योगी आदित्यनाथ का बुलडोजर (Yogi Adityanath's bulldozer) ज्यादा चर्चित भले हुआ हो, लेकिन मामा शिवराज का बुलडोजर (Mama Shivraj's bulldozer) अपने निशाने में उससे ज्यादा खुलेआम और शुद्ध रूप से सांप्रदायिक रहा है।
इससे बड़ी विडंबना क्या होगी? मध्य प्रदेश के भाजपायी मुख्यमंत्री, शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan, BJP Chief Minister of Madhya Pradesh) ने एक ओर तो भारत के संविधान निर्माता, डॉ भीमराव अंबेडकर की 131वीं जन्म जयंती (Dr. Bhimrao Ambedkar's 131st Birth Anniversary) पर, डॉ अंबेडकर के जन्म स्थल महू में जाकर श्रद्घांजलि अर्पित की और दूसरी ओर अपनी सरकार के अनुमोदन से, खरगौन में पुलिस और प्रशासन द्वारा उन्हीं आंबेडकर के बनाए संविधान को खुलेआम पांवों तले रौंदते हुए की जा रही कथित दंगाइयों के घरों को बुलडोजर से ढहाने की सरासर गैर-कानूनी कार्रवाई को न सिर्फ सही ठहराया बल्कि उसे आगे चलाते रहने का भी एलान किया।
इस मामले की विडंबना को उसके पूरे कद में देखने के लिए, इसके साथ यह जोड़ देना भी जरूरी है कि अव्वल तो इन कथित दंगाइयों को यह सरासर गैर-कानूनी ‘‘बुलडोजर सजा’’ इसके बावजूद दी गयी है कि उनमें से किसी का भी किसी भी तरह की जांच आदि में दंगाई साबित होना तो दूर, यह कार्रवाई किए जाने तक किसी एफआइआर तक में उनके नाम नहीं आए थे। उल्टे संबंधित पुलिस उच्चाधिकारियों का इस संबंध में मीडिया के सवालों के जवाब में हेकड़ी से यही कहना था कि यह कार्रवाई ‘उन लोगों के मन में डर बैठा देने’ के लिए की जा रही थी!
जाहिर है कि डॉ आंबेडकर के बनाए धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक संविधान के अंतर्गत,
खरगोन में कथित राम नवमी जुलूस के दौरान क्या हुआ था, यह ठीक-ठीक जानना अब शायद ही संभव होगा। इसकी एक बड़ी वजह तो यही है कि भाजपायी सरकार के इशारे पर, जो इस तरह के ‘‘बुलडोजर न्याय’’ के सहारे, शिवराज सिंह के लिए योगी टाइप की छवि बनाने के लिए काफी उत्सुक नजर आती है, खरगौन की घटना पर खास आरएसएस की शैली का नैरेटिव रोपा जा चुका है और पुलिस-प्रशासन इसमें आगे-आगे है। इस नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए, कोई एफआइआर तक दर्ज होने भी पहले ही पुलिस द्वारा हिंदू जुलूस पर हमले का ‘‘षडयंत्र’’ भी खोजा जा चुका है। जाहिर है कि नीचे से ऊपर तक, प्रशासन की दिलचस्पी इस गढ़े हुए नैरेटिव को सच साबित करने में ही है न कि इसका पता लगाने में कि वास्तव में क्या और कैसे हुआ था। लेकिन, इस बार राम नवमी जुलूसों के नाम पर मध्य प्रदेश में खरगौन में ही नहीं बल्कि बिहार, गुजरात, कर्नाटक, झारखंड, राजस्थान, बंगाल आदि, आधा दर्जन से ज्यादा राज्यों में और बीसियों जगहों पर और उसके चंद राज बाद हनूमान जयंती के जुलूसों के नाम पर राजधानी दिल्ली समेत आधा दर्जन और राज्यों में मामूली टकराव से लेकर गंभीर हिंसा तक की घटनाएं हुई हैं, उनके पैटर्न से जोडक़र खरगौन के घटनाक्रम का तार्किक अनुमान तो लगाया ही जा सकता है। इनमें से बाकी अधिकांश जगहों की तरह, वहां भी पुलिस ने रामनवमी के नाम पर नंगी तलवारें लहराते जुलूस को मुस्लिम इलाके से निकालने की इजाजत दी थी।
ऐसे चुनौती देने की मुद्रा वाले जूलूस और उसकी मुसलमानों को लक्षित कर उकसावेपूर्ण नारेबाजी से गरमाए वातावरण के बीच, किसने पहला पत्थर चलाया या किस ने पहले तलवार लहरायी, इसका कोई अर्थ नहीं है।
हिंसा तथा तोड़-फोड़ व आगजनी के तात्कालिक विस्फोट के बाद तो सिर्फ इसी का कोई अर्थ रह जाता है कि ज्वार के थमने के बाद पुलिस-प्रशासन क्या करते हैं? और वे क्या कर रहे हैं सब के सामने है। वे बुलडोजर से मुसलमानों के घर गिराकर, उनके ‘‘मन में डर बैठाने’’ में, उन्हें यह सबक सिखाने में लगे हुए हैं कि वे आंबेडकर के संविधान पर आधारित कानून के राज की जगह, अब हिंदुत्व के सांप्रदायिक राज में हैं। हिंदुत्व के राज में रहना होगा, तो दूसरे दर्जे के नागरिकों वाला सलूक सहना होगा! और यह सब सिखाने वालों के हौसले इतने बुलंद हैं और जाहिर है कि सत्ता के शीर्ष पर बैठने वालों की खुली शह से बुलंद हैं कि उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश व गुजरात आदि होते हुए यह बुलडोजर भाजपा नेताओं की मांग पर एलानिया सर्वोच्च न्यायालय की नाक के ऐन नीचे राजधानी दिल्ली में भी पहुंच गया और सर्वोच्च न्यायालय के रुकने के आदेश के बाद भी, करीब दो घंटे तक जहांगीरपुरी में गरीबों के मकान-दुकानों पर तबाही बरपा करता रहा।
पर न तो देश के अनेक हिस्सों में राम नवमी के जुलूसों का सांप्रदायिक हिंसा के उकसावों में तब्दील हो जाना कोई संयोग है और न खरगौन में तथा अन्य अनेक भाजपा-शासित राज्यों में पुलिस-प्रशासन का कानून के राज की सारी बंदिशों से छूटकर, हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक राज में तब्दील हो जाना। यह नरेंद्र मोदी के राज में देश को लगातार हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक राज बनने के रास्ते पर धकेले जाने का ही परिणाम है। यहां तक कि हिंदुत्ववादी राज की सांप्रदायिक जोर-जबर्दस्ती के प्रतीक के रूप में, बुलडोजर का आगे बढ़ाया जाना भी कोई संयोग नहीं है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, योगी आदित्यनाथ पहले ही बुलडोजर को बाकायदा अपने, मनमानी के बहुसंख्यकवादी दमनमारी राज के प्रतीक के रूप में स्थापित कर चुके थे, जो विरोधियों की ‘‘गर्मी निकाल देने’’ की बोली बोलता है। फिर भी योगी राज में आम तौर पर बुलडोजर का निशाना बनाए जाने वालों की पहचान माफिया या समाजविरोधी के रूप में की जाती रही थी, हालांकि इसी साल की शुरूआत में हुए उत्तर प्रदेश के विधानसभाई चुनाव के योगी के अभियान में माफिया को मुसलमान का पर्यायवाची ही बनाकर, इस मनमर्जी के राज के सांप्रदायिक रंग को भी साफ कर दिया गया था। शिवराज सिंह का राज और आम तौर पर हर जगह का ही भाजपा राज, जिसमें दिल्ली में सीधे मोदी-शाह जोड़ी का राज भी शामिल है, अब उसी विरासत को आगे बढ़ाता नजर आ रहा है, हालांकि उसके बुलडोजर पर शुरू से ही भगवा पुता रहा है।
शिवराज सिंह के राज में बुलडोजर का इस तरह का खेल पहली बार अब से करीब दो साल पहले देखने को मिला था, जब राम मंदिर के लिए चंदा करने के नाम पर निकाले गए ऐसे ही उकसावेपूर्ण जुलूसों में झड़पों के बाद, इसी तरह चुन-चुनकर सांप्रदायिक बदले की कार्रवाई के तौर पर, सरकारी बुलडोजर चलाया गया था।
योगी का बुलडोजर ज्यादा चर्चित भले हुआ हो, लेकिन मामा शिवराज का बुलडोजर अपने निशाने में उससे ज्यादा खुलेआम और शुद्ध रूप से सांप्रदायिक रहा है।
बहरहाल, यह इस या उस भाजपायी राज्य सरकार का ही मामला नहीं है। जैसा हमने पीछे कहा, यह तो मोदी राज के लगभग आठ साल का हासिल है। बेशक, हिंदुत्व के सांप्रदायिक राज के कायम किए जाने की इस यात्रा की शुरूआत तो मोदी के पहले कार्यकाल में ही हो गयी थी, जब गोरक्षा के नाम पर, न सिर्फ मांस के कारोबार की निचली कड़ियों से जुड़े मुख्यत: मुसलमानों पर भारी चोट गयी थी बल्कि गोकशी से लेकर गोमांस खाने तक के झूठे-सच्चे इल्जामों में मुख्यत: मुसलमानों की मॉब लिंचिंग का सिलसिला शुरू हुआ था, जो अब तक मुसलसल जारी है।
इस नये चरण की शुरूआत, जम्मू-कश्मीर राज्य का धारा-370 के तहत विशेष दर्जा छीनकर, उसका राज्य का दर्जा भी खत्म किए जाने तथा तोड़ दिए जाने से हुई थी, जिसके लिए साल भर से ज्यादा तक पूरे कश्मीर को जैसे जेल ही बनाकर रख दिया गया था। इसके फौरन बाद, नागरिकता के मामले में मुसलमानों को बाकायदा दूसरे दर्जे में रखने वाला, सीएए कानून लाया गया और एनआरसी के जरिए मुसलमानों की नागरिकता को संदिग्ध बनाने का प्रोजैक्ट लाया गया। और उसके बाद, सीएए-एनआरसी के विरोध की आवाजों को दबाने के लिए भीषण दमनचक्र चलाया गया। इसी सिलसिले में पूरे भाजपा-शासित भारत में विरोध की आवाज उठाने को अपराध बना दिया गया और मुसलमानों के आवाज उठाने को घनघोर अपराध।
यह सिलसिला, सीएएविरोधी प्रदर्शनों के खिलाफ दिल्ली में आरएसएस-भाजपा और सीधे केंद्रीय गृहमंत्री, अमित शाह के नियंत्रण में काम करने वाली दिल्ली पुलिस द्वारा सांप्रदायिक हिंसा भडक़ाए जाने में अपने शीर्ष पर पहुंचा और मोदी राज ने अपना पूरा हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक चेहरा उजागर कर दिया। इन दंगों के दौरान सोची-समझी विफलता तथा बहुत हद तक पक्षपातपूर्ण भूमिका से आगे बढ़कर, शाह के नेतृत्व में पुलिस प्रशासन ने पूरी तरह से सांप्रदायिक भूमिका संभाल ली और संघ-भाजपा के झगड़ा कराने के उकसावों की ओर से पूरी तरह से आंखें मूंदकर, न सिर्फ पूर्वी-दिल्ली के इन दंगों के लिए सीएए-विरोधियों या मुसलमानों और उनके हमदर्दों को जिम्मेदार ठहरा दिया बल्कि मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए सांप्रदायिक हिंसा कराने के वृहत्तर षडयंत्र का एक सरासर झूठा नैरेटिव गढक़र, पहले ही काफी हद तक सरकारपरस्त बनायी जा चुकी न्यायपालिका की मदद से, बीसियों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को यूएपीए तथा एनएसए जैसे अत्याचारी कानूनों के अंतर्गत, लंबे समय के लिए जेलों में भी ठूंस दिया गया। दो साल बाद, जहांगीरपुरी के मामले में एक बार फिर उसी सब की पुनरावृत्ति होती नजर आती है। इकतरफा गिरफ्तारियां, इकतरफा रासुका, इकतरफा एफआइआर और इकतरफा अवैध निर्माण तोड़ने के नाम पर बुलडोजर प्रहार, इसी के इशारे हैं।
उसके बाद, जब कोविड महामारी के दौरान तमाम सामान्य जनतांत्रिक गतिविधियों तथा विरोध की आवाजों को एक तरह से चुप करा दिया गया और आम जनता को एक तरह से उसके हाल पर ही छोड़ दिया गया, तो मोदी राज से असंतोष की सुगबुगाहट शुरू हो गयी। और मोदी राज ने जब कोविड की आपदा को अपने कारपोरेट आकाओं के लिए मनमानी लूट का मौका बना दिया, तो आम लोगों की तकलीफों का छुपा रहना असंभव हो गया। मजदूरों, किसानों तथा अन्य मेहनतकशों ने कोविड की पाबंदियों के बीच भी तरह-तरह की कार्रवाइयों शुरू कर दीं और यह सिलसिला तीन कारपोरेटपरस्त कृषि कानूनों के खिलाफ साल भर से ज्यादा चले किसानों के ऐतिहासिक आंदोलन और मार्च के आखिर में हुई मजदूरों की दो दिन की देशव्यापी आम हड़ताल जैसी कार्रवाइयों में, अपने उत्कर्ष पर पहुंचा। मेहनत-मजदूरी करने वालों की इन कार्रवाइयों तथा खासतौर पर किसानों के आंदोलन को बदनाम करने की संघ-भाजपा की कोशिशों की नाकामी ने, एक ओर अगर मोदी सरकार को थोड़ा झुककर विवादास्पद कृषि कानून वापस लेने के मजबूर कर दिया, तो दूसरी ओर ओर उसे हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक राज कायम करने की अपनी मुहिम का अगला गीयर लगाने के लिए भी तत्पर कर दिया। उसके बाद ही, विधानसभाई चुनावों के पिछले चक्र की पूर्व-संध्या में तथाकथित धर्म-संसदों का सिलसिला शुरू हुआ, जिनमें मुसलमानों की अबादी बढ़ने, धर्मांतरण आदि के कथित खतरों से आगे जाकर, सीधे मुसलमानों का राज कायम होने की चेतावनियां दी रही हैं और उससे बचाव के लिए हथियार उठाने तथा मुसलमानों का नरसंहार करने के खुले आह्वान किए जा रहे हैं।
राम नवमी के नाम पर जगह-जगह निकाले गए हथियारबंद उग्र जुलूस और फिर हुनूमान जयंती पर वैसे ही जुलूस, उसी सिलसिले की एक और कड़ी हैं।
एक साक्ष्य काफी है। मोदी राज अब सर्वोच्च न्यायालय में यह साबित करने की कोशिश कर रहा है कि पिछले साल दिसंबर में हरिद्वार की विवादित धर्म संसद के करीब दिल्ली में हुए हिंदू युवा वाहिनी के आयोजन में मुसलमानों के नरसंहार के आह्वान की बात तो छोड़ ही दें, कोई नफरती बोल तक नहीं बोले गए थे! उसमें तो बस ‘अपने धर्म को ताकतवर बनाने’ की बात कही गयी थी ‘ताकि वह उन शैतानों का सामना करने के लिए खुद को तैयार कर सके, जो उसके अस्तित्व को खतरे में डाल सकते हैं।’
सर्वोच्च न्यायालय में अमित शाह नियंत्रित दिल्ली पुलिस का हलफिया बयान कहता है कि उक्त आयोजन में दिलायी गयी यह शपथ कि, ‘‘हम सब शपथ लेते हैं...इस देश को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए, बनाए रखने के लिए, आगे बढ़ाने के लिए लड़ेंगे, मरेंगे, जरूरत पड़ी तो मारेंगे;’’ यह तो अभिव्यक्ति की वैध स्वतंत्रता का मामला है, जिसके प्रति सर्वोच्च न्यायालय में शिकायत करने वालों को सहिष्णुता दिखानी चाहिए! क्या इसके बाद भी इसके और साक्ष्यों की जरूरत है कि मोदी राज तेजी से हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक राज में तब्दील होता जा रहा है। बुलडोजर इसका नया (अ) शुभंकर है।
राजेंद्र शर्मा
Web title : Babua Hindutva Raj will come by bulldozer!