सर्वोच्च न्यायालय ने 1949 में मूर्तियों के रखे जाने को, मुसलमानों द्वारा नमाज पढ़ने से रोके जाने को और 1992 के विध्वंस को गैरकानूनी घोषित किया, उसने कहा कि ‘‘संविधान एक से दूसरे धर्म में आस्था में फर्क नहीं करता’’ और यह तथ्य भी दर्ज किया कि हिन्दू और मुसलमान दोनो वहां अपनी पूजा करते थे, फिर भी उसने पूरी की पूरी 2.77 एकड़ जमीन मंदिर के लिए आवंटित कर दी। मूल रूप से उसने समाज के एक हिस्से की आस्था को अपना आधार बनाया। उसने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के न्यायमूर्ति डी.वी. शर्मा के अल्पमत निर्णय को सही ठहराया है।
पार्टी ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न तो तथ्यों पर आधारित है न ही न्याय विज्ञान के स्वस्थ सिद्धान्तों पर। इस वाद में केवल 2.77 एकड़ भूमि, जिस पर बाबरी मस्जिद थी, की मिल्कियत पर विवाद नहीं था, बल्कि कानून के राज का सवाल और धर्म निरपेक्षता के सिद्धान्त पर भी सवाल खड़े थे। जहां इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में बहुसंख्यकवाद के पक्ष में रियायत की थी, इस निर्णय ने उसके सामने पूरा समर्पण कर दिया है। उसने शुरु में ही अपने पक्ष का खुलासा करते हुए कह दिया कि ‘‘न्यायालय के सामने ऐसे विवाद का निस्तारण करने का काम है, जो विवाद भारत के विचार की शुरुआत जितना पुराना है’’ और इस तरह से उसने भारत के विचार को हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस विवाद के साथ समानान्तर बना दिया है। इससे निश्चित रूप से वे साम्प्रदायिक ताकतें मजबूत होंगी
पार्टी ने कहा है कि यह निर्णय गैरकानूनी कृत्य करने वालों को पुरस्कृत करता है और अल्पसंख्यक समुदाय की अपेक्षा बहुसंख्यकों का पक्ष लेता है। अब बाबरी मस्जिद विध्वंस का अभियोग महज औपचारिकता ही बचेगा। यह निर्णय मुसलमानों के अन्य पूजा स्थलों के विरुद्ध अभियान चलाने वाले साम्प्रदायिक गुटों को मजबूत करेगा। देश के कानून में पहले भी उन्होंने निरुत्साहित नहीं किया था और अब वे जीत का अहसास कर रहे हैं।
निर्णय में यह टिप्पणी करते हुए कि मुगल शासनकाल में इस स्थान पर हिन्दू व मुस्लिम दोना पूजा करते थे, कोर्ट ने उस दौर के धर्मनिरपेक्ष शासन को स्वीकार तो किया पर खेद का विषय है कि सर्वोच्च न्यायालय उस मूल्य का खुद अनुसरण नहीं कर सका, इस बात के बावजूद कि हमारा संविधान खुद ही धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है। यह निर्णय स्पष्टतः धर्मनिरपेक्षता के उन मूल्यों पर एक हमला है, जो भारतीय जनता के बीच उपनिवेश विरोधी संघर्ष में विकसित हुआ था। हालांकि मस्जिद का निर्माण 400 साल पहले कराए जाने और उसकी मिल्कियत के सत्य के सब जानते हैं, सुप्रीम कोर्ट ने उनके कानूनी अधिकार को ही समाप्त कर दिया है। इससे कानून को नहीं दबंगई के अधिकार को बल मिला है।
जहां आरएसएस-भाजपा ने अपने तीनो एजेंडे - धारा 370 समाप्त करना, राम मंदिर निर्माण तथा समान नागरिक संहिता को आगे बढ़ा दिया है, लोगों पर मंहगाई, बेरोजगारी, विस्थापन, भुखमरी की पीड़ा बढ़ती जा रही है। लोगों को वंचित कर उनका शोषण बढ़ाने की कारपोरेट, विदेशी कम्पनियां, जमींदार व माफिया की ताकत मजबूत हुई है। मेहनतकश जनता की एकता ही एक मात्र ताकत है जो हिन्दुत्व फासीवाद को हरा सकें और एक नए जनवाद को ला सके।