हैं, तो उसके प्रभाव का निरीक्षण करते रहें।
उमेश कुमार सिंह