क्या आप पाम ऑयल (Palm Oil in Hindi) के बारे में जानते हैं? हो सकता है कि हम में कुछ लोग न जानते हों लेकिन हम सब ने इसका अपने जीवन में इस्तेमाल किया है। पूरी दुनिया में खाना बनाने वाले तेल (cooking oil) के तौर पर पाम ऑयल का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है। खाना बनाने के तेल से लेकर कॉस्मेटिक, प्रोसेस्ड फूड, चॉकलेट, आइसक्रीम, केक, साबुन, शैंपू, जैव ईंधन (biofuel) सब में इसका इस्तेमाल किया जाता है। पूरी दुनिया में खाना बनाने वाले तेल के तौर पर सोयाबीन, कनोला, पाम और सूरजमुखी (Sunflower) का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है। इसमें से तकरीबन 40 फीसदी हिस्सेदारी पाम ऑयल की है। इन सब में पाम ऑयल इसलिए भी अहम है क्योंकि प्रति हेक्टयेर इसकी पैदावार सबसे ज़्यादा है। एक हेक्टयेर में 0.4 टन सोया ऑयल, 0.7 सरसों के तेल की पैदावार होती है तो तकरीबन 3.3 टन पाम ऑयल की पैदावार होती है। दूसरे तेलों के मुकाबले सस्ता होने के चलते और दुनिया में बहुत अधिक मांग होने के चलते इंडोनेशिया और मलेशिया (Malaysia) जैसे देशों ने पाम ऑयल का जमकर पैदावार किया। इसलिए पाम ऑयल पर उष्णकटिबंधीय इलाके के वनों को बर्बाद करने का भी आरोप लगता है। कहा जाता है कि पाम ऑयल उत्पादन के लालच में आकर उष्णकटिबंधीय जैवविविधता (tropical biodiversity) को बर्बाद किया जा रहा है।
इंडोनेशिया के पाम ऑयल निर्यात प्रतिबंध का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा? (Indonesia's Palm Oil Export Ban and Its Impact on India)
अब आप पूछेंगे कि पाम ऑयल को लेकर इतनी जानकारी क्यों दी गयी है? तो जवाब यह
दुनिया के तकरीबन 60 प्रतिशत पाम ऑयल की सप्लाई इंडोनेशिया से होती है। पाम ऑयल के क्षेत्र में इंडोनेशिया न केवल सबसे बड़ा उत्पादक देश है बल्कि सबसे बड़ा निर्यातक देश भी है। पाम ऑयल की सबसे अधिक खपत भी इंडोनेशिया में ही होती है।
Why did Indonesia ban palm oil? Palm oil crisis
अब सवाल बनता है कि इंडोनेशिया ने पाम ऑयल पर प्रतिबंध क्यों लगाया? पाम ऑयल का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता होने के बावजूद भी इस समय इंडोनेशिया में पाम ऑयल को लेकर किल्लत चल रही है। पाम ऑयल की क़ीमतें बहुत अधिक बढ़ चुकी है। आम आदमी को सस्ती क़ीमतों पर पाम ऑयल नहीं मिल पा रहा है। जबकि इंडोनिशया में पिछले साल से ज्यादा पाम ऑयल का उत्पादन हुआ है।
इंडोनेशिया में पाम ऑयल की कमी क्यों हुई?
इंडोनेशिया में पाम ऑइल की कमी इसलिए हुई है क्योंकि पूरी दुनिया में खाने के तेल को जो महत्वपूर्ण वैकल्पिक स्रोत्र है, उन सबके उत्पादन में किसी न किसी वजह से कमी आयी है। अर्जेंटीना में मौसम खराब होने की वजह से सोयाबीन की पैदावार कमी हुई है। कनाडा में सूखे की वजह से कनोला की पैदावार कम हुई है। रूस और यूक्रेन की लड़ाई की वजह सूरजमुखी की पैदावार कम हुई है। इन सबका मिलाजुला असर यह पड़ा कि पूरी दुनिया के पाम ऑयल का सबसे अधिक इस्तेमाल हुआ। अब स्थिति ऐसी आ पहुंची है कि इंडेनोशिया में जितने पाम ऑयल की मांग है उतना इंडोनेशिया में ही पूरा नहीं हो पा रहा है।
आसमान छू रही हैं पाम ऑयल की क़ीमतें
पाम ऑयल की क़ीमतें आसमान छू रही हैं। मार्च 2021 में ब्रांडेड पाम ऑयल की क़ीमत 14 हजार इंडोनेशियन रुपये प्रति लीटर पाम ऑयल से क़ीमतें बढ़कर मार्च 2022 में 22 हजार रुपये प्रति लीटर पर पहुंच गयी। इंडोनेशिया की सरकार ने महंगाई को काबू में रखने के पूरी तौर पर निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से पहले कई तरह के कदम उठाये। जनवरी में कुल कच्चे पाम ऑयल का 20 प्रतिशत निर्यात करने की छूट दी। लेकिन इसके बाद भी क़ीमतें बढ़ती रहीं। बाद में जाकर 28 अप्रैल को पाम ऑयल पर पूरा प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी गई।
इसके आलावा पाम ऑयल की क़ीमतें इसलिए भी बढ़ीं क्योंकि इंडेनोशिया में पाम ऑयल का इस्तेमाल ग्रीन फ्यूल की तरह भी किया जाता है। पाम ऑयल का इस्तेमाल बायो डीजल की तरह भी किया जाता है। इंडोनेशिया की वित्त मंत्री श्री मुलयानी इंद्रावती ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा कि प्रतिबंध का बुरा असर दूसरे देशों पर भी पड़ेगा। लेकिन फिलहाल सरकार, देश के भीतर खाने के तेल की किफायती सप्लाई को प्राथमिकता दे रही है।
इंद्रावती के मुताबिक तेल की क़ीमतें स्थिर करने की तमाम कोशिशें नाकाम होने के बाद ही सरकार को यह कठोर कदम उठाना पड़ा है।
पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक देश है भारत
जहाँ तक भारत की बात है तो भारत पाम ऑयल का सबसे बड़ा आयातक देश है। सरसों, मूंगफली और सोया तेल के मुकाबले पाम ऑयल प्रति लीटर कम क़ीमत पर बिकता है। भारतीय रसोई में सबसे अधिक पाम ऑयल का इस्तेमाल होता है। हालांकि पिछले साल के मुकाबले इस साल हर तरह के तेल की क़ीमतों में इज़ाफ़ा हुआ है। भारत अपने खाने के तेल में 40 फीसदी हिस्सा पाम ऑयल से इस्तेमाल करता है। इसका आधा हिस्सा यानी तकरीबन 8.3 मीट्रिक टन पाम ऑयल का आयात इंडोनेशिया से करता है।
जानकारों का कहना है कि इंडोनेशिया के फैसले की वजह से इंडोनेशिया में तेल की क़ीमतें भले कम हो जाए लेकिन भारत में भयंकर महंगाई आएगी। भारत में वैसे ही लोग पहले से ही महंगाई से परेशान है। उसके बाद सोयाबीन, कनोला और सूरजमुखी के तेल को लेकर पहले से ही वैश्विक बजार में कमी है। पाम ऑयल का विकल्प भी ऐसा नहीं है कि खाने के तेल की क़ीमतों में कमी आ सके।
एक अनुमान के मुताबिक खाने के तेल से जुड़े भारत के आयात बिल में 2 बिलियन डॉलर का इज़ाफ़ा होगा। इसलिए वह सारे उत्पाद जो पाम ऑयल पर निर्भर हैं, उन सब में महंगाई आएगी। खाने के तेल से लेकर साबुन शैम्पू हर जगह महंगाई का तूफ़ान आने वाला है।
Edible oil imports : आत्मनिर्भर भारत का क्या हुआ?
यहाँ एक सवाल यह भी उठता है कि जब भारत खाने की तेल के जरूरतों को लेकर दूसरों देशों पर निर्भर है तो आत्मनिर्भर होने की कोशिश क्यों नहीं करता? यह परेशानी बहुत लम्बे समय से चली आ रही है लेकिन अब जाकर सरकार ने कुछ नीतियां बनाई है। जो अब भी केवल पन्नों शक्ल में हैं। इस पर कोई ठोस शुरूआत नहीं हुई है।
खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता के लिये राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन-ऑयल पाम (National Edible Oil Mission-Oil Palm) नामक योजना में 11,000 करोड़ के निवेश से साल 2021 में ही शुरू की गयी है। इसका लक्ष्य है कि वर्ष 2025-26 तक पाम तेल का घरेलू उत्पादन तीन गुना बढ़ाकर 11 लाख मीट्रिक टन कर दिया जाए। इसके लिए भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के जमीनों के इस्तेमाल की बात की गयी है। लेकिन यहां भी वही विरोध किया जा रहा है कि अगर पाम ऑयल की अधिक पैदावार की जाएगी तो यह पर्यावरण के अनुकूल नहीं होगा। जो हाल इंडेनोशिया और मलेशिया की जैव विविधता का हो रहा है। वही हाल अंडमान निकोबार का हो जाएगा। इसलिए ढंग से कहा जाए तो बात यह है कि खाने के तेल की आत्मनिर्भरता लेकर भारत की तरफ से अब भी कोई ठोस योजना नहीं बनी है।
अजय कुमार (न्यूजक्लिक)
Web title : Ban on Palm Oil: Whirlwind of inflation is coming